कोर्ट की कॉपी के मुताबिक़, एहसान जाफ़री ने सोसायटी के अंदर से भीड़ पर फ़ायरिंग की थी...
नई दिल्ली:
2002 के गुलबर्ग सोसायटी मामले में सज़ा पर कोर्ट के फ़ैसले की कॉपी आ गई है। कोर्ट की कॉपी में कई ऐसे बातें सामने आई हैं जिससे इस मामले पर नई बहस छिड़ गई है। फ़ैसले की कॉपी में साफ़ तौर पर कहा गया है कि हिंसा के दौरान मारे गए पूर्व कांग्रेस सांसद एहसान जाफ़री हिंसा भड़काने के लिए ज़िम्मेदार हैं, जिसमें 69 लोगों की मौत हुई थी।
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कोर्ट की कॉपी के मुताबिक़, एहसान जाफ़री ने सोसायटी के अंदर से भीड़ पर फ़ायरिंग की थी, जिसमें एक शख़्स की मौत हो गई और इसके बाद हिंसा और भड़क गई। उस वक़्त वहां मौजूद सीमित पुलिस बल के पास उतनी बड़ी भीड़ को रोकने के पर्याप्त साधन मौजूद नहीं थे, जिससे ये हिंसा और बड़ी हो गई। हालांकि कोर्ट ने हिंसा के दिन को सिविल सोसायटी के इतिहास में काला दिन करार देते हुए कहा कि किसी भी क़ीमत पर हत्या को सही नहीं ठहराया जा सकता। साल 2002 के इस गुलबर्ग सोसायटी नरसंहार से जुड़े मामले में एसआईटी की विशेष अदालत ने शुक्रवार को कुल 24 में से 11 दोषियों को उम्रकैद की सज़ा सुनाई है, जबकि एक दोषी को 10 साल और शेष 11 दोषियों को सात-सात कैद की सज़ा दी गई है। एसआईटी की विशेष अदालत ने 2 जून को इस मामले में 24 आरोपियों को दोषी ठहराया था और 36 को बरी कर दिया था। नरसंहार कांड के कुल 66 में से पांच आरोपियों की मौत हो चुकी है, जबकि एक आरोपी लापता है।
28 फरवरी, 2002 को हज़ारों लोगों की हिंसक भीड़ ने गुलबर्ग सोसायटी पर हमला किया था, और 69 लोगों को मार डाला था, जिनमें पूर्व कांग्रेस सांसद एहसान जाफ़री भी थे। मारे गए लोगों में से 39 लोगों के शव बरामद हुए थे और 30 लापता लोगों को सात साल बाद मृत मान लिया गया था।
गुलबर्ग सोसाइटी नरसंहार मामले में कोर्ट ने जिन लोगों को सबूतों के अभाव में बरी किया था, उनमें चार बार भारतीय जनता पार्टी के पार्षद रह चुके बिपिन पटेल भी शामिल हैं। कोर्ट ने सभी 66 आरोपियों के खिलाफ साजिश रचने का आरोप खारिज करते हुए कहा था कि इसके लिए कोई सबूत नहीं मिल पाया है। इसे नरसंहार में मारे गए लोगों के परिजनों के लिए झटका माना जा रहा है, जिनका कहना है कि सोसायटी पर हमला पूर्व-नियोजित था।
गुलबर्ग नरसंहार केस, वर्ष 2002 में गोधरा ट्रेन आगजनी कांड के बाद गुजरात में भड़के दंगों के दौरान हुए उन 10 बड़े मामलों में शामिल है, जिनकी जांच सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम ने दोबारा की थी।
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कोर्ट की कॉपी के मुताबिक़, एहसान जाफ़री ने सोसायटी के अंदर से भीड़ पर फ़ायरिंग की थी, जिसमें एक शख़्स की मौत हो गई और इसके बाद हिंसा और भड़क गई। उस वक़्त वहां मौजूद सीमित पुलिस बल के पास उतनी बड़ी भीड़ को रोकने के पर्याप्त साधन मौजूद नहीं थे, जिससे ये हिंसा और बड़ी हो गई।
28 फरवरी, 2002 को हज़ारों लोगों की हिंसक भीड़ ने गुलबर्ग सोसायटी पर हमला किया था, और 69 लोगों को मार डाला था, जिनमें पूर्व कांग्रेस सांसद एहसान जाफ़री भी थे। मारे गए लोगों में से 39 लोगों के शव बरामद हुए थे और 30 लापता लोगों को सात साल बाद मृत मान लिया गया था।
गुलबर्ग सोसाइटी नरसंहार मामले में कोर्ट ने जिन लोगों को सबूतों के अभाव में बरी किया था, उनमें चार बार भारतीय जनता पार्टी के पार्षद रह चुके बिपिन पटेल भी शामिल हैं। कोर्ट ने सभी 66 आरोपियों के खिलाफ साजिश रचने का आरोप खारिज करते हुए कहा था कि इसके लिए कोई सबूत नहीं मिल पाया है। इसे नरसंहार में मारे गए लोगों के परिजनों के लिए झटका माना जा रहा है, जिनका कहना है कि सोसायटी पर हमला पूर्व-नियोजित था।
गुलबर्ग नरसंहार केस, वर्ष 2002 में गोधरा ट्रेन आगजनी कांड के बाद गुजरात में भड़के दंगों के दौरान हुए उन 10 बड़े मामलों में शामिल है, जिनकी जांच सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम ने दोबारा की थी।
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