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इंसान द्वारा इंसान को खींचने की प्रथा अमानवीय... माथेरान में हाथ-रिक्शा पर बैन, SC ने दिया पुनर्वास का आदेश

चीफ जस्टिस बीआर गवई की बेंच ने महाराष्ट्र के हिल स्टेशन माथेरान में हाथ-रिक्शा की परंपरा बंद करने और पुनर्वास योजना बनाने का निर्देश देते हुए कहा कि आज़ादी के 78 साल बाद इस प्रथा को अनुमति देना संवैधानिक वादों के साथ विश्वासघात है.

इंसान द्वारा इंसान को खींचने की प्रथा अमानवीय... माथेरान में हाथ-रिक्शा पर बैन, SC ने दिया पुनर्वास का आदेश
  • सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र के माथेरान में हाथ रिक्शा की अमानवीय प्रथा बंद करने का निर्देश दिया है.
  • कोर्ट ने रिक्शा चालकों के पुनर्वास के लिए राज्य सरकार से प्रभावी योजना बनाने को भी कहा है.
  • CJI ने कहा कि आजादी के बाद भी ऐसी प्रथा जारी रखना समानता के संवैधानिक अधिकार के खिलाफ है.
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नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र के खूबसूरत हिल स्टेशन माथेरान में हाथ से खींचे जाने वाले रिक्शा की परंपरा बंद करने और रिक्शा चालकों की पुनर्वास योजना बनाने का निर्देश दिया है. चीफ जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि एक इंसान द्वारा दूसरे इंसान को गाड़ी में खींचने की प्रथा अमानवीय है. आज़ादी के 78 साल बाद इस प्रथा को अनुमति देना संवैधानिक वादों के साथ विश्वासघात है. कोर्ट ने गुजरात के केवडिया मॉडल का उदाहरण देते हुए कहा कि माथेरान में ई-रिक्शा एक बेहतर और मानवीय विकल्प हो सकते हैं. 

45 साल बाद भी रोक नहीं.. दुर्भाग्यपूर्ण

चीफ जस्टिस गवई ने फैसले लिखवाते हुए कहा कि यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज़ाद रिक्शा चालकों के मामले में इस अदालत के फैसले के 45 साल बाद भी, माथेरान शहर में एक इंसान द्वारा दूसरे इंसान को खींचने की अमानवीय प्रथा अभी भी प्रचलित है. हमें पूरी उम्मीद है कि राज्य सरकार इस अमानवीय प्रथा को समाप्त करने के लिए कदम उठाएगी.  

चीफ जस्टिस ने कहा कि हमें खुद से सवाल पूछना होगा कि क्या हम सामाजिक और आर्थिक समानता के संवैधानिक वादे के प्रति सजग हैं? दुर्भाग्य से इसका जवाब नकारात्मक ही होगा. देश को आज़ादी मिलने के 78 साल और संविधान निर्माण तथा नागरिकों को सामाजिक व आर्थिक न्याय का वादा करने के 75 साल बाद भी ऐसी प्रथा जारी रखना, भारत के लोगों द्वारा खुद से किए गए वादे के साथ विश्वासघात होगा. ऐसे में हमारा मानना है कि हाथ रिक्शा की प्रथा को तुरंत बंद किया जाना चाहिए. 

राज्य सरकार पुनर्वास योजना बनाए

मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि हाथ रिक्शा की प्रथा को बंद करने पर यह सवाल उठेगा कि उन लोगों का क्या होगा, जो अपनी आजीविका के लिए इस पर निर्भर हैं. इसका जवाब 1980 में ही दे दिया गया था. देश में 45 वर्षों के तकनीकी विकास ने ई-रिक्शा का आविष्कार किया है, जो पर्यावरण के अनुकूल हैं. कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार को हाथ से चलने वाले रिक्शा चालकों के पुनर्वास के लिए योजना बनानी चाहिए ताकि वे आजीविका से वंचित न हों.

'अफसर दवाब में हो सकते हैं, जज नहीं'

सुप्रीम कोर्ट ने 24 जुलाई 2025 को महाराष्ट्र सरकार से माथेरान में हाथ से खींचे जाने वाले रिक्शा का इस्तेमाल बंद करने का आग्रह किया था. पिछली सुनवाई में कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को चेताते हुए कहा था कि अधिकारी आपके दबाव में हो सकते हैं, लेकिन न्यायिक अधिकारी नहीं होंगे. यह बात उस समय कही थी, जब महाराष्ट्र सरकार ने माथेरान में ई-रिक्शा लाइसेंस आवंटन पर जिला न्यायाधीश की रिपोर्ट की सत्यता पर सवाल उठाया था. 

ई-रिक्शा की संख्या भी सीमित 

बता दें कि मुंबई से लगभग 83 किलोमीटर दूर स्थित हिल स्टेशन माथेरान में ऑटोमोबाइल की अनुमति नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी 2024 में आदेश दिया था कि ई-रिक्शा केवल उन हाथ-ठेला चालकों को दिए जाएंगे, जो आजीविका खो चुके हैं. अप्रैल 2024 में कोर्ट ने आदेश दिया था कि माथेरान में ई-रिक्शा की संख्या 20 तक सीमित रहेगी. लाइसेंस प्राप्त वाहनों की कुल संख्या पर भी लिमिट लगा दी. 

गुजरात के मॉडल का उदाहरण दिया

चीफ जस्टिस बी.आर. गवई, जस्टिस के.विनोद चंद्रन और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने ऐसे मानवीय, पर्यावरण अनुकूल विकल्प पर जोर दिया जो मौजूदा रिक्शा चालकों को रोजगार प्रदान कर सके. अदालत ने पहले गुजरात के एक मॉडल का भी उदाहरण दिया, जहां आदिवासी महिलाएं आय के लिए रोज़ाना ई-रिक्शा किराए पर लेती हैं. कोर्ट ने इसे अनुकरणीय बताया. 

सुप्रीम कोर्ट ने आईआईटी बॉम्बे के परामर्श से माथेरान की सड़क की उपयुक्तता का आकलन करने के लिए एक निगरानी समिति भी गठित की. नवंबर 2024 में अदालत ने लाइसेंस आवंटन में गड़बड़ी को लेकर अधिकारियों को फटकार लगाई थी. कोर्ट ने इस पर फिर से ज़ोर दिया कि केवल वास्तविक हाथ-रिक्शा चालकों को ही ई-रिक्शा लाइसेंस मिलने चाहिए. 

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