उत्तराखंड के रानीखेत में भारत और उज्बेक की सेनाएं आतंक के ख़िलाफ़ साझा सैन्य अभ्यास कर रही हैं. भारत की ओर से कुमांऊ रेजीमेंट इस सैन्य अभ्यास में हिस्सा ले रही हैं, जिसने 1962 की लड़ाई में चीन के दांत खट्टे कर दिए थे. यह ज्वाइंट एक्सरसाइज रानीखेत के चौबटिया में हो रहा है.
साझा सैन्य अभ्यास में दोनों देश की सेनाएं आतंकवाद के ख़िलाफ़ साझा लड़ाई के गुर सीख रही हैं. इस युद्धाभ्यास में दोनों देशों के 45-45 सैनिक हिस्सा ले रहे हैं. इस दौरान दोनों देशों की सेनाएं काउंटर टेरेरिस्ट ऑपरेशन्स के युद्द कौशल और दक्षता एक दूसरे से साझा कर रही हैं. फायरिंग , हेलीकॉप्टर से रस्सी के सहारे उतरना, कार्डन और सर्च ऑपरेशन और फिर रुम इंटरवेंशन ड्रिल भी मिलकर की जा रही हैं.
अभ्यास में दोनों देश की सेनाएं अमेरिका से हाल ही में ली गई सिग सोर राइफल का इस्तेमाल कर रही हैं. शहरी और ग्रामीण परिवेश में काउंटर टेरेरिज़्म और काउंटर इनसर्जेंसी को इस तरह अंजाम दिया जा रहा है, कि जब रियल ऑपरेशन को करना हो तो यह हर लिहाज से कामयाब हो. डस्टलिक सैन्य अभ्यास 10 मार्च से शुरु हुआ है, जो 19 मार्च तक चलेगा. इस सामरिक अभ्यास के ज़रिए भारत की कोशिश मध्य एशिया में चीन की बढ़त को रोकना है. साथ ही रणनीतिक तौर पर भारत और उज्बेकिस्तान के रिश्ते को और मज़बूत करना है.
डस्टलिक को उज्बेक भाषा में दोस्ती कहा जाता है. इसी दोस्ती के मार्फ़त भारत मध्य एशिया में चीन के बढ़ते पांव को पसारने से रोकने में जुटा है. तभी तो पूर्वी लद्दाख में चीन के साथ जारी तनातनी के बीच, इस सैन्य अभ्यास पर चीन की भी पैनी नज़र है.
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