दिवंगत जज बीएच लोया ( फाइल फोटो )
नई दिल्ली:
महाराष्ट्र सरकार ने आज उच्चतम न्यायालय में कहा कि विशेष न्यायाधीश बी एच लोया की कथित रूप से रहस्यमय परिस्थितियों में हुई मृत्यु की स्वतंत्र जांच के लिये दायर याचिकायें प्रायोजित हैं और कानून का शासन बनाये रखने की आड़ में इसका मकसद एक व्यक्ति को निशाना बनाना है. राज्य सरकार ने कहा कि याचिकाओं का मकसद इस एक व्यक्ति के खिलाफ मुद्दे को हवा देते रहना है. राज्य सरकार ने शीर्ष अदालत से अनुरोध किया कि इस मामले में जांच का आदेश नहीं दिया जाये क्योंकि इससे न्यायाधीशों और न्यायपालिका के प्रति लोगों के मन में संदेह पैदा होगा. प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ की तीन सदस्यीय खंडपीठ के समक्ष राज्य सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी की बहस पूरी होने के साथ ही पीठ ने इस मामले की सुनवाई पूरी कर ली.
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पीठ ने कहा कि वह इस पर अपना आदेश सुनायेगी और संबंधित पक्षों को निर्देश दिया कि वे चाहें तो इस मामले में अपनी लिखित दलीलें दे सकते हैं. इससे पहले, रोहतगी ने कहा, ‘‘ इस न्यायालय को जांच का आदेश देने का अधिकार है और उसने फर्जी मुठभेड़ और दंगों के मामले में इसका उपयोग किया है. परंतु इस मामले में, न्यायालय को जांच का आदेश देते समय बहुत सावधानी बरतनी चाहिए क्योंकि बंबई उच्च न्यायालय के पीठासीन न्यायाधीशों और यहां तक कि प्रशासनिक समिति को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 161 के अंतर्गत अपने बयान दर्ज कराने होंगे.’’ उन्होंने कहा कि न्यायलाय को यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि न्यायाधीश लोया की एक दिसंबर, 2014 को मृत्यु के बाद तीन साल तक कुछ नहीं हुआ था और कोई याचिका भी दायर नहीं हुई थी. परंतु अब यदि इन याचिकाओं पर न्यायालय जांच का आदेश देता है तो इसकी कुछ प्रतिक्रियायें भी होंगी.
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रोहतगी ने मीडिया की खबरों का जिक्र करते हुये कहा कि इन लेखों पर भरोसा करने की जरूरत नहीं है. उन्होंने इस मामले में अभी तक की जांच का ब्यौराऔर लोया के साथ अंतिम क्षणों में रहने वाले न्यायाधीशों द्वारा दिये गये बयानों का भी जिक्र किया और दावा किया कि इसमें कहीं कोई गड़बड़ नहीं थी. सोहराबुद्दीन शेख फर्जी मुठभेड़ मामले की सुनवाई कर रहे सीबीआई के विशेष न्यायाधीश बी एच लोया की एक दिसंबर, 2014 को नागपुर में मृत्यु हो गयी थी जहां वह अपने एक सहयोगी की बेटी के विवाह में शामिल होने गये थे.
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इस मामले की स्वतंत्र जांच कराने के लिये बंबई लायर्स एसोसिएशन, कांग्रेस नेता तहसीन पूनावाला और महाराष्ट्र के पत्रकार बी एस लोन ने शीर्ष अदालत में याचिकायें दायर की थी.
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पीठ ने कहा कि वह इस पर अपना आदेश सुनायेगी और संबंधित पक्षों को निर्देश दिया कि वे चाहें तो इस मामले में अपनी लिखित दलीलें दे सकते हैं. इससे पहले, रोहतगी ने कहा, ‘‘ इस न्यायालय को जांच का आदेश देने का अधिकार है और उसने फर्जी मुठभेड़ और दंगों के मामले में इसका उपयोग किया है. परंतु इस मामले में, न्यायालय को जांच का आदेश देते समय बहुत सावधानी बरतनी चाहिए क्योंकि बंबई उच्च न्यायालय के पीठासीन न्यायाधीशों और यहां तक कि प्रशासनिक समिति को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 161 के अंतर्गत अपने बयान दर्ज कराने होंगे.’’ उन्होंने कहा कि न्यायलाय को यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि न्यायाधीश लोया की एक दिसंबर, 2014 को मृत्यु के बाद तीन साल तक कुछ नहीं हुआ था और कोई याचिका भी दायर नहीं हुई थी. परंतु अब यदि इन याचिकाओं पर न्यायालय जांच का आदेश देता है तो इसकी कुछ प्रतिक्रियायें भी होंगी.
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रोहतगी ने मीडिया की खबरों का जिक्र करते हुये कहा कि इन लेखों पर भरोसा करने की जरूरत नहीं है. उन्होंने इस मामले में अभी तक की जांच का ब्यौराऔर लोया के साथ अंतिम क्षणों में रहने वाले न्यायाधीशों द्वारा दिये गये बयानों का भी जिक्र किया और दावा किया कि इसमें कहीं कोई गड़बड़ नहीं थी. सोहराबुद्दीन शेख फर्जी मुठभेड़ मामले की सुनवाई कर रहे सीबीआई के विशेष न्यायाधीश बी एच लोया की एक दिसंबर, 2014 को नागपुर में मृत्यु हो गयी थी जहां वह अपने एक सहयोगी की बेटी के विवाह में शामिल होने गये थे.
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इस मामले की स्वतंत्र जांच कराने के लिये बंबई लायर्स एसोसिएशन, कांग्रेस नेता तहसीन पूनावाला और महाराष्ट्र के पत्रकार बी एस लोन ने शीर्ष अदालत में याचिकायें दायर की थी.
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