बीजेपी सांसद हुकुम सिंह (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
कैराना में हिंदुओं के पलायन की दो लिस्ट लाने वाले हुकुम सिंह सुर्खियों में हैं। वह इसलिए भी कि हुकुम सिंह अभी कैराना से बीजेपी के सांसद हैं और मुजफ्फरनगर दंगों में सरकार ने उन्हें नामजद भी कर रखा है। हुकुम सिंह कह चुके हैं कि वे मुजफ्फरनगर दंगों पर किताब लिखकर उसकी सच्चाई सामने लाएंगे।
हुकुम सिंह का अतीत
हुकुम सिंह के अतीत में यदि आप जाएंगे तो हैरान रह जाएंगें। हुकुम सिंह सेना में थे और 1965 में पाकिस्तान के साथ युद्ध के दौरान जम्मू-कश्मीर के पूंछ सेक्टर में बतौर कैप्टन तैनात थे, मगर उन्होंने 1969 में रिटायरमेंट ले लिया। (पढ़ें विस्तार में : आखिर कौन हैं कैराना का मुद्दा उठाने वाले 'दल-बदल' हुकुम सिंह...)
हुकुम सिंह का राजनीतिक सफर
1974 में हुकुम सिंह कांग्रेस का विधायक बने और इंमेरजेंसी के वक्त और उसके बाद भी इंदिरा गांधी का साथ नहीं छोड़ा। असल में हुकुम सिंह 1980 में जनता पार्टी में गए, लेकिन जब चौधरी चरण सिंह ने जनता पार्टी छोड़ी तब हुकुम सिंह उनके साथ हो लिए क्योंकि हुकुम सिंह को पता था कि यदि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आपको राजनीति करना है तो चरण सिंह के साथ ही जाना पड़ेगा।
फिर पांच साल में हुकुम सिंह की वापसी हो गई। हुकुम सिंह उत्तर प्रदेश में वीर बहादुर सिंह और एनडी तिवारी की कैबिनेट में मंत्री भी रहे और जब नरसिंहा राव के समय कांग्रेस टूटी और तिवारी कांग्रेस बनी तो हुकुम सिंह तिवारी कांग्रेस में आ गए। उसके बाद वो अपनी जगह की तलाश मुलायम सिंह के साथ भी करते रहे, मगर 1994 में उत्तराखंड बनाने के लिए हुए रामपुर तिराहा कांड के बाद हुकुम सिंह ने बीजेपी का दामन थामा और यह करने की वजह भी साफ थी रामपुर तिराहा मुजफ्फरनगर जिले में था और उस वक्त हुए गोलीबारी में 6 लोगों की जान गई थी।
माहौल को भांपते हुए हुकुम सिंह भाजपा के हुए और 1996 से लेकर मई 2014 तक बीजेपी के विधायक रहे और अब बीजेपी सांसद हैं। हुकुम सिंह उत्तर प्रदेश में बीजेपी के कल्याण सिंह और राजनाथ सिंह सरकार में भी मंत्री रहे।
मनव्वर हसन से राजनीतिक लड़ाई के ढेरों किस्से
कैराना यदि आप जाएं तो वहां हुकुम सिंह और मनव्वर हसन की राजनीतिक लड़ाई के ढेरों किस्से आपको सुनाई देगें। मनव्वर हसन के पिता का इस इलाके में काफी बोलबाला था, यही वजह है कि हुकुम सिंह के लोकसभा जाने के बाद यहां हुए विधानसभा उपचुनाव में मनव्वर हसन के बेटे ने हुकुम सिंह समर्थित उम्मीदवार को हरा दिया। यहां के लोग यह भी बताते हैं कि हुकुम सिंह विधानसभा में अपनी बेटी को चुनाव लड़ाना चाहते हैं। इसलिए दबी जुबान में कहा जा रहा है कि कहीं मौजूदा विवाद इसी राजनीतिक मकसद से तो नहीं किया जा रहा है।
बता दें कि हुकुम सिंह की पत्नी की घर में 2010 में हत्या हुई थी और इससे दो साल पहले 2008 में सांसद रहते हुए मनव्वर हसन की सड़क दुर्घटना में मौत हुई थी। दोनों की रंजिश पुरानी बताई जाती है।
न संघ से जुड़े न मंदिर आंदोलन से
कई लोग इससे भी अचंभित हैं कि हुकुम सिंह संघ से जुडे नहीं रहे और न ही मंदिर आंदोलन से, तो फिर वह ऐसा क्यों कर रहे हैं। क्या हवा का रुख भांप कर बहना चाहते हैं क्योंकि सभी यह मानते हैं कि कानून-व्यवस्था यहां बड़ी समस्या है और 2014 के मुजफ्फरनगर दंगों के बाद यहां एक तीली फेंकने की जरूरत बाकी रह गई है, बाकी सब अपने आप हो जाएगा। आप अंदाजा लगा सकते हैं कि ऐसे हालात दोनों के लिए मुफीद होंगें और राजनीतिक दल वही कर रहे हैं...
हुकुम सिंह का अतीत
हुकुम सिंह के अतीत में यदि आप जाएंगे तो हैरान रह जाएंगें। हुकुम सिंह सेना में थे और 1965 में पाकिस्तान के साथ युद्ध के दौरान जम्मू-कश्मीर के पूंछ सेक्टर में बतौर कैप्टन तैनात थे, मगर उन्होंने 1969 में रिटायरमेंट ले लिया। (पढ़ें विस्तार में : आखिर कौन हैं कैराना का मुद्दा उठाने वाले 'दल-बदल' हुकुम सिंह...)
हुकुम सिंह का राजनीतिक सफर
1974 में हुकुम सिंह कांग्रेस का विधायक बने और इंमेरजेंसी के वक्त और उसके बाद भी इंदिरा गांधी का साथ नहीं छोड़ा। असल में हुकुम सिंह 1980 में जनता पार्टी में गए, लेकिन जब चौधरी चरण सिंह ने जनता पार्टी छोड़ी तब हुकुम सिंह उनके साथ हो लिए क्योंकि हुकुम सिंह को पता था कि यदि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आपको राजनीति करना है तो चरण सिंह के साथ ही जाना पड़ेगा।
फिर पांच साल में हुकुम सिंह की वापसी हो गई। हुकुम सिंह उत्तर प्रदेश में वीर बहादुर सिंह और एनडी तिवारी की कैबिनेट में मंत्री भी रहे और जब नरसिंहा राव के समय कांग्रेस टूटी और तिवारी कांग्रेस बनी तो हुकुम सिंह तिवारी कांग्रेस में आ गए। उसके बाद वो अपनी जगह की तलाश मुलायम सिंह के साथ भी करते रहे, मगर 1994 में उत्तराखंड बनाने के लिए हुए रामपुर तिराहा कांड के बाद हुकुम सिंह ने बीजेपी का दामन थामा और यह करने की वजह भी साफ थी रामपुर तिराहा मुजफ्फरनगर जिले में था और उस वक्त हुए गोलीबारी में 6 लोगों की जान गई थी।
माहौल को भांपते हुए हुकुम सिंह भाजपा के हुए और 1996 से लेकर मई 2014 तक बीजेपी के विधायक रहे और अब बीजेपी सांसद हैं। हुकुम सिंह उत्तर प्रदेश में बीजेपी के कल्याण सिंह और राजनाथ सिंह सरकार में भी मंत्री रहे।
मनव्वर हसन से राजनीतिक लड़ाई के ढेरों किस्से
कैराना यदि आप जाएं तो वहां हुकुम सिंह और मनव्वर हसन की राजनीतिक लड़ाई के ढेरों किस्से आपको सुनाई देगें। मनव्वर हसन के पिता का इस इलाके में काफी बोलबाला था, यही वजह है कि हुकुम सिंह के लोकसभा जाने के बाद यहां हुए विधानसभा उपचुनाव में मनव्वर हसन के बेटे ने हुकुम सिंह समर्थित उम्मीदवार को हरा दिया। यहां के लोग यह भी बताते हैं कि हुकुम सिंह विधानसभा में अपनी बेटी को चुनाव लड़ाना चाहते हैं। इसलिए दबी जुबान में कहा जा रहा है कि कहीं मौजूदा विवाद इसी राजनीतिक मकसद से तो नहीं किया जा रहा है।
बता दें कि हुकुम सिंह की पत्नी की घर में 2010 में हत्या हुई थी और इससे दो साल पहले 2008 में सांसद रहते हुए मनव्वर हसन की सड़क दुर्घटना में मौत हुई थी। दोनों की रंजिश पुरानी बताई जाती है।
न संघ से जुड़े न मंदिर आंदोलन से
कई लोग इससे भी अचंभित हैं कि हुकुम सिंह संघ से जुडे नहीं रहे और न ही मंदिर आंदोलन से, तो फिर वह ऐसा क्यों कर रहे हैं। क्या हवा का रुख भांप कर बहना चाहते हैं क्योंकि सभी यह मानते हैं कि कानून-व्यवस्था यहां बड़ी समस्या है और 2014 के मुजफ्फरनगर दंगों के बाद यहां एक तीली फेंकने की जरूरत बाकी रह गई है, बाकी सब अपने आप हो जाएगा। आप अंदाजा लगा सकते हैं कि ऐसे हालात दोनों के लिए मुफीद होंगें और राजनीतिक दल वही कर रहे हैं...
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