एक आदमी था. वह अपनी लग्जरी कार से शहर की सड़कों को रोजाना नापता रहता था. इस दौरान उसने देखा कि अकसर एक परिवार स्कूटर पर सवार होकर एक साथ कहीं जाता है. स्कूटर में इतनी छोटी सी जगह में बच्चे माता-पिता के बीच किसी तरह से एडजस्ट हो पाते थे. उन्हें देखकर ऐसा लगता था जैसे उनकी हालत किसी सैंडविज जैसी हो. यह देखर उस आदमी के अंदर का इंसान जाग जाता था. वह सोचने लगता था कि कितना अच्छा होता कि इन लोगों के पास एक छोटी सी ही सही लेकिन एक कार होती. वे लोग कार में आराम से सीट पर बैठकर जाते. उन्हें धूल और बारिश की भी चिंता नहीं सताती. स्कूटर पर इस तरह लदकर जाते लोगों को देखकर उस आदमी को एक छोटी कार बनाने की सोची. इसके बाद से वह सस्ती कार के सपने को जमीन पर उतारने में लग गया. निचले मध्य वर्ग के लोगों के लिए सस्ती कार का सपना देखने वाले इस व्यक्ति का नाम था रतन नवल टाटा.रतन टाटा ने अपने इस सपने को कई बार लोगों से साझा भी किया था.
अपने इस सपने को लेकर ही रतन टाटा ने एक बार सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म इंस्टाग्राम पर एक पोस्ट में लिखा था कि आर्किटेक्चर स्कूल से होने का फायदा यह था कि मैं खाली समय में डूडल बनाता था.उन्होंन लिखा था,''मैंने खाली समय में डूडल बनाते समय यह सोचता था कि मोटरसाइकिल ही अगर ज्यादा सुरक्षित हो जाए तो कैसा रहेगा. ऐसा सोचते-सोचते मैंने एक कार का डूडल बनाया, जो एक बग्घी जैसा दिखता था. उसमें दरवाजे तक नहीं थे. इसके बाद मैंने सोच लिया कि मुझे ऐसे लोगों के लिए कार बनानी चाहिए और फिर टाटा नैनो अस्तित्व में आई, जो कि हमारे आम लोगों के लिए थी. हमारे लोगों का यहां मतलब देश की वैसी जनता से है, जो कार के सपने तो देखती है, लेकिन वह कार खरीदने में सक्षम नहीं है.'' रतन टाटा ने जिस कार का सपना देखा, उसे नाम दिया- टाटा नैनो. टाटा की यह कार लखटकिया के नाम से भी मशहूर हुई.
रतन टाटा ने टाटा नैनो के डिजाइन का जिम्मा सौंपा था गिरीश वाघ को. दरअसल गिरीश बाघ टाटा की एक और ड्रीम प्रोजक्ट को सफलतापूर्वक पूरा किया था. इस टीम ने टाटा 'एस'नाम से छोटा ट्रक बनाया था.यह छोटा ट्रक छोटा हाथी के नाम से काफी मशहूर हुआ. वाघ और उनकी टीम ने करीब पांच साल तक नैनो पर काम किया.
रतन टाटा ने 18 मई 2006 को पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री और माकपा नेता बुद्धदेव भट्टाचार्य और कॉमर्स मंत्री निरुपम सेन के साथ बैठक की. इसके बाद उन्होंने ऐलान किया कि टाटा नैनो का कारखाना पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के सिंगूर में लगाया जाएगा.इस परियोजना के लिए करीब एक हजार एकड़ जमीन की जरूरत थी. प्रशासन ने जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू की.
आज पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठीं ममता बनर्जी उन दिनों अपनी पार्टी का आधार बढ़ाने की कोशिशों में लगी हुई थीं. उन्होंने टाटा नैनो के लिए जमीन अधिग्रहण का विरोध किया. वो सिंगूर जाने की जिद करने लगीं. लेकिन पुलिस ने उन्हें 30 नवंबर 2006 को सिंगूर जाने से रोक दिया.इसके विरोध में विधानसभा में तृणमूल के विधायकों ने जमकर हंगामा किया.इसके बाद ममता ने जमीन अधिग्रहण के खिलाफ कोलकाता में तीन दिसंबर 2006 से आमरण अनशन शुरू कर दिया. उन्होंने इस परियोजना के खिलाफ लंबा आंदोलन चलाया.
टाटा नैनो का कारखाना 3,340 ट्रकों और करीब पांच सौ कंटेनरों पर सवार होकर सिंगूर से साणंद पहुंचा. इस काम में सात महीने का समय लगा. टाटा ने अपना प्लांट साणंद में लगाया. वहां टाटा नैनो का उत्पादन शुरू हुआ.रतन टाटा ने 10 जनवरी 2008 को दिल्ली के प्रगति मैदान में आयोजित दिल्ली ऑटो एक्सपो में टाटा नैनो को लोगों के सामने प्रदर्शित किया. टाटा नैनो के बेसिक मॉडल की कीमत रखी गई थी, एक लाख रुपये. इस अवसर पर रतन टाटा ने अपना सपना दोहराते हुए कहा था कि वो भारतीय परिवारों को कम कीमत में ट्रांसपोर्ट का एक बेहतर माध्यम उपलब्ध कराना चाहते हैं.
इसे कार को लोगों ने हाथों-हाथ लिया. टाटा ने कार की मांग को देखते हुए लॉटरी से पहले एक लाख कारों को देने का फैसला किया. इसके लिए दो लाख से अधिक लोगों ने आवेदन किया. इनमें से एक लाख लोगों का चयन टाटा नैनो कार देने के लिए हुआ.रतना टाटा ने मुंबई में पहली टाटा नैनो की चाबी अपने हाथों से सौंपी थी.उन्होंने 17 जुलाई 2009 को पहली टाटा नैनो कार की चाबी कस्टम विभाग के कर्मचारी अशोक रघुनाथ विचारे को सौंपी.
साल 2009 में सड़कों पर उतरने के बाद टाटा नैनो की रफ्तार 2019 आते-आते दम तोड़ने लगी. हालत यह हो गई कि 2019 के पहले नौ महीनों में एक भी टाटा नैनो कार नहीं बनी थी. उस पूरे साल इस कार की केवल एक यूनिट बिकी थी. वह भी फरवरी के महीने में. उसके बाद से टाटा ने टाटा नैनो का उत्पादन ही बंद कर दिया. अब ऐसी खबरें हैं कि टाटा नैनो के ईवी वर्जन को लांच कर सकता है.
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