लखनऊ:
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने आतंकवाद से जुड़े मामलों के आरोपियों से लम्बित आपराधिक मुकदमे वापस लिए जाने के उत्तर प्रदेश सरकार के आदेश पर रोक लगा दी है।
न्यायमूर्ति राजीव शर्मा और न्यायमूर्ति महेन्द्र दयाल की खंडपीठ ने आदेश रंजना अग्निहोत्री समेत छह स्थानीय वकीलों की जनहित याचिका पर दिया।
याचिका में आतंकवादी गतिविधियों के आरोपियों के खिलाफ मुकदमे वापस लिए जाने संबंधी राज्य सरकार के आदेश को निरस्त करने का आग्रह किया गया था।
अदालत ने आतंकवाद से जुड़े मामलों में आरोपियों से मुकदमे वापस लेने के राज्य सरकार के फैसले पर रोक लगाते हुए केन्द्र और राज्य सरकार सहित सभी प्रतिवादियों को अपना जवाब दाखिल करने के लिए छह हफ्ते का समय दिया है, जिसके बाद याचीगण चार हफ्ते के भीतर अपना प्रति उत्तर दाखिल कर सकेंगे।
उत्तर प्रदेश सरकार का पक्ष रखते हुए अपर महाधिवक्ता बुलबुल गोडियाल ने याचिका के गुण दोष पर सवाल उठाते हुए कहा कि अदालत की इलाहाबाद पीठ पहले ही एक ऐसी याचिका को खारिज कर चुकी है।
उन्होंने कहा कि संबंधित मामलों में आरोपियों से मुकदमे वापस लेने के लिए केन्द्र सरकार की सहमति जरूरी नहीं है। याचियों की तरफ से पैरवी करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता हरिशंकर जैन ने गोडियाल की दलीलों का विरोध किया और कहा कि केन्द्रीय कानूनों के तहत दर्ज मुकदमे वापस लेने के लिए केन्द्र सरकार की सहमति आवश्यक है।
न्यायमूर्ति राजीव शर्मा और न्यायमूर्ति महेन्द्र दयाल की खंडपीठ ने आदेश रंजना अग्निहोत्री समेत छह स्थानीय वकीलों की जनहित याचिका पर दिया।
याचिका में आतंकवादी गतिविधियों के आरोपियों के खिलाफ मुकदमे वापस लिए जाने संबंधी राज्य सरकार के आदेश को निरस्त करने का आग्रह किया गया था।
अदालत ने आतंकवाद से जुड़े मामलों में आरोपियों से मुकदमे वापस लेने के राज्य सरकार के फैसले पर रोक लगाते हुए केन्द्र और राज्य सरकार सहित सभी प्रतिवादियों को अपना जवाब दाखिल करने के लिए छह हफ्ते का समय दिया है, जिसके बाद याचीगण चार हफ्ते के भीतर अपना प्रति उत्तर दाखिल कर सकेंगे।
उत्तर प्रदेश सरकार का पक्ष रखते हुए अपर महाधिवक्ता बुलबुल गोडियाल ने याचिका के गुण दोष पर सवाल उठाते हुए कहा कि अदालत की इलाहाबाद पीठ पहले ही एक ऐसी याचिका को खारिज कर चुकी है।
उन्होंने कहा कि संबंधित मामलों में आरोपियों से मुकदमे वापस लेने के लिए केन्द्र सरकार की सहमति जरूरी नहीं है। याचियों की तरफ से पैरवी करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता हरिशंकर जैन ने गोडियाल की दलीलों का विरोध किया और कहा कि केन्द्रीय कानूनों के तहत दर्ज मुकदमे वापस लेने के लिए केन्द्र सरकार की सहमति आवश्यक है।
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