विदेश मंत्री सुषमा स्वराज. (फाइल फोटो)
संयुक्त राष्ट्र:
विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करते हुए कहा कि जलवायु परिवर्तन से पैदा हुई चुनौतियों पर 'चर्चा से ज्यादा कार्रवाई' की जरूरत है. उन्होंने विकसित देशों के नेताओं से अपील की कि वे गरीब देशों की प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और हरित जलवायु वित्तपोषण के जरिये मदद करें.
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पेरिस समझौते से चीन और भारत जैसे देशों के अधिक लाभान्वित होने का दावा करते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा था कि जलवायु परिवर्तन पर समझौता अमेरिका के लिए सही नहीं है, क्योंकि यह उसके व्यापार और नौकरियों को बुरी तरह प्रभावित करता है. संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) की बैठक को संबोधित करते हुए स्वराज ने कहा कि यह महज संयोग नहीं है कि दुनिया ने डराने वाला समुद्री तूफान, भूकंप, बारिश और जोरदार तूफान देखा है.
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उन्होंने कहा, 'प्रकृति ने 'हार्वे' के जरिये न्यूयॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र में दुनिया के नेताओं के जमा होने से पहले ही संसार को चेतावनी भेज दी है.' उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक में हिस्सा लेने के लिए दुनियाभर के नेताओं के एकत्र होने पर मेक्सिको में भूकंप आया और डोमिनिका में समुद्री तूफान आया. स्वराज ने कहा, 'हमें इस बात को अवश्य समझना चाहिए कि इसए लिए वार्ता की बजाय गंभीर कार्रवाई की जरूरत है. विकसित दुनिया को अन्य की तुलना में अधिक सावधानी से सुनना चाहिए, क्योंकि उनके पास दूसरों की तुलना में अधिक क्षमता है.
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गरीबों को सहयोग किया जाना चाहिए
सुषमा ने कहा, 'गरीबों को तकनीकी हस्तांतरण और हरित जलवायु वित्त पोषण के माध्यम से सहयोग किया जाना चाहिए, जो भविष्य की पीढ़ियों को बचाने का एकमात्र रास्ता है.' पेरिस समझौते का मुख्य उद्देश्य इस सदी में वैश्विक तापमान बढ़ोतरी को दो डिग्री सेल्सियस से कम रखकर जलवायु परिवर्तन के खतरे से लड़ने में वैश्विक एकजुटता को मजबूत करना है. इस तरह का प्रयास करना है कि तापमान वृद्धि को डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक सीमित किया जा सके. ऐतिहासिक समझौता पिछले साल नवंबर में हुआ था. इसमें विश्व के देशों से आह्वान किया गया था कि जलवायु परिवर्तन से लड़ें और भविष्य में कार्बन के कम उत्सर्जन के लिए कार्रवाई एवं निवेश तेज करें और जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों को अपना सकें.
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पेरिस समझौते से चीन और भारत जैसे देशों के अधिक लाभान्वित होने का दावा करते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा था कि जलवायु परिवर्तन पर समझौता अमेरिका के लिए सही नहीं है, क्योंकि यह उसके व्यापार और नौकरियों को बुरी तरह प्रभावित करता है. संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) की बैठक को संबोधित करते हुए स्वराज ने कहा कि यह महज संयोग नहीं है कि दुनिया ने डराने वाला समुद्री तूफान, भूकंप, बारिश और जोरदार तूफान देखा है.
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उन्होंने कहा, 'प्रकृति ने 'हार्वे' के जरिये न्यूयॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र में दुनिया के नेताओं के जमा होने से पहले ही संसार को चेतावनी भेज दी है.' उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक में हिस्सा लेने के लिए दुनियाभर के नेताओं के एकत्र होने पर मेक्सिको में भूकंप आया और डोमिनिका में समुद्री तूफान आया. स्वराज ने कहा, 'हमें इस बात को अवश्य समझना चाहिए कि इसए लिए वार्ता की बजाय गंभीर कार्रवाई की जरूरत है. विकसित दुनिया को अन्य की तुलना में अधिक सावधानी से सुनना चाहिए, क्योंकि उनके पास दूसरों की तुलना में अधिक क्षमता है.
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गरीबों को सहयोग किया जाना चाहिए
सुषमा ने कहा, 'गरीबों को तकनीकी हस्तांतरण और हरित जलवायु वित्त पोषण के माध्यम से सहयोग किया जाना चाहिए, जो भविष्य की पीढ़ियों को बचाने का एकमात्र रास्ता है.' पेरिस समझौते का मुख्य उद्देश्य इस सदी में वैश्विक तापमान बढ़ोतरी को दो डिग्री सेल्सियस से कम रखकर जलवायु परिवर्तन के खतरे से लड़ने में वैश्विक एकजुटता को मजबूत करना है. इस तरह का प्रयास करना है कि तापमान वृद्धि को डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक सीमित किया जा सके. ऐतिहासिक समझौता पिछले साल नवंबर में हुआ था. इसमें विश्व के देशों से आह्वान किया गया था कि जलवायु परिवर्तन से लड़ें और भविष्य में कार्बन के कम उत्सर्जन के लिए कार्रवाई एवं निवेश तेज करें और जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों को अपना सकें.
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