नारायण मूर्ति और विशाल सिक्का(फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
इंफोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति ने सोमवार को कहा है कि कारपोरेट गवर्नेंस के मसले पर जो मुद्दे उन्होंने उठाए हैं, उसका समाधान इंफोसिस बोर्ड को खोजना चाहिए. इंफोसिस देश की दूसरी सबसे बड़ी आईटी सर्विस प्रदाता कंपनी है. इससे पहले मीडिया रिपोर्टों में कहा गया था कि नारायण मूर्ति ने कहा है कि वह बोर्ड से किसी प्रकार का टकराव नहीं चाहते. इस मामले पर अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए उन्होंने NDTV से कहा है, ''नहीं, मैं अपनी चिंताएं वापस नहीं ली हैं. बोर्ड द्वारा उनका समुचित तरीके से समाधान किया जाना चाहिए. इस मामले में पूरी पारदर्शिता दिखाई जानी चाहिए और जो लोग भी जिम्मेदार हैं उनकी जवाबदेही तय की जानी चाहिए.''
नारायण मूर्ति ने बोर्ड की तरफ इशारा भी किया जिसने कंपनी के सीईओ विशाल सिक्का पर पूरा भरोसा जताते हुए कहा था कि ऊंचे पदों पर अच्छी नीयत के लोग विराजमान हैं. इस पर नारायण मूर्ति ने कहा कि इंसान होने के नाते अच्छे लोग भी कई बार गलतियां कर बैठते हैं. यह भी इसी तरह का एक मामला है. लेकिन अच्छे नेतृत्व की निशानी यह है कि वे सभी पक्षों की बात सुनें, निर्णयों का पुनर्मूल्यांकन करें और सुधारवादी कदम उठाएं.
दरअसल नारायण मूर्ति की प्रतिक्रिया ऐसे वक्त में आई है जब सोमवार सुबह इस मसले पर बातचीत करते हुए सीईओ विशाल सिक्का ने कहा कि मीडिया में ये सब बातचीत ध्यान भटकाने वाली हैं और नारायण मूर्ति समेत कंपनी के संस्थापकों के साथ उनके अच्छे संबंध हैं.
सिक्का ने मुंबई में कहा था, ''मीडिया में ये सब जो ड्रामा चल रहा है, यह ध्यान भटकाने वाला है लेकिन इसके भीतर कंपनी जिस मजबूत ताने-बाने पर खड़ी है, एक लीडर होने के नाते ये मेरे लिए फख्र बात है.''
गौरतलब है कि पिछले दिनों इंफोसिस के संस्थापकों तथा कंपनी के निदेशक मंडल के बीच विवाद सार्वजनिक हो गया है. कंपनी के सह संस्थापक नारायण मूर्ति ने कार्यकारियों के वेतन तथा कामकाज के संचालन को लेकर सवाल खड़ा किया है. इस संबंध में मूर्ति ने कहा था, ''मैं यह साफ कर देना चाहता हूं कि प्रबंधन मुझे चिंतित नहीं कर रहा है. मुझे लगता है कि हम सीईओ सिक्का से खुश हैं. वह अच्छा काम कर रहे हैं. हालांकि हममें से कुछ जैसे कि संस्थापकों, वरिष्ठों तथा इन्फोसिस से पूर्व में जुड़े रहे लोगों को यह बात चिंतित कर रही है कि कामकाज के संचालन यानी गवर्नेंस की कुछ चीजें ऐसी हैं जो बेहतर हो सकती थीं.''
समझा जाता है कि मूर्ति तथा दो अन्य सह-संस्थापकों नंदन नीलेकणि एवं एस गोपालकृष्णन ने कंपनी के निदेशक मंडल को पत्र लिखकर पूछा है कि सिक्का का वेतन क्यों बढ़ाया गया और कंपनी छोड़ने वाले दो शीर्ष अधिकारियों को अलग होने का इतना भारी पैकेज क्यों दिया गया? सिक्का को पिछले साल मूल वेतन, बोनस और लाभ के रूप में 48.7 करोड़ रुपये दिए गए. वहीं 2015 की आंशिक अवधि में उनका मूल वेतन 4.5 करोड़ रुपये था.
मूर्ति ने पूर्व सीएफओ राजीव बंसल को कंपनी से अलग होने के लिए 30 माह के पैकेज के रूप में 23 करोड़ रुपये दिए जाने पर भी सवाल उठाया.
नारायण मूर्ति ने बोर्ड की तरफ इशारा भी किया जिसने कंपनी के सीईओ विशाल सिक्का पर पूरा भरोसा जताते हुए कहा था कि ऊंचे पदों पर अच्छी नीयत के लोग विराजमान हैं. इस पर नारायण मूर्ति ने कहा कि इंसान होने के नाते अच्छे लोग भी कई बार गलतियां कर बैठते हैं. यह भी इसी तरह का एक मामला है. लेकिन अच्छे नेतृत्व की निशानी यह है कि वे सभी पक्षों की बात सुनें, निर्णयों का पुनर्मूल्यांकन करें और सुधारवादी कदम उठाएं.
दरअसल नारायण मूर्ति की प्रतिक्रिया ऐसे वक्त में आई है जब सोमवार सुबह इस मसले पर बातचीत करते हुए सीईओ विशाल सिक्का ने कहा कि मीडिया में ये सब बातचीत ध्यान भटकाने वाली हैं और नारायण मूर्ति समेत कंपनी के संस्थापकों के साथ उनके अच्छे संबंध हैं.
सिक्का ने मुंबई में कहा था, ''मीडिया में ये सब जो ड्रामा चल रहा है, यह ध्यान भटकाने वाला है लेकिन इसके भीतर कंपनी जिस मजबूत ताने-बाने पर खड़ी है, एक लीडर होने के नाते ये मेरे लिए फख्र बात है.''
गौरतलब है कि पिछले दिनों इंफोसिस के संस्थापकों तथा कंपनी के निदेशक मंडल के बीच विवाद सार्वजनिक हो गया है. कंपनी के सह संस्थापक नारायण मूर्ति ने कार्यकारियों के वेतन तथा कामकाज के संचालन को लेकर सवाल खड़ा किया है. इस संबंध में मूर्ति ने कहा था, ''मैं यह साफ कर देना चाहता हूं कि प्रबंधन मुझे चिंतित नहीं कर रहा है. मुझे लगता है कि हम सीईओ सिक्का से खुश हैं. वह अच्छा काम कर रहे हैं. हालांकि हममें से कुछ जैसे कि संस्थापकों, वरिष्ठों तथा इन्फोसिस से पूर्व में जुड़े रहे लोगों को यह बात चिंतित कर रही है कि कामकाज के संचालन यानी गवर्नेंस की कुछ चीजें ऐसी हैं जो बेहतर हो सकती थीं.''
समझा जाता है कि मूर्ति तथा दो अन्य सह-संस्थापकों नंदन नीलेकणि एवं एस गोपालकृष्णन ने कंपनी के निदेशक मंडल को पत्र लिखकर पूछा है कि सिक्का का वेतन क्यों बढ़ाया गया और कंपनी छोड़ने वाले दो शीर्ष अधिकारियों को अलग होने का इतना भारी पैकेज क्यों दिया गया? सिक्का को पिछले साल मूल वेतन, बोनस और लाभ के रूप में 48.7 करोड़ रुपये दिए गए. वहीं 2015 की आंशिक अवधि में उनका मूल वेतन 4.5 करोड़ रुपये था.
मूर्ति ने पूर्व सीएफओ राजीव बंसल को कंपनी से अलग होने के लिए 30 माह के पैकेज के रूप में 23 करोड़ रुपये दिए जाने पर भी सवाल उठाया.
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