पुणे:
जानवरों की रक्षा के लिए आक्रामक तौर-तरीके अपनाने वाले या स्वयंभू गौ-रक्षक पूरे देशभर में फल-फूल रहे हैं. संसद में भी इन पर बहस हो रही है और ये लोग लगातार सुर्खियां भी बन रहे हैं. एनडीटीवी ने यह जानने की कोशिश की कि आखिर कैसे इन लोगों को बिना किसी परेशानी के अपनी आक्रामक शैली में काम करने दिया जा रहा है.
एनडीटीवी के कैमरामैन संजय मंडल छिपा हुआ कैमरा लेकर एक ट्रक में सहायक के तौर पर पुणे से सतारा के लिए निकले. इस ट्रक में 10 भैंसों को लेकर जाया जा रहा था. ट्रक के ड्राइवर शफाक कुरैशी ने हमें बताया कि वह 20 जानवर लेकर पुणे व्यापार के लिए आया था और उनमें से केवल 10 ही बिके. अब वह इन बाकी 10 जानवरों को लेकर वापस जा रहा है और वहां ग्रामीण मंडी में इन्हें बेचने की कोशिश करेगा.
एनडीटीवी की एक अन्य टीम बड़ी सावधानी से इस ट्रक का पीछा कर रही थी.
हमने पहले ट्रक के कागजात और उसमें ले जाए जा रहे सामान की अच्छी तरह से जांच-पड़ताल की, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वह कानूनी दिशा-निर्देशों का पालना कर रहा है. महाराष्ट्र के कानून के अनुसार बीफ (या काटने के लिए गाय, बैल व बछड़ों) का अवैध परिवहन प्रतिबंधित है.
हालांकि कमजोर भैसों का वध किया जा सकता है.
ट्रक में मौजूद भैंसों को सरकारी मंडी और जहां से उन्हें खरीदा गया था, वहीं से बांझ घोषित किया गया था. ड्राइवर के पास सरकारी पशु चिकित्सक द्वारा जारी एक चिकित्सा प्रमाणपत्र भी था, जिसके तहत वह पशुओं को लेकर जा सकता था.
फिर भी पुणे से करीब एक घंटे की दूरी पर सास्वद गांव में गौ-रक्षकों की भीड़ ने ट्रक को रोक लिया. उस भीड़ ने हमारे कैमरामैन संजय और ट्रक ड्राइवर के साथ धक्का-मुक्की की. उनका फोन भी छीन लिया. वे सभी इस दौरान गाली-गलौज करते रहे. वे लोग ट्रक की केबिन में घुस आए और फिर ट्रक को पुलिस स्टेशन पहुंचा दिया. पुलिस स्टेशन पहुंचने तक उन्होंने एक बार भी ट्रक में पीछे क्या है, यह देखने की जहमत भी नहीं उठायी.
सास्वद पुलिस थाने में काफी बड़ी मात्रा में भीड़ इकट्ठा हो गई. यहां के माहौल में तनाव साफ झलक रहा था. पुलिस ने वहां मौजूद भीड़ को नियंत्रित करने की थोड़ी-बहुत कोशिश की, लेकिन इस दौरान भी वह गौ-रक्षकों की इस भीड़ का नेतृत्व कर रहे एक युवक से इशारों पर काम करते रहे. इस युवक ने एनडीटीवी के सामने अपनी पहचान एक स्थानीय हिन्दूवादी संगठन 'समस्त हिन्दू अगाड़ी' के सदस्य सुभाष तयाडे के रूप में बताई.
तयाड़े के साथियों ने बताया कि यहां एक गौशाला चलाने वाले पंडित परसुराम मोदक ने उन्हें इस ट्रक के बारे में जानकारी दी. उन्होंने बताया, 'पंडित जी की गुप्त सूचना के बाद हम लोग रातभर इस ट्रक की तलाश में लगे रहे.'
फेसबुक पर एक कम्यूनिटी पेज के अनुसार परसुराम मोदक एक गौरक्षक हैं और उन्होंने 40 साल तक बीजेपी व आरएसएस के के लिए काम किया है.
जब हमने सब इंस्पेक्टर एएस तपड़े से पूछा कि कैसे यह भीड़ किसी ट्रक को रोक सकती है और धक्का-मुक्की कर सकती है? उन्होंने कहा कि गौरक्षक सिर्फ पुलिस को सूचना देते हैं. हमने जो देखा था वह इससे बिल्कुल उलट था. वहां भीड़ का कानून चल रहा था. जब तपड़े पर दबाव डाला गया तो उन्होंने कहा, अगर जरूरत पड़ी तो गौरक्षकों पर कार्रवाई होगी.
इस बीच एक वरिष्ठ अधिकारी, इंस्पेक्टर एसएस गौड़ वहां आ पहुंचे और उन्होंने प्रभार अपने हाथ में ले लिया. गौड़ मामले को पूरी तरह से सुनते उससे पहले ही तपड़े को किसी स्वामी का फोन आया. तपड़े ने भी फोन इंस्पेक्टर को बढ़ा दिया. इंस्पेक्टर गौड़ ने स्वामी को बताया कि ट्रक में गाय-बैल नहीं बल्कि भैंसें थी और ऐसा लगता है कि इनके पास सभी जरूरी कागजात भी हैं.
बाद में पता चला कि यह स्वामी कोई और नहीं बल्कि शिव शंकर स्वामी थे. स्वामी के बारे में पता चला कि वे पुणे क्षेत्र में जानवरों के कई तबेले चलाते हैं. उनके खिलाफ हत्या की कोशिश सहित कई मुकदमे दर्ज हैं. यही नहीं उन्हें कुछ समय के लिए जिला बदर भी किया गया था.
स्वामी का फोन आने के कुछ ही देर बाद पुलिस ने पशु वध विरोधी कानून और पशुओं के खिलाफ क्रूरता के प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया.
ड्राइवरों को कानूनी मदद देने वाले एक समूह के सदस्य सादिक कुरैशी काफी गुस्से में दिखे. उन्होंने कहा, हमारे पास चिकित्सा बॉक्स, पानी, चारा सब कुछ है. पुलिस ऊपर के दबाव में काम कर रही है. अब हम इंस्पेक्टर के केबिन के बगल में बने एक कमरे की तरफ बढ़े. इस कमरे में गौरक्षक एफआईआर तैयार करने में पुलिस की मदद करने में जुटे हुए थे.
कई बार आग्रह करने के बावजूद पुलिस इंस्पेक्टर ने इस बारे में कुछ भी कहने से साफ इनकार कर दिया. जब हमारी यह रिपोर्ट टीवी पर दिखाई गई, उस समय ट्रक को जब्त करने के बाद, भैंसों को पशु तबेले में भेज दिया गया था और ड्राइवर को गिरफ्तार कर लिया गया था. यही नहीं जिन्होंने भीड़ को इकट्ठा किया, ट्रक पर हमला किया और वहां दंगे जैसे हालात पैदा कर दिए वे छुट्टे घूम रहे थे.
एनडीटीवी के कैमरामैन संजय मंडल छिपा हुआ कैमरा लेकर एक ट्रक में सहायक के तौर पर पुणे से सतारा के लिए निकले. इस ट्रक में 10 भैंसों को लेकर जाया जा रहा था. ट्रक के ड्राइवर शफाक कुरैशी ने हमें बताया कि वह 20 जानवर लेकर पुणे व्यापार के लिए आया था और उनमें से केवल 10 ही बिके. अब वह इन बाकी 10 जानवरों को लेकर वापस जा रहा है और वहां ग्रामीण मंडी में इन्हें बेचने की कोशिश करेगा.
एनडीटीवी की एक अन्य टीम बड़ी सावधानी से इस ट्रक का पीछा कर रही थी.
हमने पहले ट्रक के कागजात और उसमें ले जाए जा रहे सामान की अच्छी तरह से जांच-पड़ताल की, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वह कानूनी दिशा-निर्देशों का पालना कर रहा है. महाराष्ट्र के कानून के अनुसार बीफ (या काटने के लिए गाय, बैल व बछड़ों) का अवैध परिवहन प्रतिबंधित है.
हालांकि कमजोर भैसों का वध किया जा सकता है.
ट्रक में मौजूद भैंसों को सरकारी मंडी और जहां से उन्हें खरीदा गया था, वहीं से बांझ घोषित किया गया था. ड्राइवर के पास सरकारी पशु चिकित्सक द्वारा जारी एक चिकित्सा प्रमाणपत्र भी था, जिसके तहत वह पशुओं को लेकर जा सकता था.
फिर भी पुणे से करीब एक घंटे की दूरी पर सास्वद गांव में गौ-रक्षकों की भीड़ ने ट्रक को रोक लिया. उस भीड़ ने हमारे कैमरामैन संजय और ट्रक ड्राइवर के साथ धक्का-मुक्की की. उनका फोन भी छीन लिया. वे सभी इस दौरान गाली-गलौज करते रहे. वे लोग ट्रक की केबिन में घुस आए और फिर ट्रक को पुलिस स्टेशन पहुंचा दिया. पुलिस स्टेशन पहुंचने तक उन्होंने एक बार भी ट्रक में पीछे क्या है, यह देखने की जहमत भी नहीं उठायी.
सास्वद पुलिस थाने में काफी बड़ी मात्रा में भीड़ इकट्ठा हो गई. यहां के माहौल में तनाव साफ झलक रहा था. पुलिस ने वहां मौजूद भीड़ को नियंत्रित करने की थोड़ी-बहुत कोशिश की, लेकिन इस दौरान भी वह गौ-रक्षकों की इस भीड़ का नेतृत्व कर रहे एक युवक से इशारों पर काम करते रहे. इस युवक ने एनडीटीवी के सामने अपनी पहचान एक स्थानीय हिन्दूवादी संगठन 'समस्त हिन्दू अगाड़ी' के सदस्य सुभाष तयाडे के रूप में बताई.
तयाड़े के साथियों ने बताया कि यहां एक गौशाला चलाने वाले पंडित परसुराम मोदक ने उन्हें इस ट्रक के बारे में जानकारी दी. उन्होंने बताया, 'पंडित जी की गुप्त सूचना के बाद हम लोग रातभर इस ट्रक की तलाश में लगे रहे.'
फेसबुक पर एक कम्यूनिटी पेज के अनुसार परसुराम मोदक एक गौरक्षक हैं और उन्होंने 40 साल तक बीजेपी व आरएसएस के के लिए काम किया है.
जब हमने सब इंस्पेक्टर एएस तपड़े से पूछा कि कैसे यह भीड़ किसी ट्रक को रोक सकती है और धक्का-मुक्की कर सकती है? उन्होंने कहा कि गौरक्षक सिर्फ पुलिस को सूचना देते हैं. हमने जो देखा था वह इससे बिल्कुल उलट था. वहां भीड़ का कानून चल रहा था. जब तपड़े पर दबाव डाला गया तो उन्होंने कहा, अगर जरूरत पड़ी तो गौरक्षकों पर कार्रवाई होगी.
इस बीच एक वरिष्ठ अधिकारी, इंस्पेक्टर एसएस गौड़ वहां आ पहुंचे और उन्होंने प्रभार अपने हाथ में ले लिया. गौड़ मामले को पूरी तरह से सुनते उससे पहले ही तपड़े को किसी स्वामी का फोन आया. तपड़े ने भी फोन इंस्पेक्टर को बढ़ा दिया. इंस्पेक्टर गौड़ ने स्वामी को बताया कि ट्रक में गाय-बैल नहीं बल्कि भैंसें थी और ऐसा लगता है कि इनके पास सभी जरूरी कागजात भी हैं.
बाद में पता चला कि यह स्वामी कोई और नहीं बल्कि शिव शंकर स्वामी थे. स्वामी के बारे में पता चला कि वे पुणे क्षेत्र में जानवरों के कई तबेले चलाते हैं. उनके खिलाफ हत्या की कोशिश सहित कई मुकदमे दर्ज हैं. यही नहीं उन्हें कुछ समय के लिए जिला बदर भी किया गया था.
स्वामी का फोन आने के कुछ ही देर बाद पुलिस ने पशु वध विरोधी कानून और पशुओं के खिलाफ क्रूरता के प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया.
ड्राइवरों को कानूनी मदद देने वाले एक समूह के सदस्य सादिक कुरैशी काफी गुस्से में दिखे. उन्होंने कहा, हमारे पास चिकित्सा बॉक्स, पानी, चारा सब कुछ है. पुलिस ऊपर के दबाव में काम कर रही है. अब हम इंस्पेक्टर के केबिन के बगल में बने एक कमरे की तरफ बढ़े. इस कमरे में गौरक्षक एफआईआर तैयार करने में पुलिस की मदद करने में जुटे हुए थे.
कई बार आग्रह करने के बावजूद पुलिस इंस्पेक्टर ने इस बारे में कुछ भी कहने से साफ इनकार कर दिया. जब हमारी यह रिपोर्ट टीवी पर दिखाई गई, उस समय ट्रक को जब्त करने के बाद, भैंसों को पशु तबेले में भेज दिया गया था और ड्राइवर को गिरफ्तार कर लिया गया था. यही नहीं जिन्होंने भीड़ को इकट्ठा किया, ट्रक पर हमला किया और वहां दंगे जैसे हालात पैदा कर दिए वे छुट्टे घूम रहे थे.
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