मशहूर आर्किटेक्ट चार्ल्स कोरिया की फाइल फोटो
नई दिल्ली:
हम सब अपनी ज़िंदगी में किसी न किसी इमारत को देखने की हसरतें पालते हैं। किसी न किसी इमारत को देखकर आहें भरते हैं कि आखिर इसे बनाने वाले ने कैसे इसको बनाया होगा। कितना खुलापन है, हवा कहां-कहां से आ जाती है और रोशनी कैसे इधर-उधर से छन कर आती है। आज़ाद भारत में ऐसे ही एक शाहकार हुए हैं 'चार्ल्स कोरिया'।
आज़ादी के बाद के भारत की इमारतों को अंग्रेज़ों की बनाई इमारतों से आज़ाद किया, मुगलकालीन भव्यता के असर से पीछा छुड़ाया और सार्वजनिक इमारतों को नई सोच के साथ खड़ा कर दिया।
कोरिया कहा करते थे कि बाज़ार की शक्तियों के भरोसे शहर नहीं बसता है, बल्कि वे शहर को बेतरतीब बना देती हैं। मुंबई के पास नवी मुंबई है, जिसकी रूपरेखा को बनाने का काम चार्ल्स कोरिया को मिला था। कोरिया की डिज़ाइन की ख़ूबी यह है कि वह अपनी भव्यता, शालीनता और खुलेपन में भारत के आधुनिक मिज़ाज को दर्शाती है।
उनकी तमाम इमारतों को देखते हुए आपको प्राचीन, मुग़लकालीन या अंग्रेज़ों के दौर की बनी इमारतों के खुलेपन की याद तो आएगी, लेकिन धीरे-धीरे आप समझने लगेंगे कि इन्हें देखते वक्त किसी बादशाह का ख़्याल नहीं आ रहा है।
कोरिया की बनाई इमारतों में आपको अपना चेहरा दिखेगा।
उनकी इमारतें सरकार की तरह नहीं होती बल्कि दोस्त की तरह लगती हैं। किसी इमारत को बनाने और उसे देखने के नज़रिए में बड़ा बदलाव कोरिया की डिज़ाइन इमारतों से आया। हमारे शहर की बसावट की इतनी दिक्कतें हैं कि तंग गलियों में सिकुड़ जाते है, तो खुली जगहों में भटक जाते हैं। शहर आपको धकियाने लगता है। अपनापन नहीं लगता है। सरकारी या प्राइवेट इमारतें छाती पर गिरते पड़ते नज़र आती हैं।
चार्ल्स कोरिया जैसे वास्तुकार आर्किटेक्ट अपनी पूरी ज़िंदगी इन नज़रियो को बदलने में लगे हैं। उनकी डिज़ाइन की हुईं इमारतें हमारी परंपरा और इतिहास बोध के करीब होते हुए भी भविष्य के भारत के आधुनिक स्वरूप की छवियां गढ़तीं हैं।
साबरमती आश्रम का 'गांधी स्मारक संग्रहालय', 1982 में भोपाल का 'भारत भवन', 1996 में बनी 'मध्यप्रदेश की विधानसभा' भी कोरिया की कल्पना है।
कोरिया ने इसे वैदिक सिद्धांतों के आधार पर बनाया है। 'दिल्ली की ब्रिटिश लाइब्रेरी' की यह इमारत ज़माने तक चर्चा में रहीं हैं। उसी से थोड़ी दूर पर 'रीगल सिनेमा' के पास बना एलआईसी भवन, दिल्ली का ही 'आर्ट एंड क्राफ्ट म्यूज़ियम' यह सब कोरिया की ही देन है। इन सब इमारतों को कभी क़रीब से देखिएगा, तब आप समझ पाएंगे कि चार्ल्स कोरिया ने भारत को क्या दिया है।
पुर्तगाल के जिस अस्पताल में ललित मोदी की पत्नी का आपरेशन हुआ, उसकी वास्तुकला बेजोड़ मानी जाती है। यह बेहद दुखद है कि एक ज़हीन वास्तुकार के जाने की सूचना में एक फ़रार दौलतमंद अय्याश आरोपी का ज़िक्र आ रहा है। 'Champalimaud Centre for the Unknown' कोरिया की बेहतरीन कृति मानी जाती है।
हमने इतना सब कुछ इसलिए बताया कि चार्ल्स कोरिया हमारे बीच नहीं हैं। लेकिन उनकी इमारतें हैं, जो आपको याद दिलाएंगी कि एक ऐसा शख्स था, जो आपके शहर को आपके लिए बनाना चाहता था।
पूरी दुनिया में भवनों की डिज़ाइन करने वाले उससे ताल्लुक रखने वाले लोगों के बीच चार्ल्स कोरिया का जाना एक ऐसा स्पेस बना गया है, जिसे वे कभी अपनी इमारतों के बीच बनाया करते थे। ख़ाली-ख़ाली सा, खुला-खुला सा।
आज़ादी के बाद के भारत की इमारतों को अंग्रेज़ों की बनाई इमारतों से आज़ाद किया, मुगलकालीन भव्यता के असर से पीछा छुड़ाया और सार्वजनिक इमारतों को नई सोच के साथ खड़ा कर दिया।
कोरिया कहा करते थे कि बाज़ार की शक्तियों के भरोसे शहर नहीं बसता है, बल्कि वे शहर को बेतरतीब बना देती हैं। मुंबई के पास नवी मुंबई है, जिसकी रूपरेखा को बनाने का काम चार्ल्स कोरिया को मिला था। कोरिया की डिज़ाइन की ख़ूबी यह है कि वह अपनी भव्यता, शालीनता और खुलेपन में भारत के आधुनिक मिज़ाज को दर्शाती है।
उनकी तमाम इमारतों को देखते हुए आपको प्राचीन, मुग़लकालीन या अंग्रेज़ों के दौर की बनी इमारतों के खुलेपन की याद तो आएगी, लेकिन धीरे-धीरे आप समझने लगेंगे कि इन्हें देखते वक्त किसी बादशाह का ख़्याल नहीं आ रहा है।
कोरिया की बनाई इमारतों में आपको अपना चेहरा दिखेगा।
उनकी इमारतें सरकार की तरह नहीं होती बल्कि दोस्त की तरह लगती हैं। किसी इमारत को बनाने और उसे देखने के नज़रिए में बड़ा बदलाव कोरिया की डिज़ाइन इमारतों से आया। हमारे शहर की बसावट की इतनी दिक्कतें हैं कि तंग गलियों में सिकुड़ जाते है, तो खुली जगहों में भटक जाते हैं। शहर आपको धकियाने लगता है। अपनापन नहीं लगता है। सरकारी या प्राइवेट इमारतें छाती पर गिरते पड़ते नज़र आती हैं।
चार्ल्स कोरिया जैसे वास्तुकार आर्किटेक्ट अपनी पूरी ज़िंदगी इन नज़रियो को बदलने में लगे हैं। उनकी डिज़ाइन की हुईं इमारतें हमारी परंपरा और इतिहास बोध के करीब होते हुए भी भविष्य के भारत के आधुनिक स्वरूप की छवियां गढ़तीं हैं।
साबरमती आश्रम का 'गांधी स्मारक संग्रहालय', 1982 में भोपाल का 'भारत भवन', 1996 में बनी 'मध्यप्रदेश की विधानसभा' भी कोरिया की कल्पना है।
कोरिया ने इसे वैदिक सिद्धांतों के आधार पर बनाया है। 'दिल्ली की ब्रिटिश लाइब्रेरी' की यह इमारत ज़माने तक चर्चा में रहीं हैं। उसी से थोड़ी दूर पर 'रीगल सिनेमा' के पास बना एलआईसी भवन, दिल्ली का ही 'आर्ट एंड क्राफ्ट म्यूज़ियम' यह सब कोरिया की ही देन है। इन सब इमारतों को कभी क़रीब से देखिएगा, तब आप समझ पाएंगे कि चार्ल्स कोरिया ने भारत को क्या दिया है।
पुर्तगाल के जिस अस्पताल में ललित मोदी की पत्नी का आपरेशन हुआ, उसकी वास्तुकला बेजोड़ मानी जाती है। यह बेहद दुखद है कि एक ज़हीन वास्तुकार के जाने की सूचना में एक फ़रार दौलतमंद अय्याश आरोपी का ज़िक्र आ रहा है। 'Champalimaud Centre for the Unknown' कोरिया की बेहतरीन कृति मानी जाती है।
हमने इतना सब कुछ इसलिए बताया कि चार्ल्स कोरिया हमारे बीच नहीं हैं। लेकिन उनकी इमारतें हैं, जो आपको याद दिलाएंगी कि एक ऐसा शख्स था, जो आपके शहर को आपके लिए बनाना चाहता था।
पूरी दुनिया में भवनों की डिज़ाइन करने वाले उससे ताल्लुक रखने वाले लोगों के बीच चार्ल्स कोरिया का जाना एक ऐसा स्पेस बना गया है, जिसे वे कभी अपनी इमारतों के बीच बनाया करते थे। ख़ाली-ख़ाली सा, खुला-खुला सा।
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