प्रतीकात्मक फोटो
नई दिल्ली:
भारत सरकार ने पाकिस्तान के इस्लामाबाद में अपने हाई कमीशन में काम कर रहे सभी राजनयिकों और बाकी स्टाफ को कहा है कि वो अपने बच्चों को वहां के स्कूलों से निकाल लें और या तो उन्हें भारत में पढ़ाएं या किसी अन्य देश में। ये हिदायत सुरक्षा के मद्देनजर दी गई है। इस हिदायत की ज़द में करीब 60 भारतीय बच्चे आएंगे, जिनमें से 50 वहां के अमेरिकन स्कूल में और 10 रूट्स इंटरनेशनल स्कूल में पढ रहे हैं। सरकार ने साफ कहा है कि हाई कमीशन का स्टाफ या तो अपने बच्चों को भारत वापस भेजे या फिर सपरिवार वापस आ जाएं।
पेशावर आर्मी स्कूल पर हमले के बाद से इस फैसले पर हो रहा था विचार
हालांकि अमेरिकन स्कूल में, जहां कई देशों के रजनयिकों के बच्चे पढ़ते हैं, वहां एक किले की तरह सुरक्षा इंतजाम हैं और कई अमेरिकन राजनयिकों ने इस फैसले को बदलने की भी गुज़ारिश की, लेकिन सरकार अपने फैसले पर कायम है। असल में इस इस्लामाबाद को 'नो स्कूल गोइंग' मिशन का दर्जा देने के फैसले पर दिसंबर, 2014 के पेशावर आर्मी स्कूल पर हमले के बाद से ही विचार हो रहा था। 'नो स्कूल गोइंग' मिशन के तहत पति या पत्नी तो वहां रह सकते हैं, लेकिन स्कूल जाने वाले बच्चों को साथ रखने की इजाज़त नहीं होती। यही नहीं बच्चों को स्कूल की तरफ से इस्लामाबाद से बाहर भी जाने के लिए पाकिस्तान के फॉरेन ऑफिस से इजाजत की जरूरत पड़ती है, जो कई बार नहीं भी मिलती है। इस बात को लेकर भी यहां दिल्ली में नाराजगी है।
जून, 2015 में ही लिया गया था ये फैसला : विकास स्वरूप
इस मामले पर बयान देते हुए विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने कहा है कि देश के बाहर के मिशनों में स्टाफ से जुड़ी नीतियों की समय-समय पर समीक्षा होती है, खासकर उन देशों के हालात को देखकर। ये हिदायत उसी समीक्षा का नतीजा है और इस्लामाबाद हाई कमीशन के स्टाफ को ये जानकारी दे दी गई है कि नए एकैडमिक सेशन से ये नियम लागू होगा। प्रवक्ता ने ये भी कहा कि ये फैसला जून, 2015 में ही ले लिया गया था, ताकि कर्मचारियों को अपने बच्चों के लिए इंतजाम करने का काफी वक्त मिले।
अब इस कदम के बाद पहले ही दोनों देशों के तनावपूर्ण रिश्तों में और खटास आने की आशंका है। इस बीच यहां दिल्ली में भी ये डर जताया जा रहा है कि पाकिस्तान हाई कमीशन के स्टाफ को भी उनका देश ऐसा ही करने को ना कहे।
पेशावर आर्मी स्कूल पर हमले के बाद से इस फैसले पर हो रहा था विचार
हालांकि अमेरिकन स्कूल में, जहां कई देशों के रजनयिकों के बच्चे पढ़ते हैं, वहां एक किले की तरह सुरक्षा इंतजाम हैं और कई अमेरिकन राजनयिकों ने इस फैसले को बदलने की भी गुज़ारिश की, लेकिन सरकार अपने फैसले पर कायम है। असल में इस इस्लामाबाद को 'नो स्कूल गोइंग' मिशन का दर्जा देने के फैसले पर दिसंबर, 2014 के पेशावर आर्मी स्कूल पर हमले के बाद से ही विचार हो रहा था। 'नो स्कूल गोइंग' मिशन के तहत पति या पत्नी तो वहां रह सकते हैं, लेकिन स्कूल जाने वाले बच्चों को साथ रखने की इजाज़त नहीं होती। यही नहीं बच्चों को स्कूल की तरफ से इस्लामाबाद से बाहर भी जाने के लिए पाकिस्तान के फॉरेन ऑफिस से इजाजत की जरूरत पड़ती है, जो कई बार नहीं भी मिलती है। इस बात को लेकर भी यहां दिल्ली में नाराजगी है।
जून, 2015 में ही लिया गया था ये फैसला : विकास स्वरूप
इस मामले पर बयान देते हुए विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने कहा है कि देश के बाहर के मिशनों में स्टाफ से जुड़ी नीतियों की समय-समय पर समीक्षा होती है, खासकर उन देशों के हालात को देखकर। ये हिदायत उसी समीक्षा का नतीजा है और इस्लामाबाद हाई कमीशन के स्टाफ को ये जानकारी दे दी गई है कि नए एकैडमिक सेशन से ये नियम लागू होगा। प्रवक्ता ने ये भी कहा कि ये फैसला जून, 2015 में ही ले लिया गया था, ताकि कर्मचारियों को अपने बच्चों के लिए इंतजाम करने का काफी वक्त मिले।
अब इस कदम के बाद पहले ही दोनों देशों के तनावपूर्ण रिश्तों में और खटास आने की आशंका है। इस बीच यहां दिल्ली में भी ये डर जताया जा रहा है कि पाकिस्तान हाई कमीशन के स्टाफ को भी उनका देश ऐसा ही करने को ना कहे।
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