देश में जब किसी राज्य में चुनाव होते हैं और सरकार बनाने की कवायद तेज होती है तभी राजनीतिक दल एक-दूसरे पर हॉर्स ट्रेडिंग (Horse Trading) का आरोप लगाने लगते हैं. साथ ही अपने विधायकों (MLAs) उनके घर से निकालकर किसी सुरक्षित जगह में एक साथ रखते हैं. पिछले कुछ सालों में आपने महाराष्ट्र (Maharashtra), राजस्थान (Rajasthan), कर्नाटक (karnataka) और मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में ऐसी घटनाएं देखी होगीं. लेकिन इन दिनों राज्यसभा चुनाव (Rajya Sabha elections) के चलते यह बात राजनीतिक दलों के द्वारा एक बार फिर दोहराई जा रही है. बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने कई राज्यों में अपने विधायकों को एक साथ रिसॉर्ट में भेज दिया है. राजनीतिक दल ऐसा क्यों करते हैं इसके बारे में आप जानते हैं, लेकिन हॉर्स ट्रेडिंग क्या होती है. भारतीय राजनीति में यह शब्द कैसे प्रचलन में आया? आज हम इसके बारे में आपको बता रहे हैं....
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हॉर्स ट्रेडिंग का क्या मतलब है ?
"हॉर्स ट्रेडिंग" इसके शाब्दिक अर्थ पर जाएंगे तो इसका मतलब घोड़ों की खरीद- फरोख्त से है, लेकिन यहां पर किसी घोड़े को नहीं खरीदा जा रहा है. कैंब्रिज डिक्शनरी के अनुसार "हॉर्स ट्रेडिंग" शब्द का मतलब किन्हीं दो पार्टियों के बीच चतुराई पूर्ण ऐसी संधि से होता है, जिसमें एक दूसरे को दोनों लोग लाभ पहुंचाने के लिए कोई काम करते हैं. भारतीय राजनीति में इस तरह की स्थिति जब भी बनती है, राजनेता इसे "हॉर्स ट्रेडिंग"का नाम देते हैं.
हॉर्स ट्रेडिंग शब्द कब प्रचलित हुआ?
हॉर्स ट्रेडिंग शब्द 1820 के आसपास सामने आया था. तब इसका मतलब राजनीति से नहीं, बल्कि घोड़ों की खरीद-फरोख्त से था. उस दौरान घोड़े पालने वाले और घोड़े खरीदने वाले लोग अलग-अलग हुआ करते थे. इनके बीच कुछ बिचौलिए यानी ट्रेडर होते थे, जो कुछ कमीशन लेकर घोड़ों को एक जगह से खरीदकर दूसरी जगह बेचते थे. लेकिन इस ट्रेडिंग में धीरे-धीरे एक चालाकी सामने आने लगी. घोड़े बेचने वाले व्यापारी या बिचौलिए अधिक फायदा कमाने के लिए कुछ अच्छी नस्ले के घोड़े छिपा देते थे. उनको बेचने के लिए चालाकी कर ज्यादा पैसे वसूलते थे.
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राजनीति में क्या होती है हॉर्स ट्रेडिंग?
राजनीति में हॉर्स ट्रेडिंग किसी पार्टी की सरकार बनाने या गिराने के लिए की जाती है. इसमें राजनीतिक दल एक-दूसरे दल के सदस्यों को पैसे, पद और प्रतिष्ठा का लालच देकर अपनी ओर मिलाने का प्रयास करते हैं. राजनीति में इसी डील को हॉर्स ट्रेडिंग कहते हैं.
हरियाणा के इस विधायक ने एक दिन 3 बार बदली थी पार्टी
भारतीय राजनीति में खरीद-फरोख्त (हॉर्स ट्रेडिंग) का बड़ा उदाहरण हरियाणा की राजनीति में देखने को मिलता है. साल 1967 में हरियाणा के पलवल जिले के हसनपुर विधानसभा क्षेत्र से विधायक बने गया लाल ने एक ही दिन में तीन बार पार्टी बदली थी. दिन की शुरुआत उन्होंने कांग्रेस का हाथ छोड़कर जनता पार्टी का दामन थामकर की. फिर थोड़ी देर में कांग्रेस में वापस आ गए. करीब 9 घंटे बाद उनका हृदय परिवर्तन हुआ और एक बार फिर जनता पार्टी में चले गए. फिर गया लाल का हृदय परिवर्तन हो गया और वापस कांग्रेस में आ गए. इसके बाद कांग्रेस के तत्कालीन नेता राव बीरेंद्र सिंह उनको लेकर चंडीगढ़ पहुंचे और पत्रकारवार्ता की.
“आया राम गया” राम शब्द यहीं से प्रचलन में आया
राव बीरेंद्र ने पत्रकार वार्ता में कहा था, 'गया राम अब आया राम हैं. ' इस घटना के बाद से भारतीय राजनीति में ही नहीं बल्कि आम जीवन में भी पाला बदलने वाले दलबदलुओं के लिए 'आया राम, गया राम' शब्द का इस्तेमाल होने लगा.
हॉर्स ट्रेडिंग पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
साल 2014 में आम आदमी पार्टी ने हॉर्स ट्रेडिंग का आरोप लगाया. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आखिर विधायकों के खरीद फरोख्त को हॉर्स ट्रेडिंग क्यों कहा जाता है. इसे आदमियों का क्यों नहीं कहा जाता. जस्टिस एच एल दत्तू की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने चुटकी ली थी. देश में हॉर्स ट्रेडिंग को रोकने के लिए कानूनी स्तर पर प्रयास भी किये जा रहे हैं, लेकिन वह नाकाफी साबित हो रहे हैं.
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