जलवायु परिवर्तन मंत्री डॉ हर्षवर्धन (फाइल फोटो)
बॉन:
भारत ने विकसित देशों को एक बार फिर ये साफ कर दिया है कि वह कोयले का इस्तेमाल तुरंत बन्द नहीं कर सकता, क्योंकि गरीबी मिटाना उसकी प्राथमिकता है. हालांकि, भारत ने यह बात भी दोहराई है कि वह साफ ऊर्जा के इस्तेमाल को बढ़ाने के लिये तमाम कोशिश करता रहेगा. जर्मनी में चल रहे जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में गुरुवार को वन पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्री डॉ हर्षवर्धन ने कहा, ‘भारत में योजनाबद्ध क्रियान्वयन और आर्थिक सुधारों की वजह से कार्बन उत्सर्जन की तीव्रता कम हुई है. लम्बी योजना के तहत ऊर्जा के उत्पादन में कार्बन उत्सर्जन न हो इसके लिये कदम उठाये जा रहे हैं. हालांकि, जनता को घर, बिजली और खाद्य सुरक्षा देना है और इसके लिये गरीबी मिटाना प्राथमिकता बनी रहेगी.’
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अमेरिका यूरोप और दूसरे विकसित देश भारत और चीन पर अत्यधिक कार्बन उत्पादन के लिये निशाना साधते रहते हैं. आज चीन कार्बन उत्सर्जन में पहले नंबर पर है और इसके बाद अमेरिका और यूरोपीय यूनियन का नंबर आता है. भारत का नंबर इस मामले में चौथा है, लेकिन उसके उत्सर्जन फिर भी काफी कम हैं. प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन के हिसाब से देखें, तो एक औसत अमेरिकी हर रोज अपनी लाइफ स्टाइल की वजह से जितना कार्बन पर्यावरण में छोड़ता है वह पांच भारतीयों के कार्बन फुट प्रिंट के बराबर है.
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विकसित देशों के एक औसत व्यक्ति का फुट प्रिंट तीन भारतीयों के बराबर है. फिर भी भारत ने साफ ऊर्जा के इस्तेमाल को बढ़ाने के लिये पेरिस डील में कई वादे किये हैं. आज भारत की 80 प्रतिशत बिजली कोयले से बनती है. साफ ऊर्जा का हिस्सा केवल 20 प्रतिशत है, जो कि सौर और पवन ऊर्जा के साथ बायोमास और छोटे हाइड्रो प्रोजेक्ट्स से आता है. भारत ने यह वादा किया है कि वह 2022 तक 1,75,000 मेगा वॉट साफ ऊर्जा बनायेगा. देश में आज भी 30 करोड़ लोगों के पास बिजली नहीं है, इसलिये कोयले का इस्तेमाल तुरंत बंद नहीं हो सकता है.
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क्रिश्चन एड के राम किशन कहते हैं, ‘भारत के मंत्री डॉ हर्षवर्धन ने जो कहा है वह उस नीति के तहत ही है जो भारत दोहराता रहा है. भारत सरकार कहती रही है कि देश में बड़ी आबादी गरीबी की रेखा के नीचे है और उसे गरीबी से निकालना और ज़रूरी सुविधायें देना बहुत ज़रूरी है. फिलहाल, कोयले के इस्तेमाल पर टिके रहना देश की मजबूरी है, लेकिन ये भी सच है कि कोयला खनन और कोयले का इस्तेनमाल गरीबों को ही विस्थापित करता है और नुकसान पहुंचाता है. इसलिये धीरे-धीरे भारत को कोयले से दूर होने के प्रयास करते रहने होंगे. कोयला हर वक्त साथ नहीं रखा जा सकता.’
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अमेरिका यूरोप और दूसरे विकसित देश भारत और चीन पर अत्यधिक कार्बन उत्पादन के लिये निशाना साधते रहते हैं. आज चीन कार्बन उत्सर्जन में पहले नंबर पर है और इसके बाद अमेरिका और यूरोपीय यूनियन का नंबर आता है. भारत का नंबर इस मामले में चौथा है, लेकिन उसके उत्सर्जन फिर भी काफी कम हैं. प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन के हिसाब से देखें, तो एक औसत अमेरिकी हर रोज अपनी लाइफ स्टाइल की वजह से जितना कार्बन पर्यावरण में छोड़ता है वह पांच भारतीयों के कार्बन फुट प्रिंट के बराबर है.
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विकसित देशों के एक औसत व्यक्ति का फुट प्रिंट तीन भारतीयों के बराबर है. फिर भी भारत ने साफ ऊर्जा के इस्तेमाल को बढ़ाने के लिये पेरिस डील में कई वादे किये हैं. आज भारत की 80 प्रतिशत बिजली कोयले से बनती है. साफ ऊर्जा का हिस्सा केवल 20 प्रतिशत है, जो कि सौर और पवन ऊर्जा के साथ बायोमास और छोटे हाइड्रो प्रोजेक्ट्स से आता है. भारत ने यह वादा किया है कि वह 2022 तक 1,75,000 मेगा वॉट साफ ऊर्जा बनायेगा. देश में आज भी 30 करोड़ लोगों के पास बिजली नहीं है, इसलिये कोयले का इस्तेमाल तुरंत बंद नहीं हो सकता है.
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क्रिश्चन एड के राम किशन कहते हैं, ‘भारत के मंत्री डॉ हर्षवर्धन ने जो कहा है वह उस नीति के तहत ही है जो भारत दोहराता रहा है. भारत सरकार कहती रही है कि देश में बड़ी आबादी गरीबी की रेखा के नीचे है और उसे गरीबी से निकालना और ज़रूरी सुविधायें देना बहुत ज़रूरी है. फिलहाल, कोयले के इस्तेमाल पर टिके रहना देश की मजबूरी है, लेकिन ये भी सच है कि कोयला खनन और कोयले का इस्तेनमाल गरीबों को ही विस्थापित करता है और नुकसान पहुंचाता है. इसलिये धीरे-धीरे भारत को कोयले से दूर होने के प्रयास करते रहने होंगे. कोयला हर वक्त साथ नहीं रखा जा सकता.’
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