
- मध्य प्रदेश में कफ सिरप से बच्चों की मौत के बाद केंद्र और राज्य सरकार मामले की गंभीरता से जांच कर रहे हैं.
- CAG ने तमिलनाडु में दवा जांच में 2016 से लगातार लापरवाही की रिपोर्ट दिसंबर 2024 में दी थी.
- कैग रिपोर्ट में दवा निरीक्षण और सैंपलिंग के लक्ष्यों की पूर्ति में 34 से 40 प्रतिशत तक कमी पाई गई थी.
Cough Syrup Death Case: मध्यप्रदेश में कफ सिरप पीने से बच्चों की मौत के बाद मामला बीते कुछ दिनों से लगातार सुर्खियों में है. राज्य से लेकर केंद्र सरकार इस मामले की पड़ताल में जुटी है. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि दवाओं की जांच में लापरवाही का यह दौर काफी पहले से चल रहा था. साथ ही केंद्र सरकार की एजेंसी ने अपनी रिपोर्ट में इस बात को उजागर भी किया था. लेकिन इसके बाद भी व्यवस्था नहीं सुधरी और अब 23 बच्चों की मौत हो गई.
CAG ने पिछले साल ही लापरवाही को किया था उजागर
दरअसल भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) ने पिछले साल तमिलनाडु में दवा परीक्षणों में कमी की ओर इशारा करते हुए औषधि अधिकारियों की गंभीर लापरवाही की ओर इशारा किया था. कैग ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि 2016 से ही दवा की जांच में घोर लापरवाही बरती जा रही थी.

दवा की जांच और सैंपलिग में लगातार कमी
सार्वजनिक स्वास्थ्य अवसंरचना और स्वास्थ्य सेवाओं के प्रबंधन पर कैग की रिपोर्ट 10 दिसंबर, 2024 को तमिलनाडु विधानसभा में पेश की गई थी. इस रिपोर्ट में कैग ने दवा की जांच और सैंपलिग के टारगेट को प्राप्त करने में हो रही कमियों को चिह्नित किया था.
- कैग ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि साल 2016-17 में तमिलनाडु में कुल 1,00,800 जांच का लक्ष्य रखा गया था. लेकिन केवल 66,331 निरीक्षण किए गए, जो 34% की कमी को दर्शाता है.
- तीन साल बाद, 2020-21 में, औषधियों के लक्षित निरीक्षण में कमी बढ़कर 38% हो गई. इस अवधि के दौरान, 1,00,800 निरीक्षण किए जाने थे, लेकिन केवल 62,358 निरीक्षण किए गए.
- 2016 और 2021 के बीच, 2019-20 के दौरान सबसे अधिक 40% की कमी देखी गई. कैग ने औषधि निरीक्षकों द्वारा परीक्षण के लिए औषधियों के उठाव में भी कमियों को चिह्नित किया.
- उपरोक्त अवधि के दौरान, 2018-19 और 2020-21 में यह घाटा 54% दर्ज किया गया.
- मध्य प्रदेश में 23 बच्चों की मौत के बाद दवा परीक्षणों पर फिर से ध्यान केंद्रित किया जा रहा है. ये मौतें तमिलनाडु स्थित कंपनी श्री सन फार्मास्युटिकल्स द्वारा निर्मित कोल्ड्रिफ सिरप से जुड़ी हैं.
दवा की जांच क्यों जरूरी?
औषधि निरीक्षण, दवा उत्पादन प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण चरण है जिसका उद्देश्य दवाओं की गुणवत्ता सुनिश्चित करना और मिलावट को रोकना है. ये निरीक्षण औषधि निरीक्षकों द्वारा किए जाते हैं. दवाइयाँ, उनकी मंज़ूरी के बाद ही खुदरा दुकानों और क्लीनिकों तक पहुँचती हैं.
कोल्ड्रिफ में DEG नामक विषाक्त पदार्थ
बच्चों में सर्दी-खांसी के लक्षणों के इलाज के लिए दी जाने वाली दवा कोल्ड्रिफ के नमूनों को इस महीने की शुरुआत में तमिलनाडु के अधिकारियों ने मिलावटी घोषित कर दिया था, क्योंकि उसमें डायथिलीन ग्लाइकॉल (DEG) पाया गया. जो एक जहरीला पदार्थ है, जिसका इस्तेमाल प्रिंटिंग स्याही और गोंद बनाने में होता है और यह मनुष्यों में गुर्दे, यकृत और तंत्रिका तंत्र को गंभीर नुकसान पहुँचा सकता है.
0.1 प्रतिशत की जगह 46-48 फीसदी DEG मिला रहे थे
बाद में श्री सन की कांचीपुरम फैक्ट्री में डीईजी के बिना बिल वाले कंटेनर पाए गए, और यह भी पता चला कि कंपनी कोल्ड्रिफ कफ सिरप में 46-48% DEG मिला रही थी, जबकि इसकी अनुमत सीमा केवल 0.1% है.
इसके बाद तमिलनाडु औषधि नियंत्रण प्राधिकरण ने उत्पादन बंद करने का आदेश जारी किया और इसके सभी स्टॉक फ्रीज कर दिए. कंपनी का लाइसेंस भी निलंबित कर दिया गया. साथ ही श्रीसन फार्मा के मालिक रंगनाथन गोविंदन को अब गिरफ्तार कर लिया गया है.

मध्य प्रदेश ने तमिलनाडु को ज़िम्मेदार ठहराया
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने अपने राज्य में 23 से ज़्यादा बच्चों की मौत के लिए तमिलनाडु सरकार को ज़िम्मेदार ठहराया है और इसे नियामक सतर्कता और समय पर कार्रवाई में विफलता बताया है. उन्होंने कहा, "ये मौतें तमिलनाडु की एक फ़ैक्टरी में बन रहे कफ सिरप में निर्माण संबंधी खामियों के कारण हुई हैं. इसलिए, समय पर कार्रवाई और नमूने पहले वहीं शुरू किए जाने चाहिए थे."
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