बंगाल में 2016 के विधानसभा चुनावों से पहले नई सियासी गोलबंदी दिख रही है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी जब शुक्रवार को संसद में महात्मा गांधी की मूर्ति के नीचे मुंह पर काली पट्टी बांधे मोदी सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे थे, तो उनके चारों और टीएमसी के ही सांसद थे। एक ओर कल्याण बनर्जी और दूसरी ओर सौगत रॉय और इदरिस अली।
संसद में तो ये विरोध केंद्रीय मंत्री निरंजन ज्योति के खिलाफ विरोध करने और उन्हें पद से हटाने के लिए हो रहा है, लेकिन दोनों पार्टियां इसमें बंगाल की 2016 की विधानसभा के लिए होने वाली लड़ाई की गोलबंदी भी देख रही हैं। (पढ़ें- काली पट्टी बांध कर संसद में कांग्रेस-टीएमसी का विरोध प्रदर्शन)
हालांकि लोकसभा में टीएमसी के नेता कल्याण बनर्जी ने सिर्फ इतना कहा, 'हम अभी इस (बीजेपी) सरकार के खिलाफ एक साथ खड़े हुए हैं.. आगे क्या होता है देखा जाएगा'। लेकिन तृणमूल के एक बड़े नेता ने कहा कि अगर बीजेपी के खिलाफ दोनों पार्टियां साथ आती है तो इसमें बुरा क्या है।
उधर कांग्रेस के एक बड़े नेता ऑस्कर फर्नांडिस ने एनडीटीवी से कहा, 'कांग्रेस पार्टी अभी मुश्किल में है और उसे पूरे देश में अपना वजूद बचाने के लिए बीजेपी के खिलाफ आक्रामक होने को कहा गया है।'
पिछला विधानसभा चुनाव दोनों पार्टियों ने मिलकर लड़ा था और सीपीएम समेत पूरे लेफ्ट का सफाया कर दिया था। उसके बाद कांग्रेस और टीएमसी में मनमुटाव हो गया और दोनों ने रास्ते अलग कर लिए। अब एक बार फिर दोनों के साथ आने की खबर बंगाल में बीजेपी को रोकने की कोशिश के तौर पर देखी जा रही है लेकिन बंगाल में वामपंथियों के लिए ये अच्छी खबर नहीं है।
संसद में केंद्र सरकार के खिलाफ हुए इस प्रदर्शन में पहले लेफ्ट के आने की बात थी, लेकिन फिर सीपीएम ने ये कह कर खुद को अलग कर लिया कि 'टीएमसी ने न केवल वामपंथी कार्यकर्ताओं की हत्या की है बल्कि तृणमूल के नेता तापस पॉल ने सीपीएम की महिला कार्यकर्ताओं के खिलाफ अभद्र बयान भी दिया है। इसलिए लेफ्ट इस संयुक्त विरोध प्रदर्शन का हिस्सा नहीं है।'
कांग्रेस-टीएमसी के साथ आने की संभावनाओं का सीपीएम सांसद ऋतोब्रतो बंधोपाध्याय ने मज़ाक बनाया। उन्होंने कहा, 'टीएमसी का कोई भरोसा नहीं है। वह बेपेंदी का लोटा है। सुबह वह बीजेपी के साथ होते हैं, दोपहर में कांग्रेस के साथ और रात तक फिर बीजेपी के साथ।'
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