
औषधीय पौधों के अर्क से वैज्ञानिकों ने एक ऐसे जिंक ऑक्साइड नैनोकण (Zinc Oxide Nanoparticles) का निर्माण किया हैं जो खतरनाक बैक्टीरिया को खत्म करने में असरदार और पर्यावरण के लिए सुरक्षित हैं. एनआईटी राउरकेला (NIT Rourkela) के वैज्ञानिकों का यह शोध एंटीबायोटिक के बढ़ते दुरुपयोग से बने 'सुपरबग्स' के खिलाफ लड़ाई में मददगार साबित होगा. एंटीबायोटिक दवाओं के अधिक खुराक और गलत तरीके के इस्तेमाल से कई बैक्टीरिया नहीं मरते हैं. ऐसे बैक्टीरिया को 'सुपरबग्स' कहा जाता है. यह इंसानों में गंभीर बीमारियां फैला सकते हैं और इन पर आम एंटीबायोटिक का असर नहीं होता है.
NIT राउरकेला ने कैसे तैयार की दवा?
वैज्ञानिकों ने जिंक ऑक्साइड से बने बहुत छोटे नैनोकण तैयार किए हैं. ये इतने छोटे होते हैं कि हजारों कण एक बाल की चौड़ाई में आ सकते हैं. ये नैनोकण बैक्टीरिया की झिल्ली तोड़ते हैं और उसे खत्म कर देते हैं.
आमतौर पर इन कणों को बनाने में जहरीले रसायन का प्रयोग किया जाता हैं, जो पर्यावरण और स्वास्थ्य दोनों के लिए नुकसानदेह हैं. लेकिन वैज्ञानिकों ने गेंदे के फूल, आम और यूकैलिप्टस के पत्तों व फूलों के प्राकृतिक अर्क से ही नैनोकण का निर्माण किया. ये अर्क न सिर्फ नैनोकणों को स्थिर बनाते हैं बल्कि उनमें खुद भी एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं.
यह शोध प्रसिद्ध वैज्ञानिक जर्नल सरफेसस एंड इंटरफेसस में छपा है. वैज्ञानिकों के अनुसार, फाइटोकोरोना तकनीक से बने ये नैनोकण पारंपरिक तरीकों से बने नैनोकणों के मुकाबले में दो गुना ज्यादा असरदार हैं.
आत्मनिर्भर भारत की दिशा में कदम
अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता और एनआईटी राउरकेला में जीवन विज्ञान विभाग के एसोसिएट प्रोफसर सुमन झा ने कहा, ' अर्क में मौजूद फ्लेवोनोइड्स, एल्कलॉइड्स, टैनिन और फेनोलिक यौगिक संक्रमण से लड़ने में मदद करते हैं. इस तकनीक को आसानी से बड़े स्तर पर अपनाया जा सकता है और ये महंगी आयातित दवाओं पर निर्भरता को भी कम कर देगा.' उन्होंने कहा कि फाइटोकोरोना तकनीक से बने हरित नैनोकण सुरक्षित, सस्ते और पर्यावरण-अनुकूल हैं, जो एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस से लड़ने में एक नया रास्ता खोलते हैं.' एक्सपर्ट्स का कहना है कि यह शोध आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य को पूरा करता है और सतत स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली को मजबूत करने की दिशा में बड़ा कदम है.
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