केंद्र सरकार ने व्हाट्सएप समेत सभी सोशल मीडिया कंपनी से सुप्रीम कोर्ट में साफ तौर पर कहा है कि अगर भारत में काम करना है तो देश के कानून के तहत ही करना होगा और भारतीय नागरिकों के साथ भेदभाव बर्दाश्त नहीं हो सकता. व्हाट्सएप की प्राइवेसी पॉलिसी 2021 के खिलाफ याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की संविधान पीठ में सुनवाई के दौरान केंद्र ने कहा कि ये सिर्फ व्हाट्सएप पर नहीं बल्कि सभी पर लागू होता है. केंद्र ने इस बात पर चिंता जताई कि देश के कानूनों का उल्लंघन हो रहा है.
केंद्र सरकार ने कहा कि भारत के नागरिकों के साथ दूसरे देशों के नागरिकों के मुकाबले भेदभाव नहीं किया जा सकता. देश में भी वही प्राइवेसी पॉलिसी हो जो दूसरे देशों में है. केंद्र ने कहा, "इस मामले में न्यायिक हस्तक्षेप की जरूरत नहीं बल्कि विधायिका के हस्तक्षेप की जरूरत है और इस मामले में अगले संसद सत्र में नया बिल लाया जाएगा, तब तक इंतजार किया जाना चाहिए."
केंद्र ने कहा है कि आगामी संसद सत्र में डेटा प्रोटेक्शन बिल लाया जाएगा. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के इस आग्रह को मंजूर कर लिया है. अदालत ने कहा कि सरकार डेटा प्रोटेक्शन बिल लाने की तैयारी कर रही है इसलिए मामले की सुनवाई बाद में करेंगे. संविधान पीठ अब व्हाट्सएप प्राइवेसी पॉलिसी को लेकर 17 जनवरी 2023 को सुनवाई करेगा. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि पिछले आदेश में उल्लेख किया गया था कि एक मसौदा विधेयक है. वह विधेयक वापस ले लिया गया है और संसद के अगले सत्र में एक नया विधेयक पेश किया जाएगा.
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मामले की सुनवाई जस्टिस के एम जोसेफ, जस्टिस अजय रस्तोगी, जस्टिस अनिरुद्ध बोस, जस्टिस हृषिकेश रॉय और जस्टिस सी टी रवि कुमार की बेंच ने की. 2018 में हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने फेसबुक और व्हाट्सएप्प कंपनियों से पूछा था कि वो क्या क्या जानकारियां आपस में और तीसरे पक्ष से साझा करती हैं?
मामले की सुनवाई के दौरान व्हाट्सएप्प की तरफ से कोर्ट को बताया गया था कि वो मोबाइल नंबर, व्हाट्स एप्प में कब रजिस्टर्ड हुए और किस तरह का मोबाइल एप ऑपरेटर करते हैं. इसके अलावा और कोई जानकारी साझा नहीं करते.
सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने कहा था कि 31 जुलाई को उन्होंने श्रीकृष्णा कमिटी बनाई है. कमिटी की रिपोर्ट आने के बाद तय करेंगे कि कानून लाना है या नहीं. निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार बताने के नौ जजों के संविधान पीठ के फैसले के बाद व्हाट्सएप्प का डाटा फेसबुक को शेयर करने के खिलाफ दाखिल याचिका पर संविधान पीठ में सुनवाई हुई.
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इससे पहले सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने निजी कंपनियों के लोगों के पर्सनल डाटा शेयर करने का विरोध किया था. केंद्र ने कहा कि डाटा शेयर करना जीने के अधिकार के खिलाफ है. पर्सनल डेटा संविधान के आर्टिकल 21 राइट टू लाइफ यानी जीने के अधिकार का अभिन्न हिस्सा है.
टेलीकाम कंपनियां या सोशल नेटवर्किंग कंपनियां आसानी से किसी उपभोक्ता का डेटा तीसरे पक्ष शेयर नहीं कर सकती और अगर कंपनियां उपभोक्ता के करार का उल्लंघन करती हैं तो सरकार को दखल देना होगा और कानून बनाना होगा. केंद्र वाटसएप, फेसबुक और अन्य एपस में लोगों के डेटा को प्रोटेक्ट करने के लिए कानून बनाने पर गंभीरता से विचार कर रही है और वो डेटा प्रोटेक्शन कानून लाएगी.
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दरअसल सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में कहा गया है कि ये निजता के अधिकार का उल्लंघन करता है. सुप्रीम कोर्ट में इसके लिए संविधान पीठ का गठन किया गया है. जनवरी 2018 में वाटस एप के डाटा को फेसबुक से जोडने का मामले में निजी डेटा और निजता के लिए दायर याचिका की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र, ट्राई, वाटसएप और फेसबुक को नोटिस जारी कर दो हफ्ते में जवाब मांगा था.
याचिका में कहा गया है कि हर व्यक्ति की निजता का मामला है और केंद्र सरकार को इसके लिए कोई नियम बनाना चाहिए. वाटसएप के फेसबुक से डेटा शेयर करने का मामला सीधे सीधे निजता के अधिकार का उल्लंघन है
इसलिए ट्राई द्वारा कोई नियम बनाया जाना चाहिए ये मामला 155 मिलियन लोगों के डेटा से जुडा है.
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