कोरोना संकट से उबर रही अर्थव्यवस्था में रोज़गार में सुधार की प्रक्रिया फिर थम रही है और रोज़गार का स्तर अक्टूबर में नीचे गिर गया है. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनामी के हेड महेश व्यास ने अपनी ताज़ा आकलन रिपोर्ट में ये दावा किया है. कोरोना संकट का साया फिर रोज़गार पर दिखने लगा है. भारतीय अर्थव्यवस्था पर नज़र रखने वाली संस्था सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी के हेड महेश व्यास ने अपने ताज़ा आकलन में एनडीटीवी इंडिया को बताया कि मई, जून और जुलाई में रोज़गार के मौकों में बड़ी तेज़ी से सुधार आया. इसके बाद सभी लेबर मार्केट इंडीकेटर्स ने अगस्त और सितम्बर में रोज़गार के अवसरों को कमज़ोर पड़ता दिखाया. मई में सुधार की प्रक्रिया शुरू होने के बाद पहली बार अक्टूबर में रोज़गार के अवसर में गिरावट दर्ज़ हुई है. रोज़गार में गिरावट चिंता की बात है.
अर्थशास्त्री वेद जैन कहते हैं कि बेरोज़गारी दर को और बढ़ने से रोकने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को मिलकर अर्थव्यवस्था में रफ़्तार लाने के लिए साझा पहल करनी पड़ेगी. वेद जैन ने NDTV से कहा, " सितम्बर में बेरोज़गारी दर 6.67% थी जो अक्टूबर में बढ़कर 6.98% हो गई है. इसे कम करने के लिए सरकार को इकॉनामी को एक पुश करना पड़ेगा. जो ग्रीनशूट्स दिख रहे थे उसके वजह से रेवेन्यू में ज्यादा सुधार नहीं दिख रहा है. इसके लिए जरूरी होगा कि भारत सरकार और राज्य सरकार दोनों मिलकर इकॉनामी को आगे पुश करने की कोशिश करें."
साफ़ है, आर्थिक मोर्चे पर चुनौतियां बनी हुई हैं...मई में लॉकडाऊन धीरे धीरे हटने के बाद आर्थिक सुधार की प्रक्रिया शुरू हुयी और इसके साथ ही उसके बाद ये पहला मौका है जब अक्टूबर में रोज़गार के अवसर में गिरावट दर्ज़ हुई है. ये चिंता की बात है ये दिखता है की आर्थिक सुधार की प्रक्रिया अभी पूरी नहीं हुयी है. .. और अर्थव्यवस्था को दोबारा पटरी पर लाने के लिए सरकार को और बड़े स्तर पर हस्तक्षेप करना पड़ेगा.
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