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अगर कोई देश इतिहास को महत्व नहीं देता तो उसका कोई भविष्य नहीं है... वंदे मातरम विवाद पर सद्गुरु

सद्गुरु ने निष्कर्ष में कहा, "हमें यह समझने की ज़रूरत है - हम सिर्फ़ 75 साल से ज़्यादा पुराने हैं... अगर आप दूसरे देशों को देखें, तो उन्होंने 75 सालों में कैसा प्रदर्शन किया है, हम उससे कहीं बेहतर कर रहे हैं."

अगर कोई देश इतिहास को महत्व नहीं देता तो उसका कोई भविष्य नहीं है... वंदे मातरम विवाद पर सद्गुरु
  • सद्गुरु जग्गी वासुदेव ने कहा कि इतिहास को महत्व न देने वाला राष्ट्र अपने भविष्य का निर्माण नहीं कर सकता.
  • वंदे मातरम को राष्ट्र के एकीकरण और प्रेरणा का स्रोत बताते हुए उन्होंने इसके महत्व पर जोर दिया.
  • कांग्रेस ने वंदे मातरम पर चर्चा का विरोध करते हुए इसे चुनावी मुद्दों से ध्यान हटाने वाला बताया.
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नई दिल्ली:

ईशा फाउंडेशन के संस्थापक सद्गुरु जग्गी वासुदेव ने आज एनडीटीवी की पद्मजा जोशी के साथ बातचीत में  महत्वपूर्ण विचार रखा है. उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि जो राष्ट्र अपने इतिहास को महत्व नहीं देता, वह अपने लिए भविष्य नहीं बना सकता. राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम की 150वीं वर्षगांठ के संदर्भ में बोलते हुए सद्गुरु ने इस गीत को 'एकीकरण और प्रेरणा' दोनों के लिए आवश्यक बताया, और जोर दिया कि यही गुण किसी भी राष्ट्र को सफलता की ओर आगे बढ़ाते हैं.

कांग्रेस का विरोध और प्रेरणा की आवश्यकता
संसद में वंदे मातरम पर दो दिवसीय चर्चा पर कांग्रेस ने कड़ी आपत्ति जताई है. पार्टी की वरिष्ठ नेता प्रियंका गांधी वाड्रा ने कहा है कि यह बंगाल में आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर आयोजित की गई थी और यह वास्तविक मुद्दों से ध्यान भटकाने की एक चाल भी थी.

सद्गुरु ने इसके जवाब में कहा कि हमारे पास बुद्धिमत्ता हो सकती है, हमारे पास क्षमता हो सकती है. हमारे पास संसाधन हो सकते हैं. हमारे पास सभ्यता का इतिहास हो सकता है. लेकिन अगर हम प्रेरित नहीं होंगे, तो हम इस पीढ़ी में बहुत आगे नहीं बढ़ पाएंगे. यह अगली पीढ़ी को गंभीर रूप से अपंग बना देगा.

विकसित भारत और विकास की गति
उन्होंने कहा कि यह आगे की गति 2047 तक 'विकसित भारत' की योजना के अनुरूप है. उन्होंने सवाल किया कि हम कब तक विकासशील बने रहेंगे? कहीं न कहीं, आपको विकसित बनना ही होगा. कम से कम अब 2047 तक की योजना तो है. एक योजना के लिए प्रेरणा की जरूरत होती है. अगर प्रेरणा ही नहीं होगी, तो योजना को कौन पूरा करेगा.

राष्ट्रीय पहचान और वैश्विक दृष्टिकोण
यह पूछे जाने पर कि राष्ट्रीय गीत किस प्रकार कुछ वर्गों को अलग-थलग महसूस करा सकता है, सद्गुरु ने कहा कि कुछ विचारधाराएं ऐसी हैं जो राष्ट्रीय पहचान में विश्वास नहीं करतीं.

उन्होंने कहा, "तो, चाहे आप साम्यवाद की बात करें या खिलाफत की, यह राष्ट्रीय पहचान में विश्वास नहीं करता. खैर, यह ठीक है. मैं भी राष्ट्रीय पहचान में विश्वास नहीं करता. मैं एक वैश्विक पहचान बनना चाहता हूं," 

उन्होंने यह भी कहा कि विकसित भारत की योजना भले ही संपूर्ण न हो, लेकिन जरूरी यह है कि पूरा देश इस योजना का समर्थन करे और इसे मूर्त रूप देने के लिए काम करे.

तेजी से विकास और भविष्य की दिशा
सद्गुरु ने दिशा सही होने की पुष्टि करते हुए कहा कि इसका प्रमाण दो चीजों में है - बेहतर स्वास्थ्य और 1947 की तुलना में ज़्यादा लंबी उम्र. उन्होंने कहा कि बुनियादी ढांचे का विकास बहुत तेजी से हो रहा है. उन्होंने कहा कि इसका प्रमाण शहरों में व्याप्त प्रदूषण है. उन्होंने कहा, "बहुत से लोग कार चला रहे हैं. इसीलिए प्रदूषण है. अगर हर कोई पैदल चलता, तो प्रदूषण नहीं होता. दुनिया में कहीं भी कोई इतनी तेजी से बुनियादी ढांचे का निर्माण नहीं कर रहा है जितना हम अभी कर रहे हैं."

सद्गुरु ने निष्कर्ष में कहा, "हमें यह समझने की ज़रूरत है - हम सिर्फ़ 75 साल से ज़्यादा पुराने हैं... अगर आप दूसरे देशों को देखें, तो उन्होंने 75 सालों में कैसा प्रदर्शन किया है, हम उससे कहीं बेहतर कर रहे हैं."

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