क्या राहुल गांधी और उनके वकील ने मानहानि केस को गंभीरता से नहीं लिया? बच सकते थे 'अयोग्यता' से

ऐसा लगता है कि राहुल गांधी के संसद सदस्यता के लिए अयोग्य घोषित होने के लिए वे खुद और उनके वकीलों की टीम का आलस्य है जिम्मेदार

नई दिल्ली :

क्या राहुल गांधी और उनके वकील ने मानहानि केस को हल्के में लिया? ऐसा लगता है कि राहुल गांधी के संसद सदस्यता के लिए अयोग्य घोषित होने के लिए वे खुद और उनके वकीलों की टीम का आलस्य जिम्मेदार है. 

मानहानि मामले में गुजरात के सूरत के कोर्ट का फैसला गुजराती में है. इसे पढ़ने वालों का कहना है कि कोर्ट के नोटिस के बावजूद राहुल गांधी के वकील ने कोर्ट को कोई लिखित सबमिशन नहीं दिया. अदालती कार्यवाही पर रोक थी. हाल ही में जब यह हटी तो राहुल को इसे चुनौती देने की सलाह दी गई. लेकिन उन्होंने कहा- कुछ नहीं होगा. 

बताया जाता है कि, सूरत की अदालत में राहुल गांधी की ओर से पेश वकील एक कनिष्ठ पेशेवर था. उसने मुकदमे में बहस करने की जहमत तक नहीं उठाई. 

कल के फैसले के बाद राहुल को अयोग्यता से बचने के लिए सजा पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट जाने की सलाह दी गई थी. लेकिन बताया जाता है कि राहुल ने कहा कि कुछ नहीं होगा, वे तुरंत अयोग्य नहीं ठहराए जाएंगे.

ऐसा लगता है कि संसद सदस्यता के लिए अयोग्यता घोषित होने के लिए स्वयं राहुल गांधी और उनके वकीलों का आलस्य जिम्मेदार है.

कांग्रेस के 52 वर्षीय नेता राहुल गांधी को सूरत की एक अदालत ने दोषी ठहराया है. उन्हें उनके 2019 के एक भाषण के लिए गुरुवार को गुजरात में दो साल की जेल की सजा सुनाई गई. राहुल गांदी ने पीएम मोदी के सरनेम को दो भगोड़े व्यापारियों के साथ जोड़ते हुए टिप्पणी की थी कि "चोरों" ने सरनेम एक ही कैसे होते हैं .

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अदालत ने राहुल गांधी को जमानत दे दी है और उनकी सजा 30 दिनों के लिए निलंबित की है ताकि उन्हें उच्च न्यायालय में अपील करने की इजाजत मिल सके. लेकिन कानून के अनुसार, किसी भी सांसद को किसी अपराध का दोषी ठहराया जाता है और कम से कम दो साल की जेल की सजा सुनाई जाती है तो उसकी संसद की सदस्यता समाप्त हो जाती है.