विरोध करते अर्द्धसैनिक बलों के जवान
नई दिल्ली:
देश के अर्द्धसैनिक बलों के रिटायर्ड जवान वन रैंक वन पेंशन जैसी कई मांगों के लेकर 2 जनवरी को दिल्ली के जंतर-मंतर सामूहिक उपवास करेंगे. इनका कहना है कि सरकार जिस तरह से सैनिकों को वन रैंक वन पेंशन यानि ओआरओपी दे रही है उसी तरह की सुविधा अर्द्धसैनिक बलों के जवानों को भी दें.
इनका मानना है कि जब ये सेना के बराबर जिम्मेदारी निभा रहे हैं तो फिर इन्हें सुविधाओं के मामले में महफूज क्यों रखा जाए. इन रिटायर्ड जवानों की शिकायत है जब भी जरूरत होती है अर्द्धसैनिक बलों के जवान मौके पर होते हैं लेकिन जब बात सुविधा और सम्मान देने की होती है तो सरकार पीछे रहती है. ना तो उन्हें शहीद का सम्मान मिलता है और न ही पेंशन.
कॉनफेडरेशन ऑफ एक्स पैरामिलेट्री फोर्सेज वेलफेयर एसोसियेशन के बैनर तले सामूहिक उपवास पर बैठने वाले इन जवानों का कहना है कि अर्द्धसैनिक बलों के रिटायर्ड जवानों की हालत काफी खराब है. हर साल सैकड़ों जवान देश के अंदर माओवादी और आतंकवादियों से लड़ते हुए अपनी जान गंवा देते हैं. आईटीबीपी के जवान 18 हजार की फीट पर चीन से लगी सरहद पर तैनात रहते हैं, वहीं बीएसएफ के जवान पाकिस्तान से लगी सीमा पर आतंकवादियों से लोहा लेते हैं, लेकिन इन दोनों सरहदों पर सेना के जवान के मुकाबले उन्हें सुविधा कम मिलती है, बल्कि मरने पर भी उनके परिवार को मुआवजा काफी कम मिलता है.
इनके महासचिव रणवीर सिंह का कहना है कि हमनें पहले भी कई बार केन्द्र सरकार से अपनी मांगों को लेकर ज्ञापन दिया है लेकिन अभी तक सरकार का रवैया उदासीन ही रहा है. इनका कहना है कि देश की संसद को अर्द्धसैनिक बलों के जवानों ने बचाया लेकिन 2004 के बाद सरकार ने इनकी पेंशन बंद कर दी.
इनका कहना है कि जब मोदी सरकार ने विकलांग को दिव्यांग में योजना आयोग को नीति आयोग में और 7 आरसीआर को लोक कल्याण मार्ग कर दिया तो फिर क्यों ना सरकार अर्द्धसैनिक बल को पूर्ण सैनिक में तब्दील करे. देश में करीब 12 लाख सेवा में और आठ लाख रिटायर्ड अर्द्धसैनिक बलों के जवान हैं इनका कहना है कि अगर हमारी मांग पूरी नहीं होती है तो अपना आंदोलन और तेज करेंगे.
बता दें कि बीएसएफ के लोगों का कहना है कि पे और पर्क्स के मामले उनके साथ भेदभाव होता है. कई ऐसे पर्क्स हैं जो सेना के लोगों को दिए जाते हैं जबकि उन्हें स्थानों पर तैनात बीएसएफ के अधिकारियों और जवानों को नहीं दिया जाता है.
बीएसएफ के लोगों का यह भी तर्क है कि आतंकवादियों के विरुद्ध कार्रवाई में वे लगातार अपनी भूमिका निभाते हैं. यहां तक की नक्सल विरोधी गतिविधियों में भी देश सेवा करते हैं. इनका कहना है कि युद्ध के मौके पर भी वे सेना के साथ ही रहते हैं और कई बार तो पहले हमले का सामना उनके जवान ही पूरे दमखम के साथ लगती है.
इनका मानना है कि जब ये सेना के बराबर जिम्मेदारी निभा रहे हैं तो फिर इन्हें सुविधाओं के मामले में महफूज क्यों रखा जाए. इन रिटायर्ड जवानों की शिकायत है जब भी जरूरत होती है अर्द्धसैनिक बलों के जवान मौके पर होते हैं लेकिन जब बात सुविधा और सम्मान देने की होती है तो सरकार पीछे रहती है. ना तो उन्हें शहीद का सम्मान मिलता है और न ही पेंशन.
कॉनफेडरेशन ऑफ एक्स पैरामिलेट्री फोर्सेज वेलफेयर एसोसियेशन के बैनर तले सामूहिक उपवास पर बैठने वाले इन जवानों का कहना है कि अर्द्धसैनिक बलों के रिटायर्ड जवानों की हालत काफी खराब है. हर साल सैकड़ों जवान देश के अंदर माओवादी और आतंकवादियों से लड़ते हुए अपनी जान गंवा देते हैं. आईटीबीपी के जवान 18 हजार की फीट पर चीन से लगी सरहद पर तैनात रहते हैं, वहीं बीएसएफ के जवान पाकिस्तान से लगी सीमा पर आतंकवादियों से लोहा लेते हैं, लेकिन इन दोनों सरहदों पर सेना के जवान के मुकाबले उन्हें सुविधा कम मिलती है, बल्कि मरने पर भी उनके परिवार को मुआवजा काफी कम मिलता है.
इनके महासचिव रणवीर सिंह का कहना है कि हमनें पहले भी कई बार केन्द्र सरकार से अपनी मांगों को लेकर ज्ञापन दिया है लेकिन अभी तक सरकार का रवैया उदासीन ही रहा है. इनका कहना है कि देश की संसद को अर्द्धसैनिक बलों के जवानों ने बचाया लेकिन 2004 के बाद सरकार ने इनकी पेंशन बंद कर दी.
इनका कहना है कि जब मोदी सरकार ने विकलांग को दिव्यांग में योजना आयोग को नीति आयोग में और 7 आरसीआर को लोक कल्याण मार्ग कर दिया तो फिर क्यों ना सरकार अर्द्धसैनिक बल को पूर्ण सैनिक में तब्दील करे. देश में करीब 12 लाख सेवा में और आठ लाख रिटायर्ड अर्द्धसैनिक बलों के जवान हैं इनका कहना है कि अगर हमारी मांग पूरी नहीं होती है तो अपना आंदोलन और तेज करेंगे.
बता दें कि बीएसएफ के लोगों का कहना है कि पे और पर्क्स के मामले उनके साथ भेदभाव होता है. कई ऐसे पर्क्स हैं जो सेना के लोगों को दिए जाते हैं जबकि उन्हें स्थानों पर तैनात बीएसएफ के अधिकारियों और जवानों को नहीं दिया जाता है.
बीएसएफ के लोगों का यह भी तर्क है कि आतंकवादियों के विरुद्ध कार्रवाई में वे लगातार अपनी भूमिका निभाते हैं. यहां तक की नक्सल विरोधी गतिविधियों में भी देश सेवा करते हैं. इनका कहना है कि युद्ध के मौके पर भी वे सेना के साथ ही रहते हैं और कई बार तो पहले हमले का सामना उनके जवान ही पूरे दमखम के साथ लगती है.
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