''किसी के लिए मुफ्त उपहार, किसी के लिए अहम जरूरत'' : पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार

पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने स्वास्थ्य, शिक्षा, आवास और बुनियादी ढांचे जैसी जरूरतों को पूरा करने में विफल रहने पर केंद्र और राज्य सरकारों की आलोचना की

''किसी के लिए मुफ्त उपहार, किसी के लिए अहम जरूरत'' : पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार

पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम (फाइल फोटो).

नई दिल्ली:

पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम (Arvind Subramanian) आज "मुफ्त की रेवड़ी" को लेकर चल रही बहस का हिस्सा बन गए. उन्होंने मुफ्त उपहार (Freebies) के मुद्दे को लेकर स्वास्थ्य, शिक्षा, आवास और बुनियादी ढांचे जैसी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने में विफल रहने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों की आलोचना की. उन्होंने यह भी कहा कि राजनीतिक सीमाओं से परे मुफ्त उपहार के वादे किए जाते हैं और इसलिए इस मुद्दे पर "किसी भी पार्टी के पास नैतिक आधार नहीं है."

बीजेपी ने मुफ्त उपहार देने की परंपरा का विरोध करते हुए कहा है कि यह राज्य में वित्तीय बर्बादी ला सकता है. माना जाता है कि इसके पीछे निशाना अरविंद केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी है. इस मुद्दे को लेकर बीजेपी और आम आदमी पार्टी के बीच घमासान मच गया है.

एक खास इंटरव्यू में सुब्रमण्यम ने एनडीटीवी से कहा कि जो "मुफ्त उपहार" शब्द को कलंकित करता है, वह है गरीबों के कल्याण के प्रति मध्यम वर्ग का पूर्वाग्रह. मध्यम वर्ग को मिलने वाली मुफ्त सुविधाओं को अनदेखा कर दिया जाता है.

इस संदर्भ में उन्होंने 2016 के उस समय को याद किया, जब पूर्व वित्त मंत्री स्वर्गीय अरुण जेटली के अनुरोध पर आर्थिक सर्वेक्षण में मध्यम वर्ग को दिए जाने वाले मुफ्त उपहारों की सूची तैयार की गई थी. सूची में कर कटौती प्रमुख रूप से थी और इसमें घाटे में चल रहे सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के वित्तपोषण जैसे कई अन्य लाभ शामिल थे.

मौजूदा समय को लेकर उन्होंने कहा कि, जो मुफ्त में मिलता है, मैं जरूरी नहीं कि इन चीजों को मुफ्त कहूं. इनमें से कई चीजों को वास्तव में बुनियादी जरूरतें कहा जाता है - आवास, बिजली, बैंक खातों के माध्यम से कनेक्टिविटी वगैरह."

उन्होंने कहा कि, इसलिए कोई भी मुफ्त की परिभाषा पर खरा उतरने वाला नहीं है. एक आदमी के लिए मुफ्त, दूसरे की जरूरत है. उदाहरण के तौर पर उन्होंने किसानों के लिए सब्सिडी वाली बिजली का हवाला दिया. उन्होंने कहा कि यह उनके लिए जीवनदान हो सकता है लेकिन एक पर्यावरणविद के लिए यह एक बहुत ही खतरनाक बात होगी.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सबसे पहले मुफ्तखोरी का विरोध किया और "रेवड़ी" शब्द गढ़ा, जबकि उनकी सरकार ने विभिन्न सब्सिडी और कल्याणकारी योजनाओं के तहत लाखों करोड़ रुपये के मुफ्त उपहार दिए हैं. इसमें आवास योजना, मुफ्त गैस सिलेंडर, शौचालय के लिए सब्सिडी और किसानों को मदद शामिल है.

सुब्रमण्यम ने कहा कि किसी भी सरकार (केंद्र या राज्य) ने वास्तव में मुफ्त स्वास्थ्य और शिक्षा मुहैया नहीं कराई है. सिर्फ एक अपवाद अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी होगी.

सुब्रमण्यन ने कहा, "मुफ्त उपहार कुछ मायनों में समस्या के लक्षण हैं." उन्होंने कहा, भारतीय राज्य स्वास्थ्य, शिक्षा, विकास और रोजगार देने में बहुत अच्छे नहीं रहे हैं. राज्य स्वास्थ्य और शिक्षा प्रदान नहीं कर सकते, केंद्र रोजगार नहीं दे सकता और विकास नहीं कर सकता, जो कि एक आधुनिक, विकसित समाज के प्रतीक हैं.

बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय ने एक याचिका दायर की थी जिसमें चुनाव के समय मुफ्त उपहार के वादे को चुनौती दी गई थी. इससे मुफ्त को लेकर बहस सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गई. अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी, जो कि अपने शासित राज्यों में मुफ्त बिजली और पानी देने के लिए जानी जाती है, ने याचिका को चुनौती दी है. तमिलनाडु में सत्तारूढ़ द्रमुक ने भी याचिका का विरोध करते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया है.

मामले की पहली सुनवाई में चीफ जस्टिस एनवी रमना की अगुवाई वाली पीठ ने कहा था कि मुफ्त का प्रावधान एक गंभीर आर्थिक मुद्दा है और चुनाव के समय "मुफ्त उपहार बजट" नियमित बजट से ऊपर होता है.

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