
- दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में 2018 के वाहन प्रतिबंध आदेश की समीक्षा की मांग की है
- याचिका में कहा कि वाहन की उम्र के आधार पर प्रतिबंध लगाने से प्रदूषण नियंत्रण में वैज्ञानिक दृष्टिकोण की कमी है
- सीएक्यूएम के आदेश के विरोध में यह याचिका दायर की गई है
दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में 2018 के उस आदेश की समीक्षा की मांग की है, जिसमें दिल्ली-एनसीआर में 10 साल से पुराने डीजल और 15 साल से पुराने पेट्रोल वाहनों पर प्रतिबंध लगाया गया था. याचिका में कहा गया है कि उम्र पर आधारित प्रतिबंध पुराना हो गया है और सड़क पर चलने लायक, प्रदूषण न फैलाने वाले वाहनों को भी गलत तरीके से निशाना बनाता है. इससे मध्यम वर्ग के वाहन मालिकों पर सबसे ज्यादा असर होता है.
इस याचिका को वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) के जुलाई के उस आदेश पर बढ़ते विरोध के बीच दायर किया गया है, जिसमें जीवन-अंत श्रेणी में आने वाले वाहनों को ईंधन की आपूर्ति रोकने का आदेश दिया गया था. जनता के कड़े विरोध और दिल्ली सरकार के हस्तक्षेप के बाद अब उस आदेश को 1 नवंबर तक के लिए टाल दिया गया है.
पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा कि 2018 के बाद से स्थिति में काफी बदलाव आया है. सिरसा ने एनडीटीवी से कहा, "2025 की स्थिति 2018 से बिल्कुल अलग है और अब कई आधुनिक तकनीकें उपलब्ध हैं. हम माननीय न्यायालय को अवगत कराना चाहते हैं और इसीलिए हमने समीक्षा याचिका दायर की है."
सिरसा ने आगे कहा, "अगर कोई वाहन प्रदूषण फैला रहा है, तो उसे प्रतिबंधित कर देना चाहिए, चाहे वह पांच साल पुराना हो या पंद्रह साल. प्रदूषण ही मानदंड होना चाहिए न कि उसकी उम्र." याचिका में चेतावनी दी गई है कि 2018 के फैसले को जारी रखने से आने वाले वर्षों में बिना किसी वैज्ञानिक औचित्य के बीएस-VI मानकों वाले वाहन भी सड़कों से हट जाएंगे. याचिका में सवाल उठाया गया है कि प्रदूषण नियंत्रण (PUC) परीक्षण पास करने वाले बीएस-IV वाहनों को भी क्यों दरकिनार किया जा रहा है और नवीनतम उत्सर्जन आंकड़ों के आधार पर निर्णय लेने की मांग की गई है.
सरकार ने न्यायालय से आग्रह किया है कि वह इस बात पर एक व्यापक, वैज्ञानिक अध्ययन का आदेश दे कि पुराने वाहन वास्तव में प्रदूषण में किस प्रकार योगदान करते हैं, न कि केवल आयु-आधारित नियमों पर निर्भर रहे. याचिका में यह भी कहा गया है कि जापान, अमेरिका और यूरोपीय संघ जैसे अन्य देश सिर्फ उम्र के आधार पर वाहनों पर प्रतिबंध नहीं लगाते. इसके बजाय, वे यह तय करने के लिए नियमित परीक्षण और वास्तविक समय के उत्सर्जन आंकड़ों पर निर्भर रहते हैं कि किसी वाहन को सड़क पर रहना चाहिए या नहीं.
इस बहस ने एनसीआर के वाहन मालिकों को चिंतित कर दिया है, जिनमें से कई का कहना है कि अच्छी तरह से रखरखाव वाली कारों के मालिक होने के बावजूद उन्हें परेशानी उठानी पड़ रही है. यह मामला अब सोमवार को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है, और इसका परिणाम राजधानी क्षेत्र के हजारों वाहन मालिकों के साथ-साथ वाहन सेवानिवृत्ति और प्रदूषण नियंत्रण पर भविष्य की राष्ट्रीय नीतियों को भी प्रभावित कर सकता है. (इशिका वर्मा की रिपोर्ट)
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