प्रतीकात्मक तस्वीर.
नई दिल्ली:
यूपी के कानपुर में बीते दिनों एसपी पूर्वी पद पर तैनात आईपीएस अफसर सुरेंद्र दास ने जहर खाकर जान दे दी थी. आत्महत्या के पीछे घरेलू कलह की बात सामने आई थी. इस घटना के बाद पुलिस अफसरों के आत्महत्या करने को लेकर बहस छिड़ गई है. कुछ समय पहले यूपी में ही एक और आईपीएस अफसर ने आत्महत्या की थी. सुरेंद्र दास से पहले एसटीएफ में तैनात राजेश साहनी ने आत्महत्या की थी. पुलिस महकमे में आत्महत्या को लेकर शासन व्यवस्था पर सवाल उठ रहे हैं.शासन अपने वरिष्ठ अधिकारियों को बचाने के लिए क्या कदम उठा रहा है या किस तरह की परिस्थितियों के बीच अधिकारी मौत को गले लगा रहे हैं, शासन-प्रशासन का क्या रवैया है, इन मुद्दों पर न्यूज एजेंसी आईएएनएस ने मौजूदा समय में उत्तर प्रदेश के आईजी नागरिक सुरक्षा अमिताभ ठाकुर से बातचीत की.
आखिर क्यों जहर खा लिया कानपुर के IPS सुरेंद्र दास ने , पांच दिन तक चला जिंदगी-मौत का संघर्ष
आईपीएस अधिकारियों के आत्महत्या पर आप क्या कहेंगे, इस सवाल पर आईजी नागरिक सुरक्षा अमिताभ ठाकुर ने कहा कि यह अपने आप में बहुत कष्टप्रद व गंभीर मुद्दा है और कहीं न कहीं सेवा संबंधी परिस्थितियां की तरफ इशारा करता है. हालांकि, सुरेंद्र दास की खुदकुशी की वजहें निजी हैं, लेकिन कुल मिलाकर आप जिस माहौल में रहते हैं, उसका असर भी हो जाता है.प्रशासनिक जिम्मेदारियों के साथ, निजी व सामाजिक जिम्मेदारियां रहती हैं. क्या इससे तनाव पनपता है, इस पर ठाकुर ने कहा कि अधिकारी को कभी-कभी निजी मामलों के लिए भी समय नहीं मिल पाता है और इससे वह प्रभावित हो जाता है.
कानपुर : जिंदगी की जंग हारे आईपीएस सुरेन्द्र दास, पांच दिन पहले खा लिया था जहर
क्या माना जाए कि वर्क प्रेशर की वजह से ऐसा हो रहा है, इस पर अमिताभ ठाकुर ने कहा, नहीं, मेरा मानना है कि वर्क प्रेशर एक जरूरी एलिमेंट है. समय नहीं मिलने से व्यक्ति परेशान हो जाता है, व्यग्र हो जाता है, तनाव में रहता है, मानसिक तनाव ज्यादा रहता है. हमने आईआईएम के एक शोध में पाया है कि पुलिस विभाग में दूसरे विभागों की तुलना में तनाव ज्यादा रहता है. इससे 60 फीसदी तक कार्य क्षमता पर प्रभाव पड़ता है.पुलिस सुधार पर आप क्या कहेंगे, इस पर ठाकुर ने कहा कि पुलिस में सुधार एक बड़ा विषय है. इसमें अन्य सुधारों के साथ मानव संसाधन प्रबंधन व विभागीय संस्कृति व कार्य पद्धति में परिवर्तन जरूरी है.यह पूछे जाने पर कि क्या आईपीएस अधिकारी राजनीतिक दबाव में रहते हैं, अमिताभ ठाकुर ने कहा कि निश्चित रूप से रहते हैं। यह निर्विवाद सत्य है. काम ही ऐसा है कि अंतर-संबंध बन जाते हैं.
इस हालात में क्या बदलाव किए जाने की जरूरत है, इस पर उन्होंने कहा कि प्रशासनिक अधिकारियों के लिए बोर्ड बनाकर तबादला व तैनाती की जानी चाहिए. इसके लिए स्वतंत्र बोर्ड की जरूरत हैं जो प्रोफेशनल तरीके से निर्णय ले.इस सवाल पर कि आप ने बहादुरी से राजनीतिक दबाव का सामना किया, उस पर आप क्या कहेंगे, ठाकुर ने कहा कि हां, मुझे काफी झेलना पड़ा और मैंने बर्दाश्त भी किया, लेकिन हार नहीं मानी.क्या माना जाए कि आत्महत्या करने वाले अधिकारी दबाव बर्दाश्त नहीं कर सके, इस पर उन्होंने कहा, जी, बिल्कुल बर्दाश्त नहीं कर सके.
अधिकारियों की आत्महत्या से जुड़ी जांच होती हैं और फिर ठंडे बस्ते में चली जाती हैं. इनके नतीजों का पता नहीं चलता. इस पर आप क्या कहेंगे, इस सवाल पर ठाकुर ने कहा कि जांच के नतीजों को सार्वजनिक किया जाना चाहिए, जिस तरह से जांच की घोषणा की जाती ह.। उसी तरह से नतीजों की भी घोषणा होनी चाहिए। पारदर्शिता बहुत जरूरी है.यह पूछे जाने पर कि उत्तर प्रदेश पुलिस में क्या आमूल-चूल परिवर्तन होने चाहिए, अमिताभ ठाकुर कहते हैं कि मुझे लगता है कि अधिकारी-कर्मचारी के बीच दूरियां बनाई गईं हैं. निर्णय ज्यादा लोकतांत्रिक व सम्यक विचारों पर आधारित होना चाहिए. अधिकारी व कर्मचारी की बीच की दूरी खत्म होनी चाहिए. अलोकतांत्रिक रवैया बदला जाना चाहिए व अच्छी कार्य पद्धति को आगे बढ़ाना चाहिए. क्या प्रशासनिक अधिकारियों की छुट्टियों में कमी का असर कार्य पड़ता है, इस पर ठाकुर ने कहा कि हां, बिल्कुल असर होता है. छुट्टियों की कमी का असर पुलिस बलों पर ज्यादा पड़ता है. (इनपुट-IANS से)
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आईपीएस अधिकारियों के आत्महत्या पर आप क्या कहेंगे, इस सवाल पर आईजी नागरिक सुरक्षा अमिताभ ठाकुर ने कहा कि यह अपने आप में बहुत कष्टप्रद व गंभीर मुद्दा है और कहीं न कहीं सेवा संबंधी परिस्थितियां की तरफ इशारा करता है. हालांकि, सुरेंद्र दास की खुदकुशी की वजहें निजी हैं, लेकिन कुल मिलाकर आप जिस माहौल में रहते हैं, उसका असर भी हो जाता है.प्रशासनिक जिम्मेदारियों के साथ, निजी व सामाजिक जिम्मेदारियां रहती हैं. क्या इससे तनाव पनपता है, इस पर ठाकुर ने कहा कि अधिकारी को कभी-कभी निजी मामलों के लिए भी समय नहीं मिल पाता है और इससे वह प्रभावित हो जाता है.
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क्या माना जाए कि वर्क प्रेशर की वजह से ऐसा हो रहा है, इस पर अमिताभ ठाकुर ने कहा, नहीं, मेरा मानना है कि वर्क प्रेशर एक जरूरी एलिमेंट है. समय नहीं मिलने से व्यक्ति परेशान हो जाता है, व्यग्र हो जाता है, तनाव में रहता है, मानसिक तनाव ज्यादा रहता है. हमने आईआईएम के एक शोध में पाया है कि पुलिस विभाग में दूसरे विभागों की तुलना में तनाव ज्यादा रहता है. इससे 60 फीसदी तक कार्य क्षमता पर प्रभाव पड़ता है.पुलिस सुधार पर आप क्या कहेंगे, इस पर ठाकुर ने कहा कि पुलिस में सुधार एक बड़ा विषय है. इसमें अन्य सुधारों के साथ मानव संसाधन प्रबंधन व विभागीय संस्कृति व कार्य पद्धति में परिवर्तन जरूरी है.यह पूछे जाने पर कि क्या आईपीएस अधिकारी राजनीतिक दबाव में रहते हैं, अमिताभ ठाकुर ने कहा कि निश्चित रूप से रहते हैं। यह निर्विवाद सत्य है. काम ही ऐसा है कि अंतर-संबंध बन जाते हैं.
इस हालात में क्या बदलाव किए जाने की जरूरत है, इस पर उन्होंने कहा कि प्रशासनिक अधिकारियों के लिए बोर्ड बनाकर तबादला व तैनाती की जानी चाहिए. इसके लिए स्वतंत्र बोर्ड की जरूरत हैं जो प्रोफेशनल तरीके से निर्णय ले.इस सवाल पर कि आप ने बहादुरी से राजनीतिक दबाव का सामना किया, उस पर आप क्या कहेंगे, ठाकुर ने कहा कि हां, मुझे काफी झेलना पड़ा और मैंने बर्दाश्त भी किया, लेकिन हार नहीं मानी.क्या माना जाए कि आत्महत्या करने वाले अधिकारी दबाव बर्दाश्त नहीं कर सके, इस पर उन्होंने कहा, जी, बिल्कुल बर्दाश्त नहीं कर सके.
अधिकारियों की आत्महत्या से जुड़ी जांच होती हैं और फिर ठंडे बस्ते में चली जाती हैं. इनके नतीजों का पता नहीं चलता. इस पर आप क्या कहेंगे, इस सवाल पर ठाकुर ने कहा कि जांच के नतीजों को सार्वजनिक किया जाना चाहिए, जिस तरह से जांच की घोषणा की जाती ह.। उसी तरह से नतीजों की भी घोषणा होनी चाहिए। पारदर्शिता बहुत जरूरी है.यह पूछे जाने पर कि उत्तर प्रदेश पुलिस में क्या आमूल-चूल परिवर्तन होने चाहिए, अमिताभ ठाकुर कहते हैं कि मुझे लगता है कि अधिकारी-कर्मचारी के बीच दूरियां बनाई गईं हैं. निर्णय ज्यादा लोकतांत्रिक व सम्यक विचारों पर आधारित होना चाहिए. अधिकारी व कर्मचारी की बीच की दूरी खत्म होनी चाहिए. अलोकतांत्रिक रवैया बदला जाना चाहिए व अच्छी कार्य पद्धति को आगे बढ़ाना चाहिए. क्या प्रशासनिक अधिकारियों की छुट्टियों में कमी का असर कार्य पड़ता है, इस पर ठाकुर ने कहा कि हां, बिल्कुल असर होता है. छुट्टियों की कमी का असर पुलिस बलों पर ज्यादा पड़ता है. (इनपुट-IANS से)
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