दिल्ली विधानसभा चुनाव (Delhi assembly elections) में भारतीय जनता पार्टी को 27 साल बाद शानदार जीत मिली. इस जीत तक पहुंचने से पहले पार्टी ने कई उतार चढ़ाव देखें. लोकसभा चुनावों में शानदार प्रदर्शन के बाद भी विधानसभा चुनाव में बीजेपी कभी 3 तो कभी 8 सीटों पर सिमट रही थी. बीजेपी की इस जीत का विश्लेषण कई पैमाने पर किया जा रहा है. दिल्ली की डेमोग्राफी को समझने वाले जानते हैं कि दिल्ली में एक छोटा सा हिंदुस्तान बसता है. यहां की आबादी में अलग-अलग संस्कृति और जातियों का समूह है.
लोकसभा चुनाव के दौरान अनुसूचित जाति और अन्य पिछड़ी जातियों के बीच बीजेपी की स्वीकार्यता को लेकर कई सवाल खड़े हुए थे. जाति जनगणना जैसे सवालों के आधार पर कांग्रेस ने बीजेपी को चुनौती दी थी. हालांकि इस चुनाव परिणाम ने बीजेपी के खेमें में एक नया उत्साह का संचार कर दिया. महाराष्ट्र,हरियाणा और अब दिल्ली की चुनाव परिणाम ने माहौल को बदलकर रख दिया है. बीजेपी के 22 ओबीसी उम्मीदवारों में से 16 को मिली जीत
- दिल्ली के नतीजों से पता चलता है कि भाजपा के 22 ओबीसी उम्मीदवारों में से 16 ने जीत हासिल की है. पार्टी ने उन सभी सात सीटों पर भी जीत हासिल की है, जहां 10 फीसदी से ज्यादा ओबीसी आबादी है.
- हरियाणा और पूर्वाचल के उम्मीदवारों की भी व्यापक स्वीकार्यता दिखी. 14 हरियाणवी उम्मीदवारों में से 12 जीते और छह पूर्वांचली उम्मीदवारों में से चार को जीत मिली है.
- 5 प्रतिशत से अधिक हरियाणवी मतदाताओं वाली 13 सीटों में से, भाजपा ने 12 सीटों पर जीत हासिल की है. इसके अलावा, 15 प्रतिशत से अधिक पूर्वांचली मतदाताओं वाली 35 सीटों में से, भाजपा ने 25 सीटें जीतीं.
सिख वोटर्स का भी मिला साथ
पंजाब में पिछला विधानसभा चुनाव हारने वाली पार्टी ने उन चार सीटों में से तीन पर भी जीत हासिल की, जहां 10 प्रतिशत से अधिक सिख मतदाता हैं. 10 प्रतिशत से अधिक पंजाबी मतदाताओं वाली 28 सीटों में से भाजपा ने 23 सीटें जीतीं.
दलित इलाकों में बीजेपी को नहीं मिली अच्छी सफलता
वाल्मिकी और जाटव मतदाताओं की बहुलता वाली सीटों पर बीजेपी के स्ट्राइक रेट में सुधार की गुंजाइश बची है. 10 प्रतिशत से अधिक वाल्मिकी मतदाताओं वाली नौ सीटों में से भाजपा ने चार जीतीं और 10 प्रतिशत से अधिक जाटव मतदाताओं वाली 12 सीटों में से पार्टी ने छह सीटों पर जीत हासिल की है. अनुसूचित जाति के 12 उम्मीदवारों में से 4 सीटों पर बीजेपी को जीत मिली है.
पूरे एनसीआर पर बीजेपी का प्रभाव
भाजपा ने अपने शासन वाले दो पड़ोसी राज्यों - हरियाणा और उत्तर प्रदेश - की सीमा से लगी सीटों पर भी भारी बढ़त बनाई है. पड़ोसी राज्यों के साथ सीमा साझा करने वाली कुल 22 सीटों में से, बीजेपी ने 15 सीटों पर जीत हासिल की. यूपी की सीमा वाली 13 सीटों में से सात और हरियाणा की सीमा वाली 11 सीटों में से 9 सीटों पर बीजेपी को जीत मिली है.
चुनाव के दौरान कम उठे जातिगत मुद्दे
दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान जातियों पर बयानबाजी बेहद कम हुई. इसका सबसे अहम कारण रहा कि दिल्ली में पूरे देश और हर जाति के लोग रहते हैं. किसी एक समुदाय की इतनी आबादी नहीं है कि वो चुनाव को बहुत अधिक प्रभावित करें.
AAP की असफलता को भी माना जा रहा बड़ा फैक्टर
बीजेपी की जीत में आम आदमी पार्टी के शासन व्यवस्था की असफलता को भी बड़ा कारण माना जा रहा है. दिल्ली की जनता के आप से मोहभंग के योगदान को भी बड़ा फैक्टर माना जा रहा है.
पीएम मोदी ने क्या कहा?
पीएम मोदी ने कहा कि सच्चाई ये है कि कांग्रेस पर देश बिल्कुल भरोसा करने को तैयार नहीं है. पिछली बार मैंने कहा था कि कांग्रेस एक परजीवी पार्टी बन चुकी है. खुद तो डूबती ही है, दूसरों को भी डुबाती है. कांग्रेस एक के बाद एक अपने सहयोगियों को खत्म कर रही है. इनका तरीका भी मजेदार है. आज की कांग्रेस अपने सहयोगियों की जो भाषा है, जो उनका एजेंडा है, उसी को चुराने में लगी है. उनके मुद्दे चुराती है और फिर उनके वोट बैंक में सेंध लगाती है.
प्रधानमंत्री ने कहा, "2014 के बाद पांच साल तक इन्होंने हिंदू बनने की कोशिश की. मंदिरों में जाना, माला पहनना, पूजा करना, भांति-भांति की कोशिश की. उनको लगा ये करेंगे तो बीजेपी के वोट बैंक में हम सेंध मारकर कुछ ले आएंगे, मगर दाल गली नहीं. तो आपने देखा होगा कि पिछले कुछ वर्षों से उन्होंने वो रास्ता बंद कर दिया. उन्होंने माना कि ये भाजपा का क्षेत्र है, उसमें पैर नहीं डाल सकते. अब जाएं तो जाएं कहां. तो राज्यों की जो पार्टियां अलग-अलग मुद्दों पर जो अपनी पार्टी चला रही हैं, अब उनकी नजरें उन पर है."
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