
आज विश्व पर्यावरण दिवस है और इसकी थीम इस बार है Beat Plastic Pollution यानी प्लास्टिक के प्रदूषण को हराना है. प्लास्टिक आज एक ऐसा राक्षस बन गई है जिसे अगर नियंत्रित नहीं किया तो यह धरती को ही निगल जाएगी. इस समय जब धरती के लगातार बढ़ते तापमान पर चर्चा होती है तो उसमें कई वजहों को भी गिना जाता है. प्लास्टिक उन कुछ वजहों में से ही एक है और यकीन मानिए आज यह धरती का दम घोंटने वाली वजह बन चुकी है. आपके, हमारे और हर किसी के जीवन में प्लास्टिक वह हिस्सा है, जिसे अब शायद अलग करना असंभव सा हो गया है. आपके घर में कपड़े सुखाने वाली एक क्लिप से लेकर ऑफिस में बैठने वाली कुर्सी, सब जगह प्लास्टिक मौजूद है. विशेषज्ञों ने आगाह किया है अगर आज नहीं चेते तो कल दुनिया एक बड़ी मुसीबत में आ जाएगी.
कई गुना तक बढ़ेगा उपभोग
साल 2060 तक प्लास्टिक का उपभोग दुनिया में कई गुना तक बढ़ जाएगा. विशेषज्ञों का कहना है कि इस समस्या से निपटने का सिर्फ एक तरीका है कि प्लास्टिक का उपयोग कम किया जाए और इसे रि-साइकिल ज्यादा किया जाए. दुनिया में हर साल 460 लाख टन प्लास्टिक का उत्पादन होता है और यह आंकड़ा 20 साल पहले की तुलना में दोगुना है. अगर वर्तमान दर यही रही तो फिर प्लास्टिक उत्पादन साल 2060 तक तीन गुना हो जाएगा. वह भी इसलिए क्योंकि आज प्लास्टिक सस्ती, टिकाऊ और लचीली प्लास्टिक पैकेजिंग से लेकर कपड़ों और ब्यूटी कॉस्मेटिक्स तक में मौजूद है.

समुद्र में घुलता प्लास्टिक
दो तिहाई से ज्यादा प्लास्टिक प्रॉडक्ट्स जैसे पैकेजिंग, की लाइफ बहुत कम होती है और फिर वो जहरीले कचरे के ढेर में जुड़ जाते हैं. ग्लोबल लेवल पर आज सिर्फ 9 फीसदी प्लास्टिक वेस्ट को ही री-साइकिल किया जाता है, जबकि 22 फीसदी कचरा लैंडफिल, महासागरों, नदियों, झीलों और दूसरे जलाशयों में चला जाता है. यहां पर यह न सिर्फ मिट्टी को नुकसान पहुंचाता है और भूजल को जहरीला बनाता है बल्कि समुद्री जीवन पर भी बुरा असर डालता है. साथ ही फूड चेन में दाखिल हो जाता है और जिससे यह एक गंभीर खतरा पैदा करता है.
विशेषज्ञों का कहना है कि प्लास्टिक के साथ दो बड़ी समस्याएं हैं. सबसे पहले, ये कचरे के तौर पर बायो-डिग्रेडेबल नहीं हैं जो वैश्विक स्तर पर प्रति वर्ष 350 मिलियन टन (MT) से ज्यादा है. एक्सपर्ट्स कहते हैं कि प्लास्टिक कचरे के तौर पर सैकड़ों सालों तक जिंदा रह सकती है. संयुक्त राष्ट्र (यूएन) के अनुसार हर दिन, दुनिया के महासागरों, नदियों और झीलों में 2000 कचरा ट्रकों के बराबर प्लास्टिक फेंका जाता है.
मछली तक में प्लास्टिक
विशेषज्ञ कहते हैं कि 5.3 ट्रिलियन से ज्यादा प्लास्टिक के टुकड़े पहले से ही महासागरों में हैं. ये टुकड़े पृथ्वी के हर कोने में पाए जा सकते हैं. ये टुकड़ें समुद्र के सबसे गहरे बिंदु मारियाना ट्रेंच तक मौजूद हैं. यहां पर प्लास्टिक समुद्र के पानी में तैरती हुई नजर आती है तो कभी मछली और पक्षियों का भोजन बन जाती है. यहां तक कि प्लास्टिक जिंदा प्राणियों में भी मौजूद है और अब एक नए 'बायो-फार्म्स बन गए हैं. ये बायो-फार्म्स इन जानवरों को अक्सर उन्हें मार देते हैं. माइक्रोप्लास्टिक आकार में 5 मिमी या उससे कम होते हैं. ये , मछली, पीने के पानी, इंसान के खून और मिट्टी में पाए गए हैं.

जहरीले केमिकल्स का कैरियर
प्लास्टिक में अक्सर बहुत ज्यादा जहरीले केमिकल के कैरियर्स होते हैं. ये वो केमिकल्स हैं जिनकी मदद से प्लास्टिक को उपयोग के लिए बनाया जाता है. क्रोमियम जैसे हैवी मैटल्स जिनमें BPA (बिस्फेनॉल ए), फथलेट्स, BFRs (फ्लेम रिटार्डेंट्स) जैसे एंडोक्राइन डिसरप्टिंग केमिकल्स (EDC) शामिल होते हैं अक्सर प्लास्टिक पैकेजिंग और फीडिंग बॉटल, टीथर और इलेक्ट्रॉनिक प्रॉडक्ट जैसे उत्पादों से उस समय निकलते हैं जब इन उत्पादों का प्रयोग होता है. आप इन्हें वेस्ट कह सकते हैं और रीसाइक्लिंग के दौरान ये बाहर निकल जाते हैं. वे लंबे समय तक कम मात्रा में रहने पर भी ये पदार्थ कैंसर, न्यूरोलॉजिकल प्रभाव आदि पैदा कर सकते हैं.
महासागर में रिसता प्लास्टिक
प्लास्टिक हमारे जीवन के हर हिस्से में मौजूद है. पॉलिएस्टर, ऐक्रेलिक और नायलॉन समेत कपड़ों में बनी करीब 60 प्रतिशत सामाग्री में प्लास्टिक है. औद्योगिक मछली पकड़ने के सामान की वजह से हर साल समुद्र में करीब 45,000 टन प्लास्टिक जुड़ जाती है.आपको जानकर हैरानी होगी कि प्लास्टिक का प्रयोग कृषि के लिए बीज कोटिंग्स में भी किया जाता है. साल 2022 में आई OECD की पहली ग्लोबल प्लास्टिक आउटलुक रिपोर्ट में कहा गया था कि अकेले 2019 में, 6.1 मीट्रिक टन प्लास्टिक कचरा एक्वाकल्चर वातावरण में लीक हो गया था और 1.7 मीट्रिक टन महासागरों में बह गया था. अब समुद्र और महासागरों में अनुमानित 30 मीट्रिक टन प्लास्टिक कचरा है जबकि नदियों में 109 मीट्रिक टन जमा हो गया है. आज भी अगर प्लास्टिक कचरे का बैड मैनेजमेंट बंद हो जाए तो भी नदियों में पहले से मौजूद प्लास्टिक दशकों तक महासागरों में रिसता रहेगा.
जलवायु परिवर्तन की जिम्मेदार
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी)का कहना है कि प्लास्टिक, जलवायु संकट में योगदान दे रहा है. इस कार्यक्रम के जरिये दुनिया में प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने की कोशिश की जा रही है. प्रोग्राम प्लास्टिक प्रदूषण की रोकथाम के लिए कानूनी स्वरूप की दिशा में काम कर रहा है. विशेषज्ञों के अनुसार प्लास्टिक के उत्पादन में एनर्जी की खपत मैन्युफैक्चरिंग में बहुत ज्यादा होती है. साल 2019 में प्लास्टिक की वजह से 1.8 बिलियन मीट्रिक टन ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन हुआ और यह ग्लोबल ग्रीन हाउस इमीशन का कुल का 3.4 प्रतिशत है.

क्या बगैर प्लास्टिक संभव है जीवन
तो क्या हम एक ऐसी लाइफ की कल्पना कर सकते हैं जो पूरी तरह से प्लास्टिक फ्री हो? विशेषज्ञों को इसमें थोड़ा सा संदेह है. उनका कहना है कि टेक्निकली तो प्लास्टिक के बिना रहा जा सकता है. लेकिन आज यह हमारे जीवन के करीब-करीब हर पहलू में समा चुकी है. इसलिए इसके बिना जीवन की कल्पना करना मुश्किल है. हालांकि इसका भी एक विकल्प विशेषज्ञ सुझाते हैं. वो कहते हैं कि ऐसी बेहतर या पर्यावरण अनुकूल प्लास्टिक बनाई जाए जिसे खत्म किया जा सकता हो. वहीं प्लास्टिक में जहरीले केमिकल को किसी और सुरक्षित विकल्प से बदला जा सकता है ताकि उन्हें रीसाइकिल करना आसान हो सके.
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