बुंदेलखंड में लगातार 3 फसलें सूखे और बेमौसम बारिश के कारण नष्ट हो चुकी हैं
बुंदेलखंड:
एनडीटीवी पर सूखाग्रस्त बुंदेलखंड इलाके के ललितपुर जिले की हकीकत दिखाए जाने के 24 घंटे के भीतर यहां सरकारी अधिकारी पहुंचे। बता दें कि एनडीटीवी ने अपनी रिपोर्ट में दिखाया था कि कैसे 2 साल से सूखाग्रस्त इस इलाके के लोग घास की रोटी और खरपतवार की सब्जी खाने को मजबूर हैं।
यह पहली बार है जब लडवारी गांव के लोगों की मुलाकात यहां के तहसीलदार और खंड विकास अधिकारी से हुई है। इसी लडवारी गांव की रिपोर्ट एनडीटीवी ने मंगलवार को दिखाई थी। लडवारी गांव के सीमांत किसान भैरों सिंह और रणधीर सिह ने बताया कि सरकार यहां हमारी सुध लेने नहीं बल्की एक अलग ही एजेंडे के तहत आए थे।
दोनों किसानों ने बताया, 'हमने उनसे कहा कि हमारे पास खाने के लिए कुछ नहीं है इसलिए घास खा रहे हैं। लेकिन तहसीलदार ने इस बात पर जोर देकर कहा कि आप घास खा रहे हैं, क्योंकि यह आपके जनजातीय समुदाय का परंपरागत भोजन है।' बता दें कि लडवारी में सहरिया जनजातीय समुदाय की अच्छी खासी तादात है।
'घास की रोटी यहां का परंपरागत भोजन'
ग्रामीणों ने बताया कि अधिकारियों ने उन पर यह कहने के लिए दबाव बनाया कि एनडीटीवी ने जबरदस्ती उनसे घास की रोटी बनाने को कहा। लेकिन जब ग्रामीणों ने इस बात से इनकार किया तो तहसीलदार गांव के कुछ पुराने सदस्यों को एफिडेविट पर दस्तखत करने के लिए ले आए, जिसमें लिखा था कि गांव में कोई भुखमरी नहीं है।
लडवारी गांव तालबेहट तहसील के अंतर्गत आता है। यहां की तहसीलदार प्रीति जैन से जब एनडीटीवी ने इस बारे में बात की तो उन्होंने फिर से गांव में कही अपनी बात दोहरा दी। उन्होने कहा, 'फिकार (घास) की रोटी यहां परंपरागत तौर पर खाई जाती हैं। अन्य चीजों के साथ ही ये इन लोगों के खाने का हिस्सा है।'
ये हाल तो तब है जबकि हमारी रिपोर्ट में साफ तौर पर पता चलता है कि घास की ये कड़वी रोटियां यहां पहले खाई जाती थीं, लेकिन सालों पहले इन्हें नियमित भोजन से हटा दिया गया है। अब इन्हें बुरे वक्त में ही खाया जाता है। हमारी रिपोर्ट में इस बात की तरफ इंगित किया गया है कि घास और खरपतवार खाना इस इलाके में भूखमरी के संकट के और गहराने के संकेत हैं। यह हालात एक के बाद एक फसलों के चौपट होने के बने हैं।
बच्चों को दाल-दूध भी नहीं दे पा रहे लोग
यहां भोजन के भंडार खाली हो चुके हैं और लोगों ने खाने की आदतों में गंभीर रूप से कमी कर ली है। कई लोगों ने हमें बताया कि वे अब 24 घंटे में तीन की बजाय दो बार ही खाते हैं। यही नहीं दाल और दूध जैसे प्रोटीन के स्रोतों में भी भारी कटौती कर ली गई है।
यहां हालात ऐसे हैं कि सालों पहले छोड़ी जा चुकी घास की रोटी और खरपतवार की सब्जी खाने की मजबूरी फिर से जिंदा हो गई है, जिससे कुछ हद तक भूख शांत हो रही है। ऐसे वक्त में तहसीलदार का कहना है, 'यहां खाने की कोई कमी नहीं है। लोगों को यहां मासिक राशन भी मिल रहा है और कोई भुखमरी नहीं है।'
उम्मीद है कि जो कुछ यहां जांच में पाया गया, उसकी रिपोर्ट आधिकारिक तौर पर लखनऊ में राज्य सरकार को पहुंचा दी जाएगी।
यहां अधिकारी आए भी तो जैसे लोगों के जख्मों पर नमक छिड़ककर चले गए। भैरों प्रसाद का कहना है, 'तहसीलदार यहां आई थीं और उन्होंने कहा कि कल डीएम आएंगे, इसलिए अच्छे कपड़े पहन के रखना और बच्चों को नहला देना। उन्होंने कहा हमें अच्छा दिखना चाहिए, हमने भी कह दिया, हम ऐसा कुछ नहीं करेंगे। जैसे हैं वैसे ही डीएम के सामने जाएंगे।'
यह पहली बार है जब लडवारी गांव के लोगों की मुलाकात यहां के तहसीलदार और खंड विकास अधिकारी से हुई है। इसी लडवारी गांव की रिपोर्ट एनडीटीवी ने मंगलवार को दिखाई थी। लडवारी गांव के सीमांत किसान भैरों सिंह और रणधीर सिह ने बताया कि सरकार यहां हमारी सुध लेने नहीं बल्की एक अलग ही एजेंडे के तहत आए थे।
दोनों किसानों ने बताया, 'हमने उनसे कहा कि हमारे पास खाने के लिए कुछ नहीं है इसलिए घास खा रहे हैं। लेकिन तहसीलदार ने इस बात पर जोर देकर कहा कि आप घास खा रहे हैं, क्योंकि यह आपके जनजातीय समुदाय का परंपरागत भोजन है।' बता दें कि लडवारी में सहरिया जनजातीय समुदाय की अच्छी खासी तादात है।
'घास की रोटी यहां का परंपरागत भोजन'
ग्रामीणों ने बताया कि अधिकारियों ने उन पर यह कहने के लिए दबाव बनाया कि एनडीटीवी ने जबरदस्ती उनसे घास की रोटी बनाने को कहा। लेकिन जब ग्रामीणों ने इस बात से इनकार किया तो तहसीलदार गांव के कुछ पुराने सदस्यों को एफिडेविट पर दस्तखत करने के लिए ले आए, जिसमें लिखा था कि गांव में कोई भुखमरी नहीं है।
लडवारी गांव तालबेहट तहसील के अंतर्गत आता है। यहां की तहसीलदार प्रीति जैन से जब एनडीटीवी ने इस बारे में बात की तो उन्होंने फिर से गांव में कही अपनी बात दोहरा दी। उन्होने कहा, 'फिकार (घास) की रोटी यहां परंपरागत तौर पर खाई जाती हैं। अन्य चीजों के साथ ही ये इन लोगों के खाने का हिस्सा है।'
ये हाल तो तब है जबकि हमारी रिपोर्ट में साफ तौर पर पता चलता है कि घास की ये कड़वी रोटियां यहां पहले खाई जाती थीं, लेकिन सालों पहले इन्हें नियमित भोजन से हटा दिया गया है। अब इन्हें बुरे वक्त में ही खाया जाता है। हमारी रिपोर्ट में इस बात की तरफ इंगित किया गया है कि घास और खरपतवार खाना इस इलाके में भूखमरी के संकट के और गहराने के संकेत हैं। यह हालात एक के बाद एक फसलों के चौपट होने के बने हैं।
बच्चों को दाल-दूध भी नहीं दे पा रहे लोग
यहां भोजन के भंडार खाली हो चुके हैं और लोगों ने खाने की आदतों में गंभीर रूप से कमी कर ली है। कई लोगों ने हमें बताया कि वे अब 24 घंटे में तीन की बजाय दो बार ही खाते हैं। यही नहीं दाल और दूध जैसे प्रोटीन के स्रोतों में भी भारी कटौती कर ली गई है।
यहां हालात ऐसे हैं कि सालों पहले छोड़ी जा चुकी घास की रोटी और खरपतवार की सब्जी खाने की मजबूरी फिर से जिंदा हो गई है, जिससे कुछ हद तक भूख शांत हो रही है। ऐसे वक्त में तहसीलदार का कहना है, 'यहां खाने की कोई कमी नहीं है। लोगों को यहां मासिक राशन भी मिल रहा है और कोई भुखमरी नहीं है।'
उम्मीद है कि जो कुछ यहां जांच में पाया गया, उसकी रिपोर्ट आधिकारिक तौर पर लखनऊ में राज्य सरकार को पहुंचा दी जाएगी।
यहां अधिकारी आए भी तो जैसे लोगों के जख्मों पर नमक छिड़ककर चले गए। भैरों प्रसाद का कहना है, 'तहसीलदार यहां आई थीं और उन्होंने कहा कि कल डीएम आएंगे, इसलिए अच्छे कपड़े पहन के रखना और बच्चों को नहला देना। उन्होंने कहा हमें अच्छा दिखना चाहिए, हमने भी कह दिया, हम ऐसा कुछ नहीं करेंगे। जैसे हैं वैसे ही डीएम के सामने जाएंगे।'
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