
- हर साल 26 जुलाई को भारत में कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है.
- भारत ने इस जंग में अपने 527 वीर सबूतों को गंवाया था, जबकि 1363 जवान आहत हुए थे.
- उन्हीं की याद में 26 जुलाई को भारत कारगिल की जीत को विजय दिवस के रूप में मनाता है.
साल 1999 भारत के इतिहास में सदियों तक याद रखा जाएगा. ऐसा इसलिए क्योंकि ये वही साल था जब भारतीय वीर सपूतों ने अपने शौर्य का परिचय देते हुए ना सिर्फ पाकिस्तान को युद्ध में हराया था बल्कि उन्हें दांतों तले चने चबवा दिए. लगभग 60 दिनों तक चले इस युद्ध में भारतीय सेना ने हर मोर्चे पर पाकिस्तान को चित किया. भारतीय वीरों ने अपने शौर्य का ऐसा परिचय दिया जिसे देखकर दुश्मन देश के सिपाहियों के होश उड़ गए. आज ही के दिन भारत ने इस युद्ध को जीता था. यही वजह है कि आज के दिन को कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है. आज हम आपको उन कुछ वीर सपूतों से रूबरू कराने जा रहे हैं जिन्होंने अपनी मातृभूमि के लिए ऐसी लड़ाई लड़ी जो शायद ही कोई भूल सके.
भारत ने इस जंग में अपने 527 वीर सबूतों को गंवाया था, जबकि 1363 जवान आहत हुए थे. कैप्टन मनोज कुमार पांडे, कैप्टन विक्रम बत्रा, कैप्टन अमोल कालिया, लेफ्टिनेंट बलवान सिंह से लेकर ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव और नायक दिगेंद्र कुमार समेत कई वीर करगिल के ऐसे 'हीरो' थे, जिन्हें देश भूल नहीं सकता है.
कारगिल लड़ाई के हीरो
1. ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव
ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव को टाइगर हिल पर तीन रणनीतिक बंकरों पर कब्जा करने का लक्ष्य दिया गया था. तीन गोलियां लगने के बाद भी उन्होंने लड़ना जारी रखा. दूसरे बंकर को तबाह कर अपनी प्लाटून को आगे बढ़ने का आदेश दिया. इस युद्ध में वो शहीद हो गए थे. उन्हें 'परम वीर चक्र'से सम्मानित किया गया था.
2 लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडेय
लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडेय को बाटलिक सेक्टर से दुश्मन सैनिकों को हटाने का लक्ष्य दिया गया था. इन्होंने घुसपैठियों को पीछे खदेड़ने का काम किया था. भीषण गोलाबारी के बीच वो शहीद हो गए थे. उन्होंने शहीद होने से पहले जुबार टॉप और खालुबार हिल पर कब्जा जमा लिया. मरणोपरांत 'परमवीर चक्र' से सम्मानित किए गए.
3. कैप्टन विक्रम बत्रा
13 जेएके राइफल्स में दिसंबर 1997 में कमिशन मिला. करगिल युद्ध के दौरान इनका कोडनेम 'शेर शाह' था. उन्होंने महत्वपूर्ण प्वाइंट 5140 पर कब्जा जमाया. प्वाइंट 4875 पर कब्जा जमाने के लिए हुई लड़ाई में स्वेच्छा से भाग लिया. प्वाइंट 4875 पर हुई लड़ाई में सात जुलाई 1999 को शहीद हो गए.मिशन की सफलता के बाद 'ये दिल मांगे मोर' कहकर काफी मशहूर हुए.मरणोपरांत 'परमवीर चक्र'से सम्मानित किया गया.
5 राइफलमैन संजय कुमार
एरिया फ्लैट टॉप पर हुई लड़ाई में अदम्य साहस का परिचय दिया. दुश्नन के बंकर पर हमला कर तीन पाकिस्तानी सैनिकों ढेर कर दिया. तीन गोलियां लगने के बाद भी लड़ाई लड़ते रहे. दुश्मन के मोर्चे पर तबतक कब्जा जमाए रखा,जबतक कि सहायता के लिए और सैनिक नहीं पहुंच गए. इस बहादुरी के लिए उन्हें 'परमवीर चक्र'से सम्मानित किया गया.
जानें 26 साल पहले क्या हुआ था
- तीन मई, 1999: स्थानीय चरहवाहों ने कारगिल में भारतीय सेना को पाकिस्तानी सैनिकों और आतंकवादियों की मौजूदगी की जानकारी दी.
- पांच मई 1999: चरवाहों की शुरूआती रिपोर्टों के जवाब में भारतीय सेना के गश्ती दल भेजे गए.पाकिस्तानी सैनिकों ने पांच भारतीय सैनिकों को पकड़ कर उनकी हत्या कर दी. पाकिस्तानी सेना ने कारगिल में भारतीय सेना के गोला-बारूद के ढेर को नष्ट कर दिया.
- 10 से 25 मई, 1999: इस दौरान द्रास, काकसर और मुस्कोह सेक्टर में भी घुसपैठ की खबरें मिलीं. भारत ने करगिल जिले की सुरक्षा मजबूत करने के लिए कश्मीर से और अधिक सैनिक भेजे. भारतीय सेना ने कब्जाई गई चोटियों पर अपना कब्जा बहाल करने के लिए 'ऑपरेशन विजय' शुरू किया.
- 26 मई 1999: भारतीय वायु सेना ने 'ऑपरेशन सफेद सागर'शुरू कर पाकिस्तानी कब्जों पर हवाई हमला शुरू कर दिया.
- 27-28 मई, 1999: पाकिस्तानी बलों ने भारतीय वायुसेना के तीन लड़ाकू जहाजों (मिग-21, मिग-27 और एमआई-12) को मार गिराया.
- 1 जून, 1999: पाकिस्तान ने कश्मीर और लद्दाख में नेशनल हाइवे-1 पर गोलाबारी शुरू की.
- 5 जून, 1999: भारत ने पाकिस्तानी सैनिकों के पास से बरामद किए गए कागजात सार्वजनिक किए. ये कागजात इस हमलें में उनकी संलिप्तता को प्रमाणित करते थे.
- 9 जून, 1999: बटालिक सेक्टर में भारतीय सैनिकों ने दो महत्वपूर्ण चोटियों पर फिर से कब्जा जमाया.
- 13 जून 1999: जोरदार लड़ाई के बाद भारतीय सेना ने रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण द्रास सेक्टर के तोलोलिंग चोटी पर फिर से कब्जा जमा लिया.
- 4 जुलाई, 1999: भारतीय सेना ने द्रास सेक्टर में महत्वपूर्ण टाइगर हिल पर फिर से कब्जा जमाया.
- 5 जुलाई, 1999: पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने करगिल से पाकिस्तानी सैनिकों को वापस हटाने की घोषणा की.
- 11-14 जुलाई, 1999: जब भारतीय सेना ने महत्वपूर्ण चोटियों पर कब्जा जमाया तो पाकिस्तानी सुरक्षा बल वहां से पीछे हट गए.
- 26 जुलाई, 1999: भारतीय सेना ने सभी पाकिस्तानी बलों के वहां से चले जाने की घोषणा करते हुए 'ऑपरेशन विजय'को सफल बताया.
शहीद सुनील महत की कहानी
कारगिल दिवस उन लोगों के लिए बेहद मायने रखता है जिन्होंने अपने प्रियजनों को खोया है और इन्हीं में से एक जवान की मां हैं बीना. बीना अपने परिवार के सदस्यों वाली एल्बम को देखते हुए याद करती हैं कि कैसे उनका बेटा युद्ध में दुश्मन की गोलियों का निशाना बना था. उन्होंने कहा,“मुझे इस जगह पर सुकून मिलता है क्योंकि यहां मेरे बेटे ने देश के सम्मान के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी. मैं यहां पहली बार आई हूं और मैं चाहती हूं कि यह आखिरी बार हो.”
लखनऊ की रहने वाली बीना ने करगिल युद्ध में अपने बेटे सुनील जंग महत को खो दिया था. सुनील महत एक राइफलमैन थे और उन्होंने युद्धभूमि में सर्वोच्च बलिदान दिया था. वर्ष 1999 में द्रास के निर्णायक युद्ध में पाकिस्तानी घुसपैठियों से लड़ते हुए अपने बेटे के बलिदान के पच्चीस बरस बीतने के बाद भी बीना उस जमीन पर सुकून की तलाश में आईं, जहां उनके बेटे ने शहादत पाई थी. उन्होंने कहा, “मैं आखिरी सांस तक अपने बेटे को याद करूंगी. उसकी यादें मुझे हमेशा सताती रहेंगी. मैं पहली बार कारगिल विजय दिवस में शामिल हो रही हूं. भगवान ही जाने मेरा बेटा यहां कैसे जिंदा रहा और दुश्मनों से कैसे लड़ा. मुझे नहीं पता कि 25 साल पहले यह जगह कैसी दिखती होगी. वह बहुत छोटा था, जब उसने पाकिस्तान के साथ सबसे बड़ी लड़ाई लड़ी थी.”
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