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जैसलमेर में खुला 20 करोड़ साल पुराना राज, मिला डायनासोर के जमाने का 'मगरमच्‍छ'  

फाइटोसॉर मगरमच्छ जैसा दिखता था और यह जीवाश्म करीब 20 करोड़ साल पुराना है. यह मध्यम आकार का फाइटोसॉर था जो संभवतः नदी किनारे रहता था और मछलियों को खाकर जीवित रहता था.

जैसलमेर में खुला 20 करोड़ साल पुराना राज, मिला डायनासोर के जमाने का 'मगरमच्‍छ'  
  • जैसलमेर के मेघा गांव में 20 करोड़ साल पुराना मगरमच्छ जैसा फाइटोसॉर जीवाश्म मिला, जो पहली बार संरक्षित मिला है.
  • फाइटोसॉर लगभग डेढ़ से दो मीटर लंबा था और अंडे के साथ मिलने से उसके प्रजनन व्यवहार का भी अनुमान लगाया गया है.
  • यह जीवाश्म जैसलमेर के पश्चिमी इलाके के जुरासिक युग के जलीय वातावरण का प्रमाण है जहां नदी और समुद्र दोनों थे.
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जैसलमेर:

20 करोड़ साल पहले राजस्‍थान में क्‍या था और वह कैसा दिखता था... क्‍या वहां पर पानी था या फिर दूर-दूर तक सिर्फ रेतीला रेगिस्‍तान था? ऐसे न जानें कितने सवाल आपके दिमाग में आते होंगे और आप भी कभी-कभी इसका जवाब तलाशने की कोशिशें करते होंगे. अगर अब तक आपको ये जवाब नहीं मिले हैं तो आने वाले समय में मिल सकते हैं. राजस्‍थान के जैसलमेर में वैज्ञानिकों को एक ऐसे डायनासोर का जीवाश्‍म मिला है जो एकदम मगरमच्‍छ जैसा दिखता था. यह 20 करोड़ साल पुराना है और आप इसे डायनासोर के जमाने का मगरमच्‍छ भी कह सकते हैं. 

थार में था खूब सारा पानी ! 

जैसलमेर के मेघा गांव में मिला डायनासोर के जीवाश्म की पहचान वैज्ञानिकों ने फाइटोसॉर (Phytosaur) के तौर पर की है. यह भारत के लिए बेहद रोमांचक खोज है क्योंकि देश में पहली बार किसी फाइटोसॉर का इतनी अच्छी तरह संरक्षित जीवाश्म मिला है. साल 2023 में बिहार-मध्यप्रदेश की सीमा पर फाइटोसॉर की एक किस्म का जीवाश्म मिला था. वहीं वैज्ञानिकों का कहना है कि जैसलमेर का यह जीवाश्म भारत में पहला पक्का और संरक्षित फाइटोसॉर जीवाश्म है. इससे यह पता लगता है कि करोड़ों साल पहले थार मरुस्थल का यह क्षेत्र जलीय जीवन से भरपूर रहा होगा. 

फाइटोसॉर करीब 30 करोड़ साल पुराने हो सकते हैं

फाइटोसॉर करीब 30 करोड़ साल पुराने हो सकते हैं

डेढ़ से दो मीटर लंबा 

लगभग डेढ़ से दो मीटर लंबा यह जीवाश्म पास में मिले एक अंडे के साथ मिला है. इससे यह अनुमान लगाया जा रहा है कि यह अंडा भी उसी सरीसृप का हो सकता है. मौके पर गए वज्ञानिकों का कहना था की ऐसा लग रहा था की ये फाइटोसॉर अंडे को अपने बगल में दबा के बैठा है. एनडीटीवी से बात करते हुए भूवैज्ञानिक डॉ. नारायण दास इनाखिया ने कहा, 'इस फाइटोसॉर की खोज के साथ जैसलमेर अब देश में सबसे बड़े और व्यापक जीवाश्म स्थलों में शामिल हो गया है.

जैसलमेर का पश्चिमी इलाका  

180 मिलियन साल पहले यह क्षेत्र जुरासिक युग का हिस्सा था जहां डायनासोर फलते-फूलते थे. उन्‍होंने कहा कि जैसलमेर का पश्चिमी इलाका जिसे ‘लाठी फॉर्मेशन' कहा जाता है, करीब 100 किलोमीटर लंबा और 40 किलोमीटर चौड़ा है. यहां की चट्टानें मीठे पानी, समुद्री जीवन और जलीय वातावरण या एक्‍वाकल्‍चर का बड़ा सबूत हैं. यही कारण है कि यहां फाइटोसॉर मिला है क्योंकि उस समय यहां एक तरफ नदी और दूसरी तरफ समुद्र रहा होगा.' 

यह जीवाश्म करीब 20 करोड़ साल पुराना

यह जीवाश्म करीब 20 करोड़ साल पुराना

कैसे मिला यह जीवाश्‍म 

यह जीवाश्म मेघा गांव के प्राचीन तालाब के पास मिला जब स्थानीय लोग तालाब की सफाई कर रहे थे. गांववालों ने तस्वीरें खींचकर जिला प्रशासन और पुरातत्व विभाग को सूचना दी. इसके बाद डॉ. नारायण दास इनाखिया की अगुवाई में भूवैज्ञानिकों की टीम मौके पर पहुंची. फिर जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर के पृथ्वी विज्ञान विभाग के डीन और वरिष्ठ जीवाश्म विज्ञानी प्रो. वी. एस. परिहार ने जीवाश्म का निरीक्षण कर इसे फाइटोसॉर बताया. 

मछलियों को खाकर रहता जिंदा 

फाइटोसॉर मगरमच्छ जैसा दिखता था और यह जीवाश्म करीब 20 करोड़ साल पुराना है. यह मध्यम आकार का फाइटोसॉर था जो संभवतः नदी किनारे रहता था और मछलियों को खाकर जीवित रहता था. फाइटोसॉर करीब 30 करोड़ साल पुराने भी हो सकते हैं और यह प्रारंभिक जुरासिक काल से भी संबंधित हो सकता है. मेघा गांव की यह खोज दुर्लभ और वैज्ञानिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण मानी जा रही है. 

और कौन-कौन सी खोज 

जैसलमेर में इससे पहले भी कई महत्वपूर्ण खोजें हुई हैं-

थियाट गांव में हड्डियों के जीवाश्म मिले थे. 
उसके बाद डायनासोर के पैरों के निशान (फुटप्रिंट) मिले. 
2023 में डायनासोर का अंडा अच्छी स्थिति में मिला. 

मेघा गांव की यह खोज दुर्लभ मानी जा रही है

मेघा गांव की यह खोज दुर्लभ मानी जा रही है

यह खोज जैसलमेर की पांचवीं जीवाश्म खोज है. इससे इसे सही मायनों में 'भारत का जुरासिक पार्क' कहा जा सकता है. डॉक्‍टर इनाखिया ने आगे कहा, 'जैसलमेर में जियो-टूरिज्‍म की अपार संभावनाएं हैं. यहां पर जड़ (रूट) जीवाश्म, समुद्री जीवाश्म और डायनासोर जीवाश्म हैं जिन्हें सुरक्षित और संरक्षित कर वैज्ञानिक अध्ययन के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए. इसके अलावा तानोट क्षेत्र में पाई जाने वाली भूमिगत सरस्वती नदी की धाराएं भी जियोलॉजिकल दृष्टि से बहुत रोचक हैं. ये 5–6 हजार साल पुराने वेदकालीन हैं जबकि जैसलमेर के जीवाश्म 180 मिलियन साल पुराने हैं.' 

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