जगन्नाथ रथ यात्रा आज से शुरू हो गई है.
नई दिल्ली:
जगन्नाथ रथ यात्रा रविवार यानि की आज से शुरू हो गई है. हर साल इस यात्रा का आयोजन आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को किया जाता है. ओडिशा के पुरी में आयोजित की जाने वाली इस यात्रा में लाखों श्रद्धालु शामिल होते हैं. बता दें कि इस दौरान भगवान जगन्नाथ के साथ-साथ उनके भाई बलराम और बहन सुभद्रा का भी एक-एक रथ निकलता है और सभी रथों की अपनी अलग खासियत है. साथ ही इन्हें बेहद ध्यानपूर्वक तैयार किया जाता है. तो चलिए आपको बताते हैं कि इन रथ की खासियत क्या है.
- भगवान जगन्नाथ के 45.6 फीट ऊंचे नंदीघोष रथ के निर्माण के लिए अलग-अलग तरह की लकड़ी के कम से कम 742 लट्ठों का इस्तेमाल किया गया है. भगवान बलराम के 45 फीट ऊंचे तालध्वज रथ के लिए 731 लट्ठों का इस्तेमाल किया गया है और देवी सुभद्रा के 44.6 फीट ऊंचे दर्पदलन रथ के लिए 711 लट्ठों का इस्तेमाल किया गया है.
- रथ यात्रा में इस्तेमाल किए गए तीनों रथों में से प्रत्येक की अलग-अलग विशेषताएं और आयाम हैं.
- भगवान जगन्नाथ का रथ, नंदीघोष, 18 पहियों के साथ 45 फीट की प्रभावशाली ऊंचाई का होता है, जो हिंदू महाकाव्य, भगवद गीता के 18 अध्यायों का प्रतीक है.
- बलदेव के रथ, तलध्वज में 16 पहिए होते हैं और यह लगभग 44 फीट ऊंचा होता है.
- वहीं देवी सुभद्रा का रथ, देवदलन, 14 पहियों के साथ लगभग 43 फीट ऊंचा होता है.
- तीनों रथों को जटिल नक्काशी, चमकीले रंगों और सजावटी रूपांकनों से शानदार ढंग से सजाया जाता है, जो देवताओं की दिव्य यात्रा का प्रतीक है.
- मंदिर के एक अधिकारी ने बताया, "हमें वन विभाग से आवश्यक लकड़ी का बड़ा हिस्सा प्राप्त हुआ था. इन सभी रथों का निर्माण किए जाने से पहले एक औपचारिक पूजा भी की गई थी."
- इस शुभ दिन से जगन्नाथ मंदिर की 42 दिवसीय चंदन यात्रा की भी शुरू हो जाती है. चंदन यात्रा 42 दिनों तक दो भागों में मनाई जाती है. इनमें से एक बहरा (बाहरी) चंदन होता है और दूसार भीतरा (आंतरिक) चंदन होता है और दोनों 21 दिनों का होता है.
- पहले 21 दिनों में, जगन्नाथ मंदिर के मुख्य देवताओं - मदनमोहन, राम, कृष्ण, लक्ष्मी और सरस्वती - की प्रतिनिधि मूर्तियों को गर्मियों की शाम के दौरान जल क्रीड़ा का आनंद लेने के लिए मंदिर से नरेन्द्र तालाब तक जुलूस के रूप में ले जाया जाता है.
- पांच शिव जिन्हें पंच पांडव के नाम से जाना जाता है, अर्थात् लोकनाथ, यमेश्वर, मार्कंडेय, कपाल मोचन और नीलकंठ, भी मदनमोहन के साथ नरेंद्र तालाब तक जाते हैं. मदनमोहन, लक्ष्मी और सरस्वती को एक नाव में और राम, कृष्ण और पंच पांडवों को दूसरी नाव में रखा जाता है ताकि देवता संगीत और नृत्य के साथ तालाब में शाम की सैर का आनंद ले सकें. वहीं चंदन यात्रा के अंतिम 21 दिन मंदिर के अंदर मनाए जाते हैं.
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