
- मंडी के सिराज घाटी में बादल फटने से सेब किसानों को भारी नुकसान हुआ है, जिसमें पेड़ और बागान मिट्टी में दफन हो गए हैं
- 2023 में भी सेब किसानों को नुकसान हुआ था, लेकिन मुआवजा बेहद कम मिला, कुछ किसानों को मात्र सात रुपये का भुगतान किया गया
- बादल फटने की घटना में सत्तर से अधिक लोगों की मौत हुई, तीस से ज्यादा लापता हैं और दो सौ से ज्यादा घायल हुए हैं
बादल फटने से मंडी के सिराज घाटी में सेब किसानों का भारी नुकसान हुआ है. 2023 में भी इन सेब किसानों ने नुकसान उठाया था. उस तबाही का मुआवजा किसी को 7 रुपये मिला तो किसी को 150 रुपये. पढ़िए कुदरत की दोहरी मार झेल रहे सिराज घाटी के सेब किसानों पर NDTV की ग्राउंड रिपोर्ट.
मंडी की सिराज घाटी अपने फूलों की खूबसूरती और सेब की मिठास के लिए मशहूर है. लेकिन 30 जून को बादल फटने से हर तरफ तबाही का मंजर है. इंसानी जानों के साथ सेब के बागान मिट्टी में मिल गए. दो साल पहले भी हिमाचल प्रदेश में भूस्खलन हुआ था. पांच सौ से ज्यादा लोग मारे गए थे. इस बार सिराज घाटी में बादल फटा. सत्तर से ज्यादा लोग मारे गए. तीस से ज्यादा लोग लापता हैं. दो सौ से ज्यादा लोग घायल. ग्लोबल वॉर्मिंग का सबसे बड़ा दर्द हिमाचल प्रदेश जैसे पहाड़ी इलाके के लोग भुगत रहे हैं.

सिराज घाटी के बगस्याड में सेब के किसान युधिष्ठिर और जयवर्द्धन बड़े दर्द में हैं. 2023 में युधिष्ठिर के सेब बागानों को भारी नुकसान हुआ था. करीब 200-300 सेब पेड़ बह गए थे, लेकिन मुआवजा महज 7 रुपये मिला था. अब नीचे के सेब बागान बचे हैं. ऊपर के बागान में मुकसान बड़ा है.
बगस्याड गांव के सेब किसान युधिष्ठिर कहते हैं, 'मेरे परिवार के करीब 300-400 सेब पेड़ उखड़ गए, लेकिन मुझे सात रुपये और मेरे भाई को 150 रुपये मुआवजा दिया गया. हम लोगों ने लिए भी नहीं. क्या करेंगे ऐसे मुआवजे का?'

जयवर्धन फूल और सेब के किसान हैं. वह भी गहरे दर्द और सदमें में हैं. उन्होंने किसान क्रेडिट कार्ड से दस लाख का लोन लेकर फूलों की खेती के पॉली हाउस तैयार करवाया था, लेकिन बादल फटने से आई तबाही में घर के साथ पॉली हाउस भी बह गया. अब वो भारी कर्जो में डूब गए हैं.
शरण गांव के जयवर्धन कहते हैं बैंक को क्या पता कि मेरा घर, गाड़ी और पॉली हाउस तबाह हो गए. वो तो अगर पेमेंट लेट करी तो नोटिंस भेज देंगे. सरकार को KCC में एक साल के ब्याज को माफ करना चाहिए.

कभी आपने सोचा है कि जो सेब हमारे आपके घरों में पहुंचता है, उसकी खेती के पीछे किसान अपनी उम्र लगा देते हैं. बगस्याड में 63 साल की सेब किसान सावित्री हैं. अपने सेब के पेड़ दिखाते हुए कहती हैं कि 25 साल की उम्र में ये पेड़ लगाया था. घर के ठीक पीछे हुए तबाही से 60 फीसदी सेब बागान उनके मिट्टी में दफन हो चुके हैं.
सावित्री बताती हैं किसेब के एक पेड़ तीस से पैंतीस साल पहले लगाए थे. समय समय पर प्रीमियम होती है. खाद देते हैं. लाखों का इसके ऊपर निवेश होता. तब जाकर सेब देना शुरु करता है. लेकिन बस जान बच गई, लेकिन सब तबाह हो चुका है.
बगस्याड गांव के सब किसान गंगा राम शुक्र मना रहे हैं कि जान बच गई बस. वह कहते हैं बाकी सब खत्म हो गया है.
मंडी के सराज घाटी से सालाना 10 लाख सेब की पेटियां बाहर जाती थीं. करोड़ों का कारोबार और हजारों किसान इससे जुड़े हैं. अब इन बर्बाद सेब किसानों की उम्मीदें सरकार पर टिकी हैं, लेकिन अफ़सोस आर्थिक पैकेज के नाम पर इन किसानों के लिए फ़िलहाल कुछ नहीं है.
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