गुजरात के मोरबी में हुए हादसे के संबंध में राज्य सरकार में मंत्री रह चुके बीजेपी नेता जयनारायण व्यास ने सोमवार को एनडीटीवी से बातचीत की. इस दौरान जब उनसे ओरेवा कंपनी को पुल की मरम्मत और रखारखाव की जिम्मेदारी देने के संबंध में सवाल किया गया तो उन्होंने कहा, " क्यों उन्हें टेंडर दिया गया इसकी मुझे जानकारी नहीं है. लेकिन एक बात मैं ये कह सकता हूं कि 1963 में भी इसी तरह का हादसा हुआ था. उसमें भी इतने ही लोग मारे गए थे."
उन्होंने कहा, " ऐसे में पूरे मामले में समझने वाली बात ये है कि इस तरह के पुराने पुल का जब इस्तेमाल होता है, मरम्मत होती या उनका रखरखाव किया जाता है, तो उसे विशेष ध्यान की जरूरत होती है. पुरानी चीजें जहां से टूटती हैं, वहां तो उसका मरम्मत कर दिया जाता है. लेकिन जहां नहीं टूटा है, वहां भी ध्यान देने की जरूरत है. आज तो नॉन डिस्ट्रक्टिव परीक्षण के इतने सारे तरीके आ गए हैं. कई एक्सपर्ट्स भी आ गए हैं. ऐसे में अगर इसे पर्यटकों के लिए चालू करने के पहले टेस्ट कर लिया गया होता तो हादसा नहीं होता."
बीजेपी नेता ने कहा, " जिस ब्रिज को राजा-रानी के दूसरे छोर पर जाने के लिए बनाया गया था, उस पर इतने सारे लोगों को एक साथ भेज देना सही नहीं है. ब्रिज को शुरू करने से पहले उसका परीक्षण जरूर करना चाहिए था. लेकिन अगर हादसा हुआ है तो जिम्मेदारी तो तय होगी ही क्योंकि बिना लापरवाही के इतनी बड़ी घटना नहीं हो सकती. एनडीटी की रिपोर्ट के बिना पुल को नहीं खोला जाना चाहिए था."
जयनारायण व्यास ने कहा, " हम कई चीजों को टेकेन फॉर ग्रांटेड लेते हैं. माना हम मरम्मत ठीक से नहीं कर पाए लेकिन हम लोगों की संख्या को तो नियंत्रित कर सकते थे. इसके लिए बहुत बड़ी पुलिस बल की जरूरत नहीं है. एक साथ इतने लोगों को भेजना कहीं से भी जायज नहीं है. अगर 100 की कैपेसिटी हो 65-70 को भेजो. कोई दिक्कत नहीं आएगी. इस घटना में हर एजेंसी की लापरवाही कारण रही है."
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