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घने जंगल, दुर्गम चढ़ाई, फिसलन भरे रास्ते... आखिर आतंकियों ने हमले के लिए बैसरन को ही क्यों चुना?

पहलगाम से बैसरन की दूरी करीब 8 किलोमीटर है. यह एक चढ़ाई वाला रास्ता है. जहां पैदल या फिर घोड़े-खच्चर के जरिए जाया जाता है. यहां तक पहुंचने में करीब एक घंटे का समय लगता है.

घने जंगल, दुर्गम चढ़ाई, फिसलन भरे रास्ते... आखिर आतंकियों ने हमले के लिए बैसरन को ही क्यों चुना?
बैसरन घाटी, जहां आतंकियों ने सैलानियों पर किया हमला.

Pahalgam Terrorist Attack: पहलगाम हमले में आतंकियों ने जिस तरह की बर्बरता की, उसे लेकर पूरे देश में गम और गुस्से का माहौल है. आतंकियों ने यहां देश के अलग-अलग हिस्सों से घुमने आए लोगों को उनकी पत्नी, बच्चों के सामने गोलियों से भून दिया. आतंकियों ने लोगों से धर्म पूछा, कलमा पढ़ने को कहा... जो ऐसा नहीं कर सके उन्हें उन्हीं के परिजनों के सामने गोली मार दी. इस घटना के बाद भारत-पाकिस्तान में डिप्लोमेटिक वॉर छिड़ चुका है.

आतंकी आखिर कहां गए, किसी को खबर नहीं

दूसरी ओर NIA, BSF, जम्मू कश्मीर पुलिस सहित देश के अन्य सुरक्षा एजेंसियां इस वारदात को अंजाम देने वाले दहशतगर्तों की तलाश में जुटी हैं. लेकिन अभी तक सुरक्षा बल किसी आतंकी को गिरफ्तार नहीं कर सकी है. इस वारदात को अंजाम देने के बाद आतंकी कहां चले गए, इसकी किसी को कोई खबर नहीं है. 

आखिर आतंकियों ने बैसरन को ही क्यों चुना?

पहलगाम आतंकी हमले से जुड़ा एक सवाल लोगों की जेहन में है कि आखिर आतंकियों ने इस हमले के लिए बैसरन को ही क्यों चुना? इस हमले के बाद ग्राउंड जीरो पर पहुंची NDTV टीम को कई ऐसी चीजें मिली, जिससे यह साफ हुआ आखिरी आतंकियों ने इस हमले के लिए बैसरन को ही क्यों चुना?

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बैसरन घाटी तक पहुंचाना बेहद टफ

ग्राउंड जीरो पर पहुंची NDTV की टीम ने यह साफ तौर पर महसूस किया कि बैसरन पहुंचना कितना टफ है. 'मिनी स्विट्जरलैंड' के नाम से मशहूर बैसरन घाटी पहलगाम शहर के दक्षिण-पूर्व में स्थित है. यहां पहुंचना काफी मुश्किल है. क्योंकि यहां नदियों, घने जंगलों और कीचड़ भरे इलाकों से गुजरने वाले सर्पीले ट्रेक से पहुंचा जाता है. 

बैसरन के जंगलों में छिपने के लिए गुफाएं

बैसरन घने जंगलों के बीच घास का एक मैदान है. यहां की तस्वीरों में आप देख रहे होंगे कि चारों ओर से घिरे जंगलों के बीच घास का एक मैदान है, जहां बैठकर लोग अपनी छुट्टियां बिताते हैं. स्थानीय लोगों ने एनडीटीवी को बताया कि इस घने जंगल में कई गुफाएं भी है. जहां छिपे शख्स की तलाश करना बेहद मुश्किल काम है.  

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फिसलन भरे रास्ते, जरा ही चूक पर गहरी घाटी में गिरने का खतरा

पहलगाम से बैसरन घाटी जाने वाले रास्ते का बड़ा हिस्सा मोटर से चलने लायक नहीं है. मार्ग के कुछ हिस्से बेहद फिसलन भरे हैं. ऐसे में यहां खच्चर, घोड़े की चढ़ाई करते हुए सैलानी ऊपर जाते हैं. साथ ही ट्रैकिग के जरिए यहां तक जाया जाता है. लेकिन फिसलन भरे रास्ते के कारण यहां की चढाई बेहद खतरनाक है. एक छोटी सी गलती पर इंसान गहरी घाटियों में गिर सकता है.

पहुंचने में एक घंटा से ज्यादा  का समय लगता है

पहलगाम से बैसरन की दूरी करीब 8 किलोमीटर है. यह एक चढ़ाई वाला रास्ता है. जहां पैदल या फिर घोड़े-खच्चर के जरिए जाया जाता है. यहां तक पहुंचने में करीब एक घंटे का समय लगता है. यदि रास्ते में ब्रेक लें तो समय और अधिक लगता है. 

पहलगाम-बैसरन मार्ग पर कोई सुरक्षा तैनाती नहीं

पहलगाम से बैसरन तक जाने वाले रास्ते और बैसरन घाटी में सुरक्षा बलों की कोई तैनाती नहीं थी. इस हमले की रेकी कर रहे आतंकियों को इस बात की जानकारी पहले से रही होगी. ऐसे में यहां सैलानियों को निशाना बनाना आसान था.     सूत्रों की माने तो स्थानीय लोगों की मिलीभगत से आंतकियों ने इस जगह को हमले के लिए चुना.  

बैसरन में सुरक्षा बलों की तैनाती क्यों नहीं?

बैसरन के रास्ते और घाटी में सुरक्षा बलों की तैनाती क्यों नहीं थी, इस बात की जानकारी सरकार ने सर्वदलीय बैठक में दी. सरकार की ओर से बताया गया कि ये रूट अमरनाथ यात्रा के दौरान जून में खोला जाता है. अमरनाथ यात्री इसी जगह आराम करते हैं.

इस बार लोकल टूर ऑपरेटर्स ने सरकार को जानकारी दिए बिना ही बुकिंग शुरू कर दी. टूर ऑपरेटर्स ने 20 अप्रैल से टूरिस्ट को वहां ले जाना शुरू कर दिया. स्थानीय प्रशासन को भी इसकी जानकारी नहीं दी गई इसलिए सुरक्षाबलों की तैनाती नहीं हुई.

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