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कोरोनावायरस के प्रकोप के बीच दिल्ली के निजामुद्दीन मरकज में तबलीगी जमात में आए लोगों में से 24 में कोरोनावायरस का संक्रमण पाया गया है. इसके अलावा तेलंगाना से आए 6 और एक श्रीनगर के मौलवी की मौत हो चुकी है. वहीं इस मामले में सरकार और प्रशासन की घोर लापरवाही को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं. जब दिल्ली में सबसे पहले (22 मार्च से )लॉकडाउन लागू हो गया था, तो इतने दिन तक यहां इकट्ठा हुए लोगों पर आखिर किसी की नजर क्यों नहीं गई. वहीं मामला बढ़ता देख दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन ने कहा कि जमात का कार्यक्रम करने वालों ने घोर अपराध किया है. लेकिन तबलीगी जमात की ओर से भी इस पर एक बयान जारी किया गया है. जिसमें उसकी ओर से कहा गया है कि उन लोगों ने प्रशासन को पूरी जानकारी दी थी और यहां से लोगों को निकालने के लिए भी मदद मांगी गई थी. अब सच क्या है ये तो पूरी जांच के बाद ही पता चल पाएगा. लेकिन इस लापरवाही कितनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है इस बात की अब आशंका जताई जा रही है. वहीं कुछ सवाल भी जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों पर उठ रहे हैं.
6 अहम सवाल
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के भरोसे दिल्ली की स्वास्थ्य व्यवस्था है. कोरोनावायरस को लेकर उनकी सरकार ने क्या कदम उठाए हैं, इसकी जानकारी देने वह प्रेस कॉन्फ्रेस करने भी आते हैं, लेकिन उनके प्रशासन को यह क्यों ध्यान नहीं गया कि समय रहते यहां इकट्ठा लोगों को कहीं आइसोलेशन में भेजा जाए?
गृहमंत्री अमित शाह के मंत्रालय के पास इस बात की भी जानकारी थी कि विदेशों से इतने बड़ी संख्या में नागरिक इकट्ठा होते हैं. तो फिर इस खतरे को देखते हुए तुरंत कार्रवाई करते हुए इनको लॉकडाउन के ऐलान के बाद क्वारंटाइन क्यों नहीं किया गया. जब कोरोनावायरस को लेकर केंद्र सरकार ने डीएम एक्ट के तहत पूरी अपनी कमान अपने हाथ में ले लिया है. वहीं गृहमंत्रालय की ओर से भी बड़े-बड़े दिशा-निर्देश आ रहे हैं तो विदेशियों की आवाजाही और यहां भीड़ की जानकारी होते हुए भी उदासीनता क्यों बरती गई?
स्वास्थ्य मंत्रालय भी हर रोज प्रेस कांन्फ्रेंस करके दिन भर की जानकारी देता है. लेकिन क्या उसके अपने स्थानीय स्वास्थ्य कर्मी और अधिकारी पूरी तरह से फेल साबित हुए?
निजामुद्दीन इलाके के नगर निगम को इस बात की पूरी जानकारी रहती है उस इलाके में कौन-कौन आता है लेकिन वह इस मामले में पूरी तरह से फेल साबित हुए?
क्या स्थानीय विधायक, सांसद और पार्षदों ने भी इस बात को गंभीरता से लिया? जनप्रतिनिधि होने के नाते उनकी भी जिम्मेदारी बनती है कि वह आम लोगों के बीच इस बीमारी के बारे में जागरुक करें.
क्या मौलाना ने भी अपने नागरिक होने का कर्तव्य निभाया? जब उनको पता था कि यह बीमारी विदेशों से आ रही है तो उनको इस तरह के आयोजनों को रद्द करना चाहिए था. साथ ही क्या इस बात की सूचना उन्होंने प्रशासन को दी थी कि यहां अभी और लोग इकट्ठा हैं. इनकी व्यवस्था की जाए. साथ ही वो लोग भी जिम्मेदार हैं जो लापरवाही बरतते हुए यहां पर इकट्ठा थे. सरकार की ओर से सोशल डिस्टैसिंग पर काफी पहले से ही जोर दिया जा रहा था.