2019 लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election) से पहले जीत के लिए राजनीतिक पार्टियां तिकड़मबाजी में लगी हुई हैं. जहां एक ओर विपक्षी दल नरेंद्र मोदी (PM Modi) के नेतृत्व वाली भाजपा (BJP) को सत्ता से हटाने के लिए सभी विपक्षी दल एकजुट होने की कोशिश कर रहे हैं, वहीं एनडीए (NDA) भी अपने घटक दलों से बनाकर चल रहा है. ताकि एनडीए से कोई भी घटक दल अलग न हो, क्योंकि हालही में उपेंद्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) के नेतृत्व वाले रालोसपा ने एनडीए से दूरी बना ली है. वहीं यूपी में एनडीए के सहयोगी दल सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी और अपना दल नाराज चल रहे हैं, जिन्हें मनाने की पूरी कोशिश की जा रही हैं. इसके अलावा बीच में रामविलास पासवान (Ram Vilas Paswan) की पार्टी लोजपा ने भी नाराजगी जाहिर की थी. लेकिन बाद में भाजपा का उच्च नेतृत्व पासवान को मनाने में कामयाब रहा.
हम आपको बताने जा रहे हैं कि भारत में गठबंधन की राजनीति कितनी कारगर साबित हुई और यह प्रयोग कब-कब असफल हुआ. भारत की राजनीति में साल 1999 तक करीब दो दशक से ज्यादा समय में चार बड़े गठबंधन बने, लेकिन किसी ने भी एक बार भी पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं किया. हालांकि, साल 1999 के बाद भाजपा नेतृत्व वाले एनडीए और कांग्रेस नेतृत्व वाले यूपीए गठबंधन की ही सरकार रही. यूपीए और एनडीए (मोदी सरकार का कार्यकाल पूरा होने वाला है) दोनों ने ही दो-दो बार पांच साल का कार्यकाल पूरा किया. लेकिन इससे पहले कभी किसी गठबंधन ने पांच साल पूरे नहीं किए थे.
इंदिरा गांधी द्वारा देश में आपातकाल लगाने के बाद साल 1977 में जनता गठबंधन बनाया गया. 1977 में हुए चुनाव में इंदिरा गांधी के खिलाफ जनता पार्टी के नेतृत्व में करीब दस से ज्यादा दल एक साथ आए और चुनाव लड़ा. इसमें गठबंधन का शानदार प्रदर्शन रहा, आठ दलों ने करीब 343 सीटों पर जीत हासिल की. देश में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी, लेकिन यह सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई. मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री बनाया गया था, लेकिन इस गठबंधन की सरकार दो साल केवल 128 दिन ही चली. इसके बाद में साल 1980 में चुनाव हुए, जिसमें इंदिरा गांधी की वापसी हुई.
फिर करीब एक दशक से ज्यादा समय के बाद साल 1989 में नेशनल फ्रंट नाम से गठबंधन बनाया गया. इस साल हुए चुनाव में सात दलों के इस गठबंधन ने 143 सीटें और कांग्रेस ने 197 सीटों पर जीत हासिल की. लेफ्ट फ्रंट और भाजपा के सहयोग से गठबंधन ने सरकार बनाई और वीपी सिंह को प्रधानमंत्री बनाया गया. लाल कृष्ण आडवाणी के बिहार में गिरफ्तारी के बाद भाजपा ने नाराज होकर सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया था और सरकार गिर गई. यह सरकार महज 343 दिन ही चल सकी. इसके बाद जनता दल से अलग होकर चंद्रशेखर ने नई पार्टी समाजवादी जनता पार्टी बनाई. चंद्रशेखर को कांग्रेस ने समर्थन दिया और उन्हें प्रधानमंत्री बनाया गया. लेकिन यह सरकार भी महज 243 दिन में ही चली गई.
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साल 1996 में हुए चुनाव में जनता दल को 46 सीटें मिलीं, चुनाव के बाद 'यूनाइटेड फ्रंट' के नाम से नया गठबंधन बना, और कई दल फ्रंट में शामिल हो गए. कांग्रेस ने इसे समर्थन दिया और एचडी देवेगौड़ा को प्रधानमंत्री बनाया गया. सरकार को बने हुए एक साल भी पूरा नहीं हुआ था और कांग्रेस ने अपना समर्थन वापस ले लिया, सरकार 324 दिन में ही गिर गई. इसके बाद जनता दल के नेता इंद्र कुमार गुजराल को गठबंधन का नेता चुना गया और कांग्रेस के समर्थन से ही वह प्रधानमंत्री बने. लेकिन वह भी एक साल पूरा न कर पाए और 332 दिन ही प्रधानमंत्री के पद पर काबिज रह सके. देवेगौड़ा से पहले अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने थे, लेकिन बहुमत नहीं होने की वजह से 13 में ही सरकार गिर गई थी.
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1998 में फिर 13 दल एक साथ आए और भाजपा के नेतृत्व में एनडीए गठबंधन बनाया. चुनाव में इन 13 दलों को 258 सीटों पर जीत मिली. एआईएडीएमके ने एनडीए को समर्थन दिया और सरकार बनी. अटल बिहारी वाजपेयी को प्रधानमंत्री बनाया गया. लेकिन गठबंधन की यह सरकार भी केवल 13 महीने ही चल सकी. ममता बनर्जी की अगुवाई वाली टीएमसी और जयललित की एआईएडीएमके ने समर्थन दे रखा था. लेकिन जयललिता के समर्थन वापस लेने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गिर गई. इसके बाद 1999 में चुनाव हुए और एनडीए ने सरकार बनाई. इस सरकार ने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया. यह पहली बार था कि किसी गठबंधन ने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया.
शनिवार को कोलकाता में हुई ममता बनर्जी की रैली में करीब दो दर्जन दलों के नेताओं शामिल होने पर 2019 में एक बार फिर थर्ड फ्रंट की संभावनाओं को बल मिलने लगा है.
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