
दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि 1993 में विश्वासमत के दौरान पीवी नरसिंह राव सरकार के पक्ष में मत देने वाले झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रमुख शिबू सोरेन और पार्टी के तीन सांसदों को मिला धन कर-योग्य है।
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति वी कामेश्वर राव की खंडपीठ ने अपने फैसले में आयकर अपीली न्यायाधिकरण का निर्णय निरस्त कर दिया। न्यायाधिकरण ने कहा था कि इन सांसदों को मिला धन कर योग्य नहीं है।
न्यायालय ने आयकर विभाग की अपील पर यह फैसला सुनाया। आयकर विभाग ने न्यायाधिकरण के निर्णय को चुनौती देते हुए कहा था कि झारखंड मुक्ति मोर्चा के मुखिया शिबू सोरेन और तीन सांसदों सूरज मंडल, साइमन मरांडी और शैलेन्द्र महतो को दी गई रकम रिश्वत थी जो अघोषित आमदनी थी। इसलिए यह कर योग्य है।
पूर्व सांसदों ने भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत मुकदमे की सुनवाई के दौरान स्वीकार किया था कि 1993 में उन्हें विश्वासमत के पक्ष में मत देने के लिए कांग्रेस पार्टी ने धन दिया था।
इन सभी को उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद रिश्वत लेने के आरोप से बरी कर दिया गया था। उच्च्तम न्यायालय ने कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 105 के तहत सांसदों को विशेष छूट प्राप्त है।
अनुच्छेद 105 संसद और उसके सदस्यों के अधिकारों और विशेषाधिकारों से संबंधित है और इसमें प्रावधान है कि संसद में दिए गए भाषण या मत देने के मामले में किसी भी सांसद के खिलाफ किसी भी अदालत में कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी। इन नेताओं ने आयकर अपीली आयुक्त के 1997 के कर निर्धारण आदेश के खिलाफ आयकर अपीली न्यायाधिकरण में याचिका दायर की थी। न्यायाधिकरण ने इन नेताओं के पक्ष में व्यवस्था दी थी।
झारखंड मुक्ति मोर्चा के तत्कालीन सांसदों ने अपीली न्यायाधिकरण के समक्ष दलील दी थी कि कर निर्धारण अधिकारी ने 1.76 करोड़ रुपये की जिस राशि को 'अघोषित आमदनी' बताया है और जिसे उनके नाम से पंजाब नेशनल बैंक में जमा किया गया था वह पार्टी की ओर से मिला चंदा था।
उच्च न्यायालय ने कहा कि आय कर विभाग द्वारा ली गई तलाशी के दौरान सामने आये तथ्यों के मद्देनजर बैंक में जमा कराई गई रकम उनकी पार्टी की नहीं बल्कि झारखंड मुक्ति मोर्चा के सांसदों की ही थी।
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