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IC-814 हाईजैक और 26 साल पहले के वो 173 घंटे जब पूरा हिंदुस्तान सांसें रोके खड़ा था

आतंकियों की मांगें लगातार बदलती रहीं थी. शुरुआत में उन्होंने यात्रियों की रिहाई के बदले कुख्यात आतंकी मसूद अजहर की रिहाई मांगी. फिर मांगों की सूची बढ़ती गई. आतंकियों ने यात्रियों की रिहाई के बदले 36 आतंकवादियों की रिहाई, साजिद अफगानी का शव और 20 करोड़ डॉलर नकद की मांग रखी.

  • विमान को अमृतसर, लाहौर, दुबई और अंत में कंधार में उतारा गया जहां यात्रियों को बंधक बनाया गया था
  • आतंकवादियों की मांगों में कुख्यात आतंकी मसूद अजहर और अन्य आतंकवादियों की रिहाई प्रमुख थी
  • भारत सरकार ने 31 दिसंबर 1999 को तीन आतंकवादियों की रिहाई के बदले सभी बंधकों को रिहा कराकर संकट समाप्त किया था
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नई दिल्ली:

साल 1999, 24 दिसंबर की शाम... काठमांडू से नई दिल्ली आ रही इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट आईसी-814 ने जैसे ही उड़ान भरी, किसी को अंदाजा भी नहीं था कि यह यात्रा सबसे भयावह बंधक संकटों में दर्ज होने वाली है. 190 यात्रियों और चालक दल को लेकर उड़ान भरी यह विमान 31 दिसंबर तक चला. इस घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया.24 दिसंबर को शाम 4 बजे आईसी-814 ने काठमांडू के त्रिभुवन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से उड़ान भरी. इसके बाद, विमान के भारतीय हवाई क्षेत्र में प्रवेश करते ही हथियारों से लैस पांच आतंकवादियों ने विमान को हाईजैक कर लिया. हाथों में हथियार लिए नकाबपोश आतंकवादी कॉकपिट में घुसे और पायलट को विमान लाहौर की ओर ले जाने के लिए कहा. बाद में लाहौर में विमान के उतरने की अनुमति न मिलने पर उसे अमृतसर के राजा सांसी एयरपोर्ट पर उतारा गया.

ईंधन भरने में देरी से आतंकवादी बौखला गए. धमकियां दी गईं कि अगर विमान जल्द नहीं उड़ा तो यात्रियों को मार दिया जाएगा. इसी दौरान आतंकियों ने यात्रियों के साथ मारपीट शुरू की और 25 वर्षीय रुपिन कत्याल को चाकू मार दिया, जिनकी बाद में मौत हो गई. इसके बाद, अमृतसर से बिना ईंधन भरे विमान को उड़ाने का आदेश दिया गया. बाद में, पाकिस्तानी अधिकारियों की अनुमति मिलने पर विमान लाहौर में उतरा और वहां ईंधन भरा गया. इसके बाद आतंकियों ने विमान को काबुल ले जाने का निर्देश दिया, लेकिन वहां प्रवेश नहीं मिला और विमान 25 दिसंबर की तड़के दुबई के अल मिनहाद एयर बेस पर उतरा.

आतंकवादियों ने दुबई में 27 यात्रियों को रिहा किया और रुपिन कत्याल का शव सौंपा. इसके कुछ घंटे बाद विमान ने फिर उड़ान भरी और 25 दिसंबर की सुबह कंधार पहुंचा, जो उस समय तालिबान के नियंत्रण में था. यहां विमान को तालिबान के सशस्त्र लड़ाकों ने घेर लिया. कंधार में यात्रियों को खाना-पानी तो मिला, लेकिन विमान के भीतर हालात बदतर थे. संयुक्त राष्ट्र की एक टीम ने तालिबान और आतंकियों से संपर्क कर बंधकों के साथ मानवीय व्यवहार करने की अपील की. 27 दिसंबर को भारत ने अपने वार्ताकारों और खुफिया अधिकारियों की टीम कंधार भेजी. उसी दिन बातचीत शुरू हुई.

आतंकियों की मांगें लगातार बदलती रहीं थी. शुरुआत में उन्होंने यात्रियों की रिहाई के बदले कुख्यात आतंकी मसूद अजहर की रिहाई मांगी. फिर मांगों की सूची बढ़ती गई. आतंकियों ने यात्रियों की रिहाई के बदले 36 आतंकवादियों की रिहाई, साजिद अफगानी का शव और 20 करोड़ डॉलर नकद की मांग रखी. तालिबान ने नकद राशि और शव की मांग को गैर-इस्लामिक बताते हुए खारिज कर दिया. आखिरकार सौदा तीन नामों पर आकर रुका और ये नाम थे… मसूद अजहर, अहमद उमर सईद शेख और मुश्ताक जरगर. हर मांग का केंद्र मसूद अजहर की रिहाई थी.

31 दिसंबर 1999 को भारत के विदेश मंत्री जसवंत सिंह तीनों आतंकियों को लेकर कंधार पहुंचे. बदले में सभी शेष बंधकों को रिहा कर दिया गया. आतंकियों और रिहा किए गए कैदियों को तालिबान ने जाने की अनुमति दे दी. सात दिन बाद यह संकट खत्म हुआ. उस वक्त के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इसे आतंकवाद का क्रूर चेहरा बताया और कहा कि यह मानव जीवन और अधिकारों के प्रति घोर अवमानना है. जांच शुरू हुई. मुंबई से कई संदिग्ध गिरफ्तार किए गए. सीबीआई ने बताया कि इस अपहरण की साजिश 1998 में रची गई थी. 2008 में तीन आरोपियों को उम्रकैद हुई, लेकिन अधिकांश आरोपी और अपहरणकर्ता पाकिस्तान में छिपे बताए गए. बाद में आईसी-814 विमान 1 जनवरी 2000 को भारत लौटी. 2002 में इसे सेवा से हटा दिया गया और अगले साल स्क्रैप कर दिया गया.

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