श्रीलंका का कच्चाथीवू द्वीप (Katchatheevu Island) इस वक्त देश में एक बड़ा मुद्दा बन गया है. लोकसभा चुनाव 2024 (lok sabha election 2024) से पहले पक्ष और विपक्ष के बीच इसको लेकर जमकर बयानबाजी हो रही है. वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने इस विवाद पर कहा कि जब दो देशों के बीच कोई समझौता होता है तो लेन-देन होते हैं, लेकिन ये मामला अलग इसलिए है क्योंकि इसमें कोई लेन-देन नहीं हुआ था.
मुकुल रोहतगी ने एनडीटीवी से विशेष बातचीत में कहा कि भारत ने कच्चाथीवू के बदले में कुछ भी नहीं लिया और श्रीलंका को द्वीप दे दिया था.
कच्चाथीवू ब्रिटिश काल से ही एक विवादित क्षेत्र रहा है. द्वीप राष्ट्र के साथ एक समझौते के तहत 1974 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसे श्रीलंका को दे दिया था.
तमिलनाडु में राजनीतिक जमीन तलाश रही बीजेपी के प्रदेश प्रमुख के अन्नामलाई ने इसको लेकर एक आरटीआई भी दायर की है.
2014 में जब मुकुल रोहतगी अटॉर्नी जनरल थे, तब उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि कच्चाथीवू द्वीप को फिर से हासिल करने के लिए, "हमें युद्ध में जाना होगा." आज उस बयान के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने इसकी पृष्ठभूमि समझाई.
उन्होंने कहा, "मुझे याद है कि कुछ साल पहले, वर्तमान सरकार ने भी बांग्लादेश के साथ कुछ आदान-प्रदान किए थे, ये कुछ क्षेत्र थे. क्षेत्र का कुछ लेना-देना हो सकता है, लेकिन इस मामले में ये केवल देना था, द्वीप को श्रीलंका को सौंप दिया गया था. द्वीप क्यों सौंप दिया गया, बदले में हमें क्या मिला, ये ऐसे सवाल हैं जिनका कांग्रेस को जवाब देना चाहिए."
तमिलनाडु की सत्तारूढ़ द्रमुक ने कहा कि यदि पीएम मोदी कच्चाथीवू को लेकर इतने गंभीर होते तो वो अपने 10 सालों के कार्यकाल के दौरान उस द्वीप को फिर से हासिल कर सकते थे. पार्टी के वरिष्ठ नेता आरएस भारती ने पूछा कि तब कच्चाथीवू का मुद्दा क्यों नहीं उठाया गया?
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं