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Exclusive: क्या अमेरिका की मध्यस्थता से रुकी भारत-पाकिस्तान के बीच जंग? मनीष तिवारी ने NDTV को बताई पूरी बात

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने कहा कि कूटनीति एक समानांतर प्रक्रिया है. हमने अपना पक्ष रखा. सुबह 9 बजे से लेकर रात 10 बजे तक हम 10-12 अलग-अलग बैठकें कर व्यापक चर्चा करते थे. अब ये विदेश मंत्रालय के ऊपर निर्भर करता है कि जो नींव हम रखकर आए हैं भारत की गाथा सुनाने की, उस नींव को किस तरह से और सुदृढ़ बनाते हैं. 

पहलगाम आतंकवादी हमला और ऑपरेशन सिंदूर का सच दुनिया को बताने 7 सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल दुनिया के 33 देशों में गए. इनमें से कुछ लौट आए हैं. इजिप्ट (मिस्र), कतर, इथोपिया और साउथ अफ्रीका वाले प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा रहे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री मनीष तिवारी भारत लौट चुके हैं. एनडीटीवी से एक्सक्लूसिव बातचीत में मनीष तिवारी ने इस यात्रा के अनुभव साझा किए. साथ ही भारत-पाकिस्तान जंग में मध्यस्थता से लेकर कांग्रेस पार्टी के आरोपों पर भी जवाब दिया.

प्रतिनिधिमंडल भेजना क्यों जरूरी था

मनीष तिवारी ने कहा कि पाकिस्तान 45 साल से जो भारत के खिलाफ आतंकवाद को प्रोत्साहित कर रहा है, पहली बार व्यापक रूप से हम उसकी दर्दनाक और दुर्भाग्यपूर्ण कहानी लोगों को सुना पाए हैं. पहलगाम उस आतंकी मंसूबों का एक आखिरी पड़ाव था, जहां पर लोगों को चिह्नित कर धर्म के आधार पर मौत के घाट उतारा गया. इसके बाद जो कार्रवाई भारत की तरफ से हुई, आतंकवादी ताने-बाने को नेस्तनाबूद करने के लिए वो अति आवश्यक थी. इस दौरे के दौरान हम दुनिया के सामने अपना पक्ष रख सके.

प्रतिनिधिमंडल किससे मिला

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने कहा कि कूटनीति एक समानांतर प्रक्रिया है. हमने अपना पक्ष रखा. हम जिन देशों में गए, वहां के मंत्रियों, पूर्व प्रधानमंत्रियों से मिले, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों से लेकर संसद सदस्यों, उनके अध्यक्षों, सामरिक विशेषज्ञों, पत्रकारों, शिक्षाविदों से मिले. सुबह 9 बजे से लेकर रात 10 बजे तक हम 10-12 अलग-अलग बैठकें कर व्यापक चर्चा करते थे. हम अपनी बात रखकर आए हैं, अब ये विदेश मंत्रालय के ऊपर निर्भर करता है कि जो नींव हम रखकर आए हैं भारत की गाथा सुनाने की, उस नींव को किस तरह से और सुदृढ़ बनाते हैं. 

साउथ अफ्रीका से कैसा रिस्पॉन्स मिला

पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि साउथ अफ्रीका से भारत के बहुत प्राचीन और परंपरागत संबंध हैं.   साउथ अफ्रीका में जब रंगभेद की नीति लागू थी, तो खासकर भारत और राष्ट्रीय कांग्रेस ने उस रंगभेद की नीति का विरोध किया था. एक दुनिया भर में गठबंधन तैयार की थी. उन संबंधों को ध्यान में रखते हुए हमने बैठकें कीं. हम तीन जगह पर गए. पहले जोहान्सबर्ग गए. फिर केपटाउन गए और उसके बाद प्रिटोरिया गए. वहां पर अफ्रीकी राष्ट्रीय कांग्रेस से हमारी मुलाकात हुई. उनके संसद सदस्यों और आला मंत्रियों से मुलाकात हुई और हर जगह अग्रसर तरीके से हमने भारत का पक्ष रखा. दक्षिण अफ्रीका में पहलगाम आतंकी हमले की जानकारी थी. उनकी सांत्वना पहलगाम में हुए दर्दनाक आतंकवादी हमले को लेकर थी और इससे सहमत थे कि उसके बाद जो कार्रवाई हुई, वो आतंकवाद को नेस्तनाबूद करने के लिए जरूरी थी.

कतर का क्या रुख था

मनीष तिवारी ने कहा कि कतर के साथ भी भारत के पारंपरिक रिश्ते हैं. भारत के लोग सबसे बड़ी संख्या में वहां पर मौजूद हैं. कतर के थिंकटैक्स से भी हमारी मुलाकात हुई. उनको भी इस बात का पूरी तरह से इल्म था कि आतंकवाद का न धर्म होता और न कोई जाति होती है. आतंकवाद से लड़ना और उसे नेस्तनाबूद करना किसी भी देश की जिम्मेदारी होती है. तो इस बात को लेकर वहां पर काफी संवेदना और भारत के प्रति सांत्वना थी.

पाकिस्तान 1971 का बदला ले रहा

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने कहा कि हर मुल्क में चाहे कतर हो, चाहे दक्षिण अफ्रीका हो, चाहे इथोपिया हो या चाहे मिस्र हो, वहां पर भारतीय मूल के लोग काफी बड़ी संख्या में बसे हैं. हमने उनसे बस एक ही बात कही कि आप हमारे राजदूत हो. आपको हमारा ये संदेश अपने जानने वालों को बताना है. आपको बताना है कि पाकिस्तान जो आतंकवाद प्रोत्साहित करता है, उसका जम्मू कश्मीर से कोई लेना-देना नहीं है. उसका एक ही कारण है कि 1971 में जब पश्चिमी पाकिस्तान में पाकिस्तानी फौज नरसंहार कर रही थी तो भारत ने हस्तक्षेप किया और बांग्लादेश बनाया. ये पाकिस्तान के डीप स्टेट मतलब पाकिस्तान फौज के ऊपर एक बहुत बड़ा कलंक है और वो जो इसे लेकर बेइज्जती महसूस करते हैं, उसे लेकर 24 जनवरी 1972 को रणनीति बनाई कि भारत को हजार घाव देकर घायल करेंगे. इसके तहत ये आतंकवाद को प्रोत्साहित करते हैं. इसका जो सच है, वो लोगों के समक्ष रखना बहुत जरूरी है कि भारत ने बहुत सहनशीलता से इतने वर्षों तक कूटनीति से काम लेने की कोशिश की, मगर कोई भी देश ये बर्दाश्त नहीं कर सकता कि लगातार उसके नागरिक मारे जाएं. कारगिल की लड़ाई से लेकर आईसी 814 का अपहरण, जम्मू कश्मीर के विधानसभा पर हमला, भारत की संसद पर हमला, 26/11 का मुंबई हमला, पठानकोट हमला, उरी हमला और फिर पहलगाम हमला हुआ तो ये एक कड़ी है पिछले 25 वर्षों की. पाकिस्तान अपनी आदतों से बाज नहीं आना चाहता और इसलिए जब कोई मुल्क आतंकवाद को एक रणनीति के तहत इस्तेमाल करता है तो उस मुल्क को दुनिया की मुख्यधारा से अलग करना जरूरी है.

कांग्रेस की भूमिका कितनी सही

पूर्व केंद्रीय मंत्री ने ये बात दुर्भाग्यपूर्ण है, मगर सही है कि हमारा राजनीतिक संवाद बहुत कटु हो चुका है. ना तो कोई किसी बख्शता है और ना ही कोई किसी से उम्मीद रखता है. जब राष्ट्र के सामने एक चुनौती आती है तो राजनीतिक संवाद को छोड़ते हुए देश के पक्ष में बात करना प्राथमिकता होनी चाहिए. हालांकि, लोकतंत्र में सवाल पूछे जाते रहेंगे. ये संवाद अपनी जगह चलता है, लेकिन जब राष्ट्रहित की बात हो तो दोनों चीजें अलग-अलग हो जाती हैं. मेरा मानना है कि जिस तरह से पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कारगिल के बाद एक हाई लेवल कमेटी बनाई थी, ये पता लगाने के लिए कि अगर कोई खामी थी तो उन खामियों को कैसे दूर किया जाए, जिससे भारत आने वाले समय में और सुदृढ़ हो सके. वो एक सही और रचनात्मक कदम था. मेरा मानना है कि इस बार भी एक रिव्यू कमेटी पूरे घटनाक्रम की जांच के लिए बननी चाहिए. पीएम मोदी को इस मामले में सर्वदलीय बैठक भी बुलानी चाहिए और संसद में भी चर्चा करनी चाहिए. 1962 के युद्ध के समय 7 नवंबर से 16 नवंबर 1962 तक जब युद्ध सीमा पर चल रहा था, तब संसद के दोनों सदनों में युद्ध पर बहुत व्यापक बहस हुई.  1965 के युद्ध के बाद भी बहुत व्यापक चर्चा हुई. 1971 का युद्ध जब हुआ तो उस समय संसद सत्र चल रहा था. रोज उस समय की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और रक्षामंत्री युद्ध की परिस्थितियों को देश के सामने साफ-साफ रखते थे.     

क्या भारत-पाकिस्तान जंग मध्यस्थ ने रोकी

मनीष तिवारी ने कहा कि भारत-पाकिस्तान ही नहीं, जब भी किसी भी दो देशों के बीच तनाव बढ़ता है और अगर वे दोनों मुल्क परमाणु हथियारों से लैस हों तो दुनिया के सभी देश और खासकर जो बड़े मुल्क माने जाते हैं, वो दोनों पक्षों से बात करते हैं. अब जैसे रूस-यूक्रेन का युद्ध चल रहा है तो भारत रूस से भी बात कर रहा है और यूक्रेन से भी बात कर रहा है. अगर आप इजरायल और गाजा की बात ले लीजिए तो सभी देश उनसे भी बात कर रहे हैं. कतर की मध्यस्थता में ही बंदियों को छोड़ने पर सहमति बनी. इसलिए ये एक स्वाभाविक बात है. अगर आप भारत-पाकिस्तान की बात करें तो 1990 में रॉबर्ट गेट्स की मिशन आई थी. उसके बाद जब पाकिस्तान को लगा कि पश्चिमी रेगिस्तान में हम अपने बल को बढ़ा रहे हैं तो उन्होंने परमाणु धमकियां देनी शुरू कीं. इसके बाद वहां पर डिप्टी एनएसए रॉबर्ट गेट्स भारत आए थे. ऑपरेशन पराक्रम के दौरान अमेरिका ने दोनों मुल्कों से बात की थी. इसी तरह 26/11 हमला हुआ और भारत पाकिस्तान को मुख्यधारा से अलग करने में लगा था तो उस समय भी अमेरिका और ब्रिटेन उस समय बात कर रहे थे.तो ये बैक चैनल बातचीत होती रहती है. अब अगर कोई बैक चैनल को फ्रंट चैनल मान ले तो उससे पूरी दुनिया जूझ रही है. टैरिफ के चलते व्यापार का ताना-बाना बिगड़ चुका है. मगर एक बात है कि हम जहां भी गए, हमसे किसी ने सवाल नहीं पूछा. 

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