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रतन टाटा के लिए आज यूं ही शोक में नहीं डूबा है झारखंड का जमशेदपुर, पढ़िए पूरी कहानी

रतन टाटा बतौर चेयरमैन 26 बार जमशेदपुर आए थे. उम्र बढ़ने के बाद भी वो जमशेदपुर आते रहते थे.

रतन टाटा के लिए आज यूं ही शोक में नहीं डूबा है झारखंड का जमशेदपुर, पढ़िए पूरी कहानी
नई दिल्ली:

झारखंड की राजधानी रांची (Ranchi) से लगभग 125 किलोमीट की दूरी पर स्थित जमशेदपुर (Jamshedpur) शहर आज शोक में डूबा हुआ है. दुर्गा पूजा को लेकर उत्साहित बाजार में अचानक शांति छा गयी. पूजा पंडालों में लाउड स्पीकर बंद कर दिए गए. त्योहार के जश्न में डूबा शहर अचानक शोक क्यों मनाने लगा? जमशेदपुर के हर हिस्से में टाटा समूह के द्वारा किए गए कार्य नजर आते हैं. ऐसे में लोकप्रिय उद्योगपति टाटा संस के मानद चेयरमैन रतन टाटा के निधन के कारण पूरे शहर में शोक की लहर दौड़ गयी है.

बुधवार की रात जैसे ही लोगों ने इस खबर को जाना वो जहां थे वहीं थम गए. पूजा पंडालों में बज रहे गानों को बंद कर दिया गया.

कालीमाटी कैसे बन गया जमशेदपुर
आज की तारीख से लगभग 120 साल पहले जब झारखंड अविभाजित बंगाल का हिस्सा होता था उस समय कालीमाटी नामक जगह पर जमशेद जी नसरवान जी टाटा ने एक सपना देखा था. आदिवासियों की बस्ती साकची में टाटा कंपनी की नींव रखी गई थी. टाटा समूह ने इस कालीमाटी में टिस्को की स्थापना करने की सोची.

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टाटा स्टील (पूर्व में टाटा आयरन ऐंड स्टील कंपनी लिमिटड) अर्थात टिस्को की स्थापना के साथ ही इस क्षेत्र में कायापलट की शुरुआत हो गयी. चौड़ी सड़कें, पक्की नालियां, पार्क, हरियाली उन सबकुछ का निर्माण इस क्षेत्र में हुआ जिसे एक आधुनिक शहर में जरूरत होती है. इस शहर में सबकुछ है जो एक आधुनिक शहर की जरूरत होती है.

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जमशेदपुर में टाटा ग्रुप ने CSR को दिया अलग मुकाम
साधरणत: झारखंड के अधिकतर शहर जहां भी उद्योग स्थापित करने के लिए सरकारी स्तर पर रैयतों के जमीन लिए गए उनकी हालत बहुत अच्छी नहीं है. आजाद भारत में भी जमीनों के अधिग्रहण के बाद विस्थापितों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा. जगह-जगह आंदोलन हुए, लेकिन उनकी समस्या का समाधान नहीं हुआ. हालांकि जमशेदपुर में इस तरह की बातें बहुत कम ही देखने को मिली. टाटा समूह ने सरकारी एजेंसियों से बढ़कर काम कर दिखाया. सीएसआर जैसी चीजों को टाटा ग्रुप ने बहुत ही बेहतर ढंग से उन इलाकों में भी खर्च किया जो टाटा ग्रुप के अंतर्गत नहीं आते हैं. 

हर तरह के संस्थानों का बिछाया गया जाल
टाटा स्टील प्लांट के निर्माण के साथ ही शहर में सबसे पहला कार्य जो टाटा ग्रुप ने किया था वो टीएमएच की स्थापना है. शुरुआत में इसे एक डिस्पेंसरी के तौर पर खोला गया था हालांकि बाद में इसे अस्पताल के तौर पर विकसित कर दिया गया. पहले सिर्फ टाटा के कर्मचारी इसका लाभ उठाते थे बाद में आम लोगों के लिए भी इसे खोल दिया गया. कैंसर अस्पताल की स्थापना कर टाटा ने उस क्षेत्र के लोगों को एक तौहफा दिया. अच्छी गुणवत्ता युक्त शिक्षा के लिए टाटा की तरफ से एक्सएलआई स्थापना की गयी. इस कॉलेज की गुणवत्ता का इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि इसकी तुलना देश के प्रमुख आईआईएम संस्थानों से की जाती है. साल 1946 में इसकी नींव रखी गयी और 1949 में यह बनकर तैयार हो गया.1960 में टाटा समूह के प्रयासों से ही आरआईटी की स्थापना हुई जिसे बाद में सरकार ने एनआईटी का दर्जा दे दिया. 

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जमशेदपुर की शान जुबली पार्क
टाटा स्टील के द्वारा जमशेदुपर में न्यायलय परिसर के समीप एक विशाल पार्क का निर्माण साल 1958 में किया गया था. पार्क के निर्माण की शुरुआत 1937 में हुई थी और यह बनकर 1958 में पूरा हुआ था. दिल्ली के राष्ट्रपति भवन के मुगल गार्डन की तर्ज पर करने की योजना थी. पूरा पार्क लगभग 500 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है. इस पार्क से टाटा स्टील के कारखाने का दृश्य देखने को मिलता है.रोज गार्डन, मुगल गार्डन, झील, मनोरंजन पार्क  कई चीजों का निर्माण इस पार्क में किया गया है. टाटा ग्रुप की तरफ से इसकी देखरेख की जाती है. 

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जमशेदपुर से रतन टाटा का था गहरा रिश्ता
रतन टाटा बतौर चेयरमैंन 26 बार जमशेदपुर आए थे. उम्र बढ़ने के बाद भी वो जमशेदपुर आते रहते थे.  अंतिम बार वो कोरोना के दौरान 2021 में जमशेदपुर पहुंचे थे.थर्ड मार्च को हर साल होने वाले कार्यक्रम में उनकी कोशिश होती थी कि वो पहुंचे. रतन टाटा के करियर की शुरुआत भी जमशेदपुर मोटर्स से हुई थी. साल 2023 में थर्ड मार्च कार्यक्रम में उनके आने का कार्यक्रम था लेकिन अंतिम समय में तबीयत खराब रहने के कारण वो नहीं पहुंच पाए थे. 

टाटा स्टील के कर्मचारियों के बीच भी रतन टाटा की बेहद लोकप्रियता थी. चेयरमैन होने के बावजूद वे बेहद सरल स्वभाव वाले शख्स थे, इसलिए कर्मचारी उसे कंपनी का अधिकारी नहीं बल्कि अपने बीच का साथी मानते थे.

साइरस मिस्त्री का परिचय करवाने पहुंचे थे जमशेदपुर
रतन टाटा 2012 में बतौर चेयरमैन जमशेदपुर पहुंचे थे. इस दौरान उन्होंने अपने उत्तराधिकारी के रूप में साइरस मिस्त्री को भी साथ लाया था. तीन मार्च की सुबह साढ़े नौ बजे बिष्टुपुर पोस्टल पार्क में साइरस मिस्त्री का उन्होंने लोगों से परिचय करवाया था. उन्होने लोगों को आधिकारिक तौर पर बताया था कि अब साइरस ही टाटा समूह के कार्यों को संभालेंगे. 

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झारखंड में एक दिन का राजकीय शोक
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने दिग्गज उद्योगपति रतन टाटा के निधन पर बृहस्पतिवार को एक दिवसीय राजकीय शोक की घोषणा की.  एक शीर्ष पुलिस अधिकारी ने ‘पीटीआई-भाषा' को बताया कि 86 वर्षीय टाटा ने दक्षिण मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में बुधवार रात 11.30 बजे अंतिम सांस ली. वह पिछले कुछ दिनों से अस्पताल में भर्ती थे.  सोरेन ने 'एक्स' पर एक पोस्ट में कहा, “झारखंड जैसे पिछड़े राज्य को विश्व स्तर पर पहचान दिलाने वाले टाटा समूह के पूर्व चेयरमैन और पद्म विभूषण रतन टाटा जी के निधन पर एक दिवसीय राजकीय शोक की घोषणा की गई है.”

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