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This Article is From May 27, 2015

कर्नाटक : लॉटरी घोटाले की जांच मुख्यमंत्री ने सीबीआई के हवाले की

कर्नाटक : लॉटरी घोटाले की जांच मुख्यमंत्री ने सीबीआई के हवाले की
बेंगलुरु: कर्नाटक के मुख्यमन्त्री सिद्धारमैय्या ने करोड़ों रुपये के अवैध लॉटरी घोटाले की जांच सीबीआई को सौंपने का फैसला किया है। आनन फानन में बुलाई गयी प्रेस कॉन्फ्रेंस में सिद्धारमैय्या ने ऐलान किया कि सीआईडी जांच में अलग-अलग राज्य से संचालित कर रहे एजेंट्स की जानकारी मिली है, ऐसे में हमने जांच के बढ़ते दायरे को देखते हुए इस घोटाले की जांच सीबीआई को सौंपने का फैसला किया है।

2007 में कर्नाटक के साथ-साथ तमिलनाडु और केरल ने एक डिजिट के नंबर वाले लॉटरी और मटका पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। लेकिन इसके बावजूद अवैध तौर पर ये धंधा फलता फूलता रहा।

हाल ही में एक निजी कन्नड़ चैनल ने एक स्टिंग ऑपरेशन का प्रसारण किया जिसमें अवैध लॉटरी धड़ल्‍ले से चल रहा था। इसका साफ़ सबूत मिला। फिर जांच में एक्साइज के पुलिस अदीक्षक धरनेश को निलंबित किया गया क्योंकि लॉटरी रैकेट के सरगना राजन से उसके नज़दीकी सम्बन्ध कॉल रिकार्ड्स और दूसरे दस्तावेज़ों से साबित हुए। बाद में जब सीआईडी ने जांच शुरू की तो करीब आधा दर्जन वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों के नाम सामने आये।

कर्नाटक के डीजीपी ओम प्रकाश की अनुशंसा पर आईजी अलोक कुमार को निलंबित कर दिया गया जो की बेंगलुरु के अतिरिक्त आयुक्त (कानून व्यवस्था) थे।

सीआईडी ने अपनी रिपोर्ट में लिखा था कि अलोक कुमार लगातार राजन के साथ सम्पर्क में रहा करते थे और जब पुलिस राजन को गिरफ्तार करने गयी तो उन्होंने इसमें भी रुकावट डालने की कोशिश की।

फिलहाल सूत्रों से मिल रही जानकारी के मुताबिक तीन रिटायर्ड पुलिस महानिदेशक, 2 आईजीपी और 2 डीसीपी रैंक के अधिकारियों के नाम इस रैकेट से सीधे जुड़ते नज़र आ रहे हैं।

चूंकि लॉटरी पर प्रतिबन्ध 2007 में लगा तब से 2013 तक सरकार कुमारस्वामी, येद्दयुरप्पा और कुछ महीनों के लिए जगदीश शेट्टार और सदानंद गौड़ा के नेतृत्व में चली, इसलिए कांग्रेस नेताओं का नाम इससे जुड़ने की सम्भावना कम है और ऐसे में बीजेपी के और जेडीएस के मुख्यमन्त्री और गृह मंत्री शक के दायरे में आते दि‍खते हैं। इसलिए ज्‍यादा देर किये बगैर सिद्धारमैय्या ने जांच सीबीआई को सौंपने का फैसला किया है।

सीबीआई को जांच सौंपने के पीछे एक वजह ये भी बताई जा रही है कि वरिष्ठ अधिकारियों के सम्बन्ध कई मंत्रियों से अच्छे हैं, ऐसे में हर कोई अपने सम्बन्ध वाले पुलिस अधिकारी के लिए सहानभूति रखता है और उन्हें बचाने के प्रयास ऐसे में कई स्तरों पर होंगे। इसलिए भी मुख्यमन्त्री ने पुलिस को भरोसे में लिए बगैर सीबीआई जांच का फैसला लिया। क्योंकि अगर सीआईडी को इसकी भनक होती तो बेंगलुरु से तकरीबन 100 किलोमीटर दूर कोलार जेल से राजन को पूछताछ के लिए सोमवार शाम पुलिस बेंगलुरु सेंट्रल जेल नहीं लाती।

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