
दिल्ली के संरक्षित रिज क्षेत्र में पेड़ों की अवैध कटाई के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) को अवमानना का दोषी ठहराया है. जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने मंगलवार को यह फैसला सुनाया, जिसमें डीडीए के आचरण को "अवमाननापूर्ण" और "आपराधिक अवमानना" के दायरे में बताया गया. हालांकि, कोर्ट ने यह भी माना कि यह कटाई अर्धसैनिक बलों के लिए सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल (CAPFIMS) तक सड़क चौड़ी करने के उद्देश्य से की गई थी, जो प्रशासनिक गलत निर्णय की श्रेणी में आता है, न कि दुर्भावनापूर्ण इरादे से.
क्या है पूरा मामला
यह मामला पिछले साल 3 फरवरी 2024 को शुरू हुआ, जब मैदानगढ़ी में केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल आयुर्विज्ञान संस्थान (CAPFIMS) तक सड़क चौड़ी करने के लिए रिज क्षेत्र में पेड़ काटे गए. याचिकाकर्ता बिन्दु कपूरिया ने आरोप लगाया कि यह कटाई दिल्ली के उपराज्यपाल वी.के. सक्सेना के आदेश पर हुई, जिन्होंने उस दिन साइट का दौरा किया था. भारतीय वन सर्वेक्षण की रिपोर्ट के अनुसार, 1,670 पेड़ काटे गए, जबकि डीडीए ने दावा किया कि यह संख्या केवल 642 थी. सुप्रीम कोर्ट ने 21 जनवरी 2025 को इस अवमानना याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.
कोर्ट की सख्त टिप्पणी
जस्टिस सूर्यकांत ने फैसले में कहा, "कानून की महिमा सर्वोच्च है और अवमानना को संवैधानिक ढांचे द्वारा मान्यता दी गई है. यह न्यायिक स्वायत्तता से जुड़ा है, जब जानबूझकर उल्लंघन होता है, तो दृष्टिकोण सख्त होना चाहिए." कोर्ट ने डीडीए के आचरण को दो हिस्सों में बांटा: पहला, 1996 के आदेश का उल्लंघन, जिसमें पेड़ों की कटाई के लिए पूर्व अनुमति अनिवार्य थी; और दूसरा, यह तथ्य छिपाना कि पेड़ पहले ही काटे जा चुके थे. कोर्ट ने दूसरी गलती को "अक्षम्य" करार देते हुए कहा कि जानबूझकर गैर-खुलासा न्यायिक प्रक्रिया के मूल पर प्रहार करता है और विपक्षी पक्ष को अपरिवर्तनीय नुकसान पहुँचाता है.
प्रशासनिक गलती, लेकिन सार्वजनिक हित को प्राथमिकता
कोर्ट ने माना कि डीडीए का उद्देश्य दुर्भावनापूर्ण नहीं था. सड़क चौड़ीकरण का मकसद अर्धसैनिक बलों के लिए अस्पताल तक पहुंच आसान बनाना था. जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, "गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा देखभाल तक पहुंच एक विशेषाधिकार नहीं, बल्कि आवश्यकता है. सैन्य कर्मी, जो जंगलों या लेह जैसे दूरदराज के इलाकों में सेवा करते हैं, उनके लिए ऐसे संस्थान अनिवार्य हैं. " कोर्ट ने इसे प्रशासनिक गलत निर्णय की श्रेणी में रखा और संवैधानिक नैतिकता, सामाजिक-आर्थिक न्याय और समानता के सिद्धांतों के आधार पर फैसला सुनाया.
कोर्ट के निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने डीडीए को सख्त निर्देश दिए:
प्रतिपूरक वनरोपण: कोर्ट ने तीन सदस्यों की एक समिति गठित की, जो प्रतिपूरक वनरोपण की योजना बनाएगी। समिति यह भी सुनिश्चित करेगी कि सड़क के दोनों ओर घने पेड़ लगाए जाएं.
सड़क चौड़ीकरण पूरा करें: कोर्ट ने रिज क्षेत्र में सड़क चौड़ी करने पर लगी रोक हटा दी और डीडीए को जल्द से जल्द काम पूरा करने का निर्देश दिया.
जुर्माना: डीडीए के उन सभी अधिकारियों (अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को छोड़कर) पर 25,000 रुपये का जुर्माना लगाया गया, जो पेड़ों की कटाई के लिए जिम्मेदार पाए गए. इसके अलावा, आंतरिक जाँच समिति द्वारा विभागीय कार्यवाही को तार्किक अंत तक ले जाने का आदेश दिया गया.
लाभार्थियों पर शुल्क: कोर्ट ने कहा कि जिन संपन्न लोगों ने चौड़ी सड़क से लाभ उठाया, उनकी पहचान कर उनसे उचित शुल्क वसूला जाए.
निगरानी: समिति को समय-समय पर प्रगति रिपोर्ट कोर्ट में जमा करने का निर्देश दिया गया.
दिल्ली एलजी को राहत
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के उपराज्यपाल वी.के. सक्सेना को इस मामले में क्लीन चिट दे दी. कोर्ट ने कहा कि एलजी अब डीडीए के अध्यक्ष नहीं हैं और उस समय भी पूर्णकालिक सदस्य नहीं थे, इसलिए उनके खिलाफ अवमानना का मामला बंद किया जाता है. एलजी ने पहले हलफनामा दायर कर कहा था कि उन्हें पेड़ों की कटाई के लिए सुप्रीम कोर्ट की अनुमति की जरूरत के बारे में नहीं बताया गया था.
डीडीए की दलील
डीडीए के उपाध्यक्ष की ओर से वरिष्ठ वकील मनिंदर सिंह ने कहा कि मौजूदा सड़क केवल 7.5 फुट चौड़ी थी, जिसे 15 फुट चौड़ा करना जरूरी था ताकि सैनिकों के वाहन अस्पताल तक आसानी से पहुँच सकें. वहीं, उपराज्यपाल की ओर से वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने कोर्ट को आश्वासन दिया कि अनिवार्य 5,340 पौधों के बजाय 70,000 पौधे लगाए जाएंगे.
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