मुंबई:
मुंबई में जहां एक ओर मोनोरेल के दूसरे चरण का काम चल रहा है, वहीं दूसरी ओर मोनोरेल के पहले चरण के निर्माण पर सवाल उठने लगे हैं।
जिन खंभों को आधार बनाकर मोनोरेल की पटरियां बिछाई गईं हैं, उन पर अभी से दरारें पड़ गईं हैं। साथ ही इन खंभों के पास की जमीन में भी गहरी दरारें पड़ गई हैं। वडाला डिपो से चेंबूर की ओर जाने वाले 44-57 नंबर के खंभों और पास की सड़क पर दरारें साफ़ देखी जा सकती हैं।
रंग-बिरंगी रेल, साफ़-सुथरे स्टेशन...बेहतर टिकट सिस्टम और एसी डिब्बे... सभी आधुनिक सुविधाओं से लैस। मोनोरेल सफ़र करने का आरामदायक और सुरक्षित ज़रिया लगती है। कम से कम ऊपर से तो यही लगता है, पर नीचे का नज़ारा ठीक उल्टा है। ट्रांसपोर्ट एक्सपर्ट सुधीर बदामी का कहना है कि इस तरह की दरारें ठीक नहीं, इसकी जांच होनी चाहिए। बगैर जांच के कहा नहीं जा सकता कि दरारें ऊपरी हैं या अंदरूनी।
MMRDA डायरेक्टर का कहना है कि ये दरारें फिनिशिंग की वजह से हैं। सभी खंभे अंदर से पूरी तरह से मज़बूत है और CRRI (Central Road Research Institute) की रिपोर्ट के आधार पर इस पर काम किया जा रहा है। 2015 की CAG रिपोर्ट भी इन खामियों की पुष्टि करती है। CAG के मुताबिक हर सिविल स्ट्रक्चर की उम्र 120 साल होनी चाहिए, लेकिन मोनोरेल में इसकी अनदेखी हुई और MMRDA ने कंस्ट्रक्शन एजेंसियों के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाया।
एक शिकायतकर्ता अनिल गलगली का कहना है कि उन्होंने पहले भी इसकी शिकायत MMRDA को की, लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया, बस ऊपरी मरम्मत होती रही। अभी मोनोरेल को चलते हुए डेढ़ साल ही हुआ। ऐसे में इन खंभों पर दरारें परेशान करने वाली हैं।
जिन खंभों को आधार बनाकर मोनोरेल की पटरियां बिछाई गईं हैं, उन पर अभी से दरारें पड़ गईं हैं। साथ ही इन खंभों के पास की जमीन में भी गहरी दरारें पड़ गई हैं। वडाला डिपो से चेंबूर की ओर जाने वाले 44-57 नंबर के खंभों और पास की सड़क पर दरारें साफ़ देखी जा सकती हैं।
रंग-बिरंगी रेल, साफ़-सुथरे स्टेशन...बेहतर टिकट सिस्टम और एसी डिब्बे... सभी आधुनिक सुविधाओं से लैस। मोनोरेल सफ़र करने का आरामदायक और सुरक्षित ज़रिया लगती है। कम से कम ऊपर से तो यही लगता है, पर नीचे का नज़ारा ठीक उल्टा है। ट्रांसपोर्ट एक्सपर्ट सुधीर बदामी का कहना है कि इस तरह की दरारें ठीक नहीं, इसकी जांच होनी चाहिए। बगैर जांच के कहा नहीं जा सकता कि दरारें ऊपरी हैं या अंदरूनी।
MMRDA डायरेक्टर का कहना है कि ये दरारें फिनिशिंग की वजह से हैं। सभी खंभे अंदर से पूरी तरह से मज़बूत है और CRRI (Central Road Research Institute) की रिपोर्ट के आधार पर इस पर काम किया जा रहा है। 2015 की CAG रिपोर्ट भी इन खामियों की पुष्टि करती है। CAG के मुताबिक हर सिविल स्ट्रक्चर की उम्र 120 साल होनी चाहिए, लेकिन मोनोरेल में इसकी अनदेखी हुई और MMRDA ने कंस्ट्रक्शन एजेंसियों के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाया।
एक शिकायतकर्ता अनिल गलगली का कहना है कि उन्होंने पहले भी इसकी शिकायत MMRDA को की, लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया, बस ऊपरी मरम्मत होती रही। अभी मोनोरेल को चलते हुए डेढ़ साल ही हुआ। ऐसे में इन खंभों पर दरारें परेशान करने वाली हैं।
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