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This Article is From Mar 02, 2016

देशविरोधी नारे लगाना 'अभिव्यक्ति की आजादी' नहीं, इसे कंट्रोल करने की जरूरत : जस्टिस प्रतिभा रानी

देशविरोधी नारे लगाना 'अभिव्यक्ति की आजादी' नहीं, इसे कंट्रोल करने की जरूरत : जस्टिस प्रतिभा रानी
कन्‍हैया कुमार का फाइल फोटो...
नई दिल्‍ली: दिल्‍ली हाईकोर्ट ने उपकार फ़िल्म के चर्चित गाने मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती, मेरे देश की धरती... का जिक्र करते हुए अपने फैसले में कहा कि 'इस देश ने हमें महान देशभक्त दिए हैं। हमारे देश के सैनिक दुर्गम हालात में सियाचिन, कश्मीर और अन्य बॉर्डर पर देश की रक्षा करते हैं। ऐसे में अगर देश के किसी हिस्से में कोई देशविरोधी नारे लगाता है तो उनके मन को ठेस पहुंचती है। ऐसे देश में देशविरोधी नारों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं माना जा सकता। इसे कंट्रोल करने की ज़रूरत है। अगर आपके शरीर में इन्फेक्शन होता है तो दवा लेते हैं। फिर भी बात न बने तो सर्जरी कराते हैं और फिर भी लाभ न हो तो उस हिस्से को काट देते हैं।'

हाईकोर्ट ने कहा कि 'कन्हैया न्यायिक हिरासत में रह चुका है। उसने आत्म मंथन किया होगा। ऐसे में उसे मुख्यधारा से जोड़ने के लिए रियायत देना ज़रूरी है। उसकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। कन्हैया ने बताया था कि उसकी मां 3 हजार रुपये महीना कमाती है। इस आधार पर अदालत ने बेल बॉन्‍ड की राशि मात्र 10 हजार तय की है, ताकि वो बेल बांड भर सके।'

ज्ञात हो कि दो दिन पहले सोमवार को हाईकोर्ट ने उक्त मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। पिछली सुनवाई पर दिल्ली पुलिस ने कन्हैया की जमानत पर विरोध दर्ज कराते हुए दलील दी थी कि वीडियो में कन्हैया नारेबाजी करता नहीं दिख रहा है, लेकिन उनके पास ऐसे गवाह हैं, जिनके सामने कन्हैया ने नारेबाजी की थी। पुलिस ने यह दलील हाईकोर्ट द्वारा पूछे गए सवाल के बाद दी थी, जिसमें हाईकोर्ट ने पूछा था कि क्या उनके पास सीसीटीवी या अन्य कोई सबूत है, जिससे साबित हो कि कन्हैया नारेबाजी कर रहा था? वहीं, कन्हैया के वकील कपिल सिब्बल ने कहा था कि कन्हैया वहां पर हुई लड़ाई को सुलझवाने गया था और उसने देश-विरोधी नारे नहीं लगाए। हाईकोर्ट ने उक्त मामले में सुनवाई के दौरान सवाल उठाते हुए पुलिस से पूछा था कि कैसे कन्हैया कुमार नारेबाजी के लिए जिम्मेदार है, जब कथित तौर पर बाहरी छात्रों ने जेएनयू में आकर नारेबाजी की है? पुलिस ने दलील दी थी कि कन्हैया नौ फरवरी के कार्यक्रम में शामिल था और उसने नारेबाजी की थी।

पुलिस ने कहा था कि उनके पास स्वतंत्र गवाह हैं, जिनमें जेएनयू अधिकारी, चीफ सिक्योरिटी अधिकारी व कुछ छात्र शामिल हैं। हालांकि पुलिस ने यह भी माना था कि वीडियो में कन्हैया नारेबाजी करता नहीं दिख रहा है। पुलिस ने कहा था कि जहां यह कार्यक्रम हुआ था, वहां कोई सीसीसीटीवी नहीं था। इस स्टेज पर जमानत दिए जाने से गलत संदेश जाएगा। जेएनयू के बाद इसी तरह के नारे जाधवपुर विवि में भी लगाए गए हैं। वहीं कुछ लोगों ने वीडियो बनाई थी, जिसमें कन्हैया मौके पर मौजूद है। इस पर कोर्ट ने पूछा था कि जब पुलिस के पास सबूत थे तो उन्होंने पहले वीडियो टीवी चैनल पर चलने का इंतजार क्यों किया... खुद कार्रवाई क्यों नहीं की?

ज्ञात हो कि पिछली सुनवाई पर कन्हैया के वकील ने कहा था कि कन्हैया के खिलाफ कोई सबूत नहीं है। वहीं जेएनयू कोई पब्लिक प्लेस नहीं है, इसलिए कन्हैया पर पब्लिक प्लेस पर उपद्रव के लिए उकसाने का मामला नहीं बनता है। इस मामले में जहां दिल्ली पुलिस ने कन्हैया की जमानत का विरोध किया, वहीं दिल्ली सरकार ने कन्हैया की जमानत देने की दलील दी थी। दिल्ली सरकार के स्टैंडिंग काउंसिल राहुल मेहरा ने हाईकोर्ट में कहा था कि कन्हैया के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं हैं। किसी निर्दोष व्यक्ति को सजा नहीं दी जा सकती है। साथ ही कहा था कि कन्हैया को देश-विरोधी पोस्टरों के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। न तो उसने इनके लिए अनुमति ली थी और न ही इन पोस्टर पर उसका नाम था। वहीं अगर पुलिस को पता था कि मुंह ढंककर बाहरी लोग आए हैं तो पुलिस ने उनको जाने क्यों दिया।

उल्‍लेखनीय है कि जेएनयू छात्र संघ के अध्‍यक्ष कन्‍हैया कुमार पर बीते 9 फरवरी को जेएनयू परिसर में एक समारोह के दौरान देश विरोधी नारे लगाने का आरोप है। इस मामले का वीडियो एक टीवी चैनल पर प्रसारित होने के बाद बवाल मचा था। इसके बाद दिल्‍ली पुलिस ने इस संबंध में देशद्रोह का मुकदमा दर्ज कर कन्‍हैया को 12 फरवरी को गिरफ्तार किया था। कन्‍हैया इस समय तिहाड़ जेल में बंद है। इसी मामले में पुलिस ने जेएनयू परिसर से छात्र उमर खालिद और अनिर्बान भट्टाचार्य को भी गिरफ्तार किया था।

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