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This Article is From Oct 04, 2023

J&K: आर्टिकल 370 निरस्त होने के बाद पहली बार कारगिल में चुनाव, आज होगी वोटिंग

दुनिया का दूसरा सबसे ठंडा बसा हुआ स्थान (Inhabited Place) द्रास इस समय चुनावी बुखार की चपेट में है. यहां मतदान की तैयारियां कर ली गई हैं. अगस्त 2019 में आर्टिकल 370 हटाए जाने और लद्दाख को एक अलग केंद्र शासित प्रदेश (UT) बनाए जाने के बाद कारगिल में यह पहला लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद चुनाव है.

J&K: आर्टिकल 370 निरस्त होने के बाद पहली बार कारगिल में चुनाव, आज होगी वोटिंग
30 सदस्यीय कारगिल परिषद में 26 सीटें हैं, जिसपर चुनाव हो रहे हैं.
नई दिल्ली:

जम्मू-कश्मीर (Jammu-Kashmir) में साल 2019 में आर्टिकल 370 (Article 370) के निरस्त होने के बाद पहली बार लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद (LAHDC) की कारगिल विंग (Kargil Wing) में 4 अक्टूबर को चुनाव होने जा रहे हैं. यह चुनाव अगले साल लोकसभा चुनाव से पहले क्षेत्र की चुनावी मूड का अंदाजा दे सकता है. कारगिल चुनाव को मुख्य रूप से भारतीय जनता पार्टी (BJP), कांग्रेस (Congress) और नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) के गठबंधन के बीच लड़ाई के रूप में देखा जा रहा है.

दुनिया का दूसरा सबसे ठंडा बसा हुआ स्थान (Inhabited Place) द्रास इस समय चुनावी बुखार की चपेट में है. यहां मतदान की तैयारियां कर ली गई हैं. अगस्त 2019 में आर्टिकल 370 हटाए जाने और लद्दाख को एक अलग केंद्र शासित प्रदेश (UT) बनाए जाने के बाद कारगिल में यह पहला लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद चुनाव है.

30 सदस्यीय कारगिल परिषद में 26 सीटें हैं, जिसपर चुनाव हो रहे हैं. जबकि स्थानीय निकाय के 4 अन्य सदस्यों को नामांकित किया जाता है. अगस्त 2018 में हुए पिछले चुनाव में बीजेपी सिर्फ 1 सीट जीतने में सफल रही थी. हालांकि, आर्टिकल 370 के निरस्त होने के बाद पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) के दो पार्षदों के भगवा खेमे में चले जाने के बाद इसकी संख्या बढ़कर 3 हो गई. इसके अलावा, 4 नामांकित सदस्यों को बीजेपी समर्थक माना जाता है.

जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के नेतृत्व वाली PDP की वर्तमान में लद्दाख क्षेत्र में कोई मौजूदगी नहीं है. पीडीपी ने चुनावी दौड़ से बाहर होने का विकल्प चुना है. वहीं, नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) 10 सदस्यों के साथ कारगिल परिषद में सबसे बड़ी पार्टी है. 8 पार्षदों के साथ कांग्रेस ने महीनों पहले NC के साथ गठबंधन बना लिया था. लेकिन दोनों ने उन सीटों पर एक-दूसरे के खिलाफ उम्मीदवार खड़ा करने का फैसला किया, जहां बीजेपी प्रमुख दावेदार नहीं है.

द्रास के निवासी 73 वर्षीय मोहम्मद इकबाल ने कहा, "बुधवार का चुनाव विकास से ज्यादा लोगों की पहचान के बारे में है.  मोहम्मद इकबाल ने 40 वर्षों तक सेना में कुली के रूप में काम किया है, जिसमें 1999 में कारगिल युद्ध भी शामिल है. उन्होंने कहा कि लद्दाख के केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद लोग राजनीतिक रूप से असहाय महसूस कर रहे हैं.

मोहम्मद इकबाल ने कहा, "यहां कोई निर्वाचित विधायक या मंत्री नहीं हैं. लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश में बदलने के बाद हिल काउंसिल ने अपना अधिकार खो दिया है. फिर भी यह चुनाव हमारे लिए महत्वपूर्ण है."

लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद, कारगिल की 26 सीटों के लिए 85 उम्मीदवार मैदान में हैं. बीजेपी 17 सीटों पर चुनाव लड़ रही है और कुछ निर्दलीय उम्मीदवारों का समर्थन कर रही है. कारगिल नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) का पारंपरिक गढ़ रहा है और कांग्रेस मुख्य प्रतिद्वंद्वी रही है. अब बीजेपी से लड़ने के लिए विरोधियों ने गठबंधन कर लिया है.

दो शक्तिशाली धार्मिक संस्थान - जमीयत उलेमा कारगिल (जिसे इस्लामिया स्कूल के नाम से जाना जाता है) ने पारंपरिक रूप से नेशनल कॉन्फ्रेंस का समर्थन किया है. इमाम खुमैनी मेमोरियल ट्रस्ट कांग्रेस का समर्थन करते हैं. वहीं, धार्मिक मौलवियों ने भी लोगों से बीजेपी के खिलाफ वोट करने की अपील की है.

चुनाव प्रचार के दौरान लद्दाख से बीजेपी सांसद जामयांग नामग्याल ने लोगों से एनसी-कांग्रेस गठबंधन को वोट न देने का आग्रह किया है. एनसी प्रमुख फारूक अब्दुल्ला को उन्होंने 'यज़ीद' बताया. यज़ीद'... जो इमाम की हत्या में शामिल होने के लिए शिया मुसलमानों के लिए नफरत का प्रतीक है. 

नामग्याल ने एक चुनावी बैठक में कहा, "फारूक अब्दुल्ला ने इमाम हुसैन की शहादत पर शोक मनाने के लिए श्रीनगर में मुहर्रम के जुलूस की अनुमति नहीं दी. यह बीजेपी थी, जिसने 34 साल बाद श्रीनगर में जुलूस की अनुमति दी."

इससे पहले, लद्दाख प्रशासन ने नेशनल कॉन्फ्रेंस के उम्मीदवारों को 'हल' चुनाव चिन्ह देने से इनकार कर दिया था. जिसके कारण कानूनी लड़ाई हुई थी. इसी दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पहले 10 सितंबर को होने वाले लद्दाख हिल काउंसिल चुनावों को रद्द कर दिया था.
 

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