सोनिया गांधी और राहुल गांधी (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
अब यह तय हो गया कि सोनिया गांधी फिलहाल कांग्रेस की अध्यक्ष बनी रहेंगी। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का कार्यकाल एक साल बढ़ाए जाने के प्रस्ताव को सीडब्ल्यूसी ने मंजूरी दे दी। यानि राहुल की ताजपोशी के लिए इंतजार कुछ और लंबा चलेगा।
कांग्रेस वर्किंग कमेटी की मीटिंग में जैसे ही एआईसीसी के गठन के लिए एक साल तक का विस्तार दिया गया, खुद ब खुद सोनिया का कार्यकाल बढ़ गया। इससे राहुल गांधी को तुरंत पार्टी अध्यक्ष बनाए जाने के कयासों को विराम लग गया। दरअसल कांग्रेस के संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जिससे सिर्फ पार्टी अध्यक्ष के कार्यकाल को विस्तार दिया जा सके। ऐसे में आड़ संगठनात्मक चुनाव का लिया गया।
कांग्रेस महासचिव गुलाम नबी आजाद कहते हैं कि यह अच्छी बात है कि हमें दो-दो नेताओं का नेतृत्व मिल रहा है। इंदिरा पीएम थीं तो राजीव 4 साल महासचिव थे। वे जिंदा रहतीं तो शायद राजीव जी 3 साल और महासचिव रहते। कहने का मतलब पार्टी अभी बहुत कमफर्टेबल हालत में है।
तकनीकी कारणों को आधार बनाकर राहुल की ताजपोशी में देरी के पीछे कांग्रेस की अपनी रणनीति है। सूत्रों के मुताबिक सोनिया और उनके आसपास के नेताओं की राय है-
सोनिया ने अपने सम्बोधन में राहुल गांधी की जमकर तारीफ की। कहा कि भूमि अधिग्रहण मामले में मोदी सरकार को किसान विरोधी संशोधन वापस लेने को मजबूर होना पड़ा जिसका श्रेय कांग्रेस पार्टी के हर कार्यकर्ता को जाता है, जिसने राहुल गांधी के गतिशील नेतृत्व में यह विरोध जारी रखा।
सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक लैंड बिल पर कामयाबी के बाद राहुल जीएसटी बिल को दूसरी चुनौती के तौर पर उठाने जा रहे हैं। सीडब्ल्यूसी में राहुल ने कहा कि जीएसटी का 18 प्रतिशत से अधिक न हो, राज्य और केन्द्र के बीच विवाद की हालत में एक स्वतंत्र प्राधिकरण हो और उत्पादक राज्य पर एक फीसदी की लेवी न हो।
कुल मिलाकर राहुल सरकार से एक बार फिर दो-दो हाथ करने को तैयार दिख रहे हैं। पार्टी को उम्मीद है कि इस तरह के अभियानों से राहुल का नेतृत्व और उभरेगा। पार्टी के साथ-साथ सहयोगी पार्टियों के बीच उनकी स्वीकार्यता बढ़ेगी। तब अध्यक्ष पद की औपचारिक जिम्मेदारी उनके लिए ज्यदा मुफीद होगी।
पार्टी अध्यक्ष के तौर पर सोनिया गांधी राहुल के सिर पर एक राजनीतिक छतरी हैं तो माँ के तौर पर बेटे के सिर पर आंचल भी। मां चाहती है कि बेटा जब कमान संभाले तो उसके कदमों के नीचे कांटे कम और फूल ज्यादा हों। दुनिया सवाल न उठा पाए। बेशक इसमें थोड़ा वक़्त और लग जाए।
कांग्रेस वर्किंग कमेटी की मीटिंग में जैसे ही एआईसीसी के गठन के लिए एक साल तक का विस्तार दिया गया, खुद ब खुद सोनिया का कार्यकाल बढ़ गया। इससे राहुल गांधी को तुरंत पार्टी अध्यक्ष बनाए जाने के कयासों को विराम लग गया। दरअसल कांग्रेस के संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जिससे सिर्फ पार्टी अध्यक्ष के कार्यकाल को विस्तार दिया जा सके। ऐसे में आड़ संगठनात्मक चुनाव का लिया गया।
कांग्रेस महासचिव गुलाम नबी आजाद कहते हैं कि यह अच्छी बात है कि हमें दो-दो नेताओं का नेतृत्व मिल रहा है। इंदिरा पीएम थीं तो राजीव 4 साल महासचिव थे। वे जिंदा रहतीं तो शायद राजीव जी 3 साल और महासचिव रहते। कहने का मतलब पार्टी अभी बहुत कमफर्टेबल हालत में है।
तकनीकी कारणों को आधार बनाकर राहुल की ताजपोशी में देरी के पीछे कांग्रेस की अपनी रणनीति है। सूत्रों के मुताबिक सोनिया और उनके आसपास के नेताओं की राय है-
- राहुल संगठन और राजनीति पर और पकड़ बना लें।
- पुराने और नए नेताओं के बीच बेहतर तालमेल बने।
- राहुल युवा जोश के साथ पुराने अनुभवों का इस्तेमाल भी पार्टी को आगे बढ़ाने में करें।
- छुट्टी से लौटने के बाद राहुल ने जिस तरह की सक्रियता दिखाई है उससे उनकी नई इमेज बनी है इसे और पुख़्ता करने की जरूरत है।
सोनिया ने अपने सम्बोधन में राहुल गांधी की जमकर तारीफ की। कहा कि भूमि अधिग्रहण मामले में मोदी सरकार को किसान विरोधी संशोधन वापस लेने को मजबूर होना पड़ा जिसका श्रेय कांग्रेस पार्टी के हर कार्यकर्ता को जाता है, जिसने राहुल गांधी के गतिशील नेतृत्व में यह विरोध जारी रखा।
सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक लैंड बिल पर कामयाबी के बाद राहुल जीएसटी बिल को दूसरी चुनौती के तौर पर उठाने जा रहे हैं। सीडब्ल्यूसी में राहुल ने कहा कि जीएसटी का 18 प्रतिशत से अधिक न हो, राज्य और केन्द्र के बीच विवाद की हालत में एक स्वतंत्र प्राधिकरण हो और उत्पादक राज्य पर एक फीसदी की लेवी न हो।
कुल मिलाकर राहुल सरकार से एक बार फिर दो-दो हाथ करने को तैयार दिख रहे हैं। पार्टी को उम्मीद है कि इस तरह के अभियानों से राहुल का नेतृत्व और उभरेगा। पार्टी के साथ-साथ सहयोगी पार्टियों के बीच उनकी स्वीकार्यता बढ़ेगी। तब अध्यक्ष पद की औपचारिक जिम्मेदारी उनके लिए ज्यदा मुफीद होगी।
पार्टी अध्यक्ष के तौर पर सोनिया गांधी राहुल के सिर पर एक राजनीतिक छतरी हैं तो माँ के तौर पर बेटे के सिर पर आंचल भी। मां चाहती है कि बेटा जब कमान संभाले तो उसके कदमों के नीचे कांटे कम और फूल ज्यादा हों। दुनिया सवाल न उठा पाए। बेशक इसमें थोड़ा वक़्त और लग जाए।
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