पीएम मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच BRICS (ब्रिक्स) सम्मेलन से इतर बुधवार को द्विपक्षीय वार्ता हुई. ये बीते पांच सालों में पहला मौका था जब भारत और चीन के नेता द्विपक्षीय वार्ता के लिए एक टेबल पर एक साथ बैठे. भारत और चीन के बीच हुई यह बातचीत कूटनीतिक तौर पर भारत की बड़ी जीत की तरह है. या यूं कहें कि चीन भारत से द्विपक्षीय वार्ता करने के लिए कुछ हद तक मजबूर था, तो गलत नहीं होगा. भारत और चीन के बीच हुई बातचीत को जानकार मोदी सरकार की उस घेराबंदी का नतीजा भी मान रहे हैं जो बीते कुछ महीनों में अलग-अलग अंतरराष्ट्रीय मंच पर किया गया था. चलिए आज हम आपको उस क्रोनोलॉजी को समझाते हैं,जिसकी वजह से चीन, भारत से बातचीत करने के लिए तत्पर दिख रहा था.
भारत ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर किया नजरअंदाज
चीन अगर पांच साल बाद भारत से बातचीत करने के लिए तत्पर दिखा तो इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह भारत का वो कूटनीतिक दाव था, जिसके आगे चीन पस्त हो गया. दरअसल, बीते कुछ महीनों या यूं कहें कि बीते साल भर में भारत ने क्वाड से लेकर आसियान और अन्य अंतरराष्ट्रीय मंच पर चीन की घेराबंदी करते हुए उसकी विस्तारवादी नीतियों की आलोचना की है. साथ ही उनकी नीतियों का ना सिर्फ खुद विरोध किया बल्कि अन्य देशों से भी उसकी आलोचना करवाई. भारत की इस रणनीति से चीन अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में अलग-थलग सा पड़ने लगा. चीन को लगा कि अगर समय रहते चीजों को ठीक नहीं किया गया तो उसे बड़े स्तर पर इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा.
चीन को सताने लगा अर्थव्यवस्था के प्रभावित होने का डर
चीन भले सार्वजनिक तौर पर ये स्वीकार करे या नहीं लेकिन सच्चाई तो ये है कि बीते कुछ समय से भारत की घेराबंदी का असर चीन की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ा है. तमाम मंचों पर जिस तरह से भारत ने चीन को खरी-खरी सुनाई है उससे चीन अलग-थलग दिख रहा है. और उसकी आक्रमक छवि का नुकसान उसे व्यापार में भी झेलना पड़ रहा है. बीते कुछ समय से चीन की अर्थव्यवस्था धीमी वृद्धि दर,बढ़ रही बेरोजगारी और रियल एस्टेट क्राइसिस शामिल हैं. चीन की अर्थव्यवस्था दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला चीन बीते कुछ समय से खराब आर्थिक हालत से गुजर रहा है. ये गिरावट पिछले साल से ही शुरू हो गई थी. जो इस साल भी जारी है. ऐसे में चीन, भारत समेत अन्य देशों की नाराजगी झेलकर अपनी अर्थव्यस्था को और नुकसान नहीं पहुंचा सकता है.
क्वाड से लेकर आसियान तक जब चीन को भारत ने सुनाई खरी-खरी
पीएम मोदी पिछले महीने अपने अमेरिकी दौरे के दौरान क्वाड शिखर सम्मेलन में शामिल हुए थे. उनका ये दौरा भारत के लिए कई मायनों में खास साबित हुआ था. इस दौरे पर जहां पीएम मोदी ने कई अहम डिफेंस डील को पूरा किया था वहीं इशारों-इशारों में चीन को सीधा संदेश भी दिया था. इस सम्मेलन के दौरान भारत ने चीन की हर तरफ से घेराबंदी कर ली है.यही वजह रही कि इस सम्मेलन के दौरान सभी नेताओं ने दक्षिण चीन सागर में जबरदस्ती खौफ पैदा करने वाली गतिविधियों को लेकर भी अपनी गंभीर चिंता व्यक्त की.भारत ने आसियान सम्मेलन में भी चीन को सुनाया था. भारत ने आसियान सम्मलेन में चीन की विस्तारवादी नीति की आलोचना करते हुए, पड़ोसी देशों के साथ शांति स्थापित करने पर जोर देने की बात कही थी.
एस जयशंकर ने भी चीन को कही थी दो टूक
विदेश मंत्री एस जयशंकर (S jaishankar) ने बीते दिनों पाकिस्तान और चीन को दो टूक जवाब दिया था. SCO की बैठक को संबोधित करते हुए एस जयशंकर ने कहा था कि यदि सीमा पार की गतिविधियां आतंकवाद, उग्रवाद और अलगाववाद की तीन बुराइयों पर आधारित होंगी तो व्यापार, ऊर्जा और संपर्क सुविधा जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ने की संभावना नहीं है. जयशंकर ने आगे कहा था कि इस बात पर आत्मावलोकन करने की आवश्यकता है कि कहीं अच्छे पड़ोसी की भावना गायब तो नहीं है और भरोसे की कमी तो नहीं है.उन्होंने कहा कि व्यापार और संपर्क पहल में क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता को मान्यता दी जानी चाहिए और भरोसे की कमी पर ‘‘ईमानदारी से बातचीत'' करना आवश्यक है.
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