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This Article is From Oct 25, 2019

दुष्यंत चौटाला कैसे बने हरियाणा के 'किंगमेकर'?

हरियाणा विधानसभा के चुनाव परिणाम (Haryana Assembly Elections 2019) ने पूर्व उप-प्रधानमंत्री एवं दिग्गज जाट नेता देवीलाल की विरासत पर चर्चा का रुख उनके प्रपौत्र दुष्यंत चौटाला ( Dushyant Chautala) के पक्ष में मोड़ दिया है. 

दुष्यंत चौटाला कैसे बने हरियाणा के 'किंगमेकर'?
दुष्यंत चौटाला (Dushyant Chautala)
चंडीगढ़:

हरियाणा में सरकार गठन को लेकर जारी असमंजस की स्थिति पर विराम लग गया है. राज्य में बीजेपी और जेजेपी मिलकर सरकार बनाएंगी. भाजपा को दुष्यंत चौटाला (Dushyant Chautala) की जननायक जनता पार्टी (JJP) अपना समर्थन देगी. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि मुख्यमंत्री भाजपा का होगा और डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला की पार्टी की तरफ से बनाया जाएगा. बता दें कि  हरियाणा विधानसभा चुनाव में BJP ने 'अबकी बार 75 पार' नारा दिया था, लेकिन पार्टी उम्मीदों के मुताबिक प्रदर्शन करने में नाकाम रही. 90 सदस्यीय विधानसभा में बहुमत का आंकड़ा 46 है, लेकिन बीजेपी को 40 सीटों पर जीत मिली. वहीं, जेजेपी के खाते में 10 सीटें आईं.  

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हरियाणा विधानसभा के चुनाव परिणाम (Haryana Assembly Elections 2019) ने पूर्व उप-प्रधानमंत्री एवं दिग्गज जाट नेता देवीलाल की विरासत पर चर्चा का रुख उनके प्रपौत्र दुष्यंत चौटाला ( Dushyant Chautala) के पक्ष में मोड़ दिया है. दुष्यंत चौटाला ( Dushyant Chautala) जाट समुदाय तथा युवाओं में एक सम्मानित नेता बनकर उभरे हैं. पिछले साल इनेलो में दुष्यंत के पिता अजय चौटाला और चाचा अभय चौटाला के बीच दो फाड़ हो गया था. अजय और अभय पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला के पुत्र हैं. अजय और उनके पिता इनेलो के कार्यकाल में हुए शिक्षक भर्ती घोटाले में सजा काट रहे हैं. कुछ लोग दुष्यंत को जोखिम उठाने वाला व्यक्ति मानते हैं. उन्होंने इनेलो के उत्तराधिकार को लेकर अपने चाचा अभय के साथ कानूनी लड़ाई में पड़ने की जगह नयी पार्टी बनाने का विकल्प चुना था. कुछ खापों और पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने चौटाला परिवार में मेल-मिलाप कराने की कोशिशें की थीं, लेकिन दुष्यंत अपने फैसले पर अटल रहे.  

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गठन के एक महीने बाद ही जजपा को पिछले साल दिसंबर में जींद उपचुनाव में अपनी पहली चुनावी चुनौती का सामना करना पड़ा. इसके उम्मीदवार दिग्विजय चौटाला भाजपा के हाथों हार गए, लेकिन जजपा कांग्रेस के धुरंधर रणदीप सिंह सुरजेवाला को तीसरे स्थान पर धकेलने में कामयाब रही.इसके बाद जजपा ने लोकसभा चुनाव में तीन सीट आम आदमी पार्टी के लिए छोड़ते हुए सात सीटों पर चुनाव लड़ा था. तब भाजपा ने राज्य की सभी 10 लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज करते हुए अन्य दलों का सूपड़ा साफ कर दिया था. दुष्यंत चौटाला को खुद अपनी हिसार सीट गंवानी पड़ी थी. लेकिन यह हार उन्हें पार्टी निर्माण और विधानसभा चुनाव में एक शक्ति के रूप में उभरने के बड़े लक्ष्य की ओर जाने से नहीं रोक पाई.  

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जजपा ने इस बार किसी के साथ गठबंधन नहीं किया और विधानसभा चुनाव अपने दम पर ही लड़ा. दुष्यंत चौटाला ने खुद कड़े मुकाबले वाली उचाना कलां सीट पर पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह की पत्नी एवं भाजपा नेता प्रेमलता के खिलाफ लड़ने का विकल्प चुना और जीत दर्ज की. प्रेमलता ने पिछली बार उन्हें इस सीट पर हराया था. पिछले पांच वर्षों में अपनी यात्रा को याद करते हुए दुष्यंत ने कहा, ‘काफी बदलाव हुआ है, राजनीति में आने के लिए मुझे अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी और आज मैं पार्टी का नेतृत्व कर रहा हूं. इसके लिए कड़े प्रयास और बड़े बदलावों की जरूरत है.' सांसद के रूप में दुष्यंत चौटाला संसद में काफी सक्रिय थे. उन्होंने विभिन्न मुद्दों पर 677 सवाल पूछे. किसानों की चिंताओं को रेखांकित करने के लिए वह कई बार ट्रैक्टर से संसद पहुंच जाते थे. 

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(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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