देश के कई बड़े शहरों में बारिश के बाद जनजीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है. कई शहरों में ट्रैफिक रेंगकर चलता दिखता है तो कई जगहों पर घुटनों तक पानी भर जाता है. गली-मोहल्ले पानी में डूब जाते हैं, जहां से पानी को बाहर निकलने में काफी वक्त लगता है. इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि कई इलाकों में ड्रेनेज सिस्टम है ही नहीं और कहीं है तो जरूरत के हिसाब से छोटा है. कई इलाकों में पानी की निकासी वाले रास्तों पर अवैध अतिक्रमण हो चुके हैं. इसीलिए पानी वहां ठहर जाता है और निकल ही नहीं पाता है. आइए जानते हैं कि आखिर कैसे थोड़ी सी बारिश में ही हमारे शहरों की पोल खुल जाती है और आम लोगों को इसके चलते बेहद परेशानी का सामना करना पड़ता है.
बारिश आते ही तमाम शहरों की पोल खुल जाती है. नागरिक सुविधाओं को लेकर ऐसी दिक्कतें सामने ना आए इसी को देखते हुए भारत सरकार ने 2015 में स्मार्ट सिटी मिशन शुरू किया था. इसका मकसद नए और स्मार्ट शहर बनाने के अलावा पुराने शहरों की नागरिक सुविधाओं को नई जरूरतों के मुताबिक तैयार करना था.
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने एनडीटीवी को दिए एक इंटरव्यू में इस बात का जिक्र भी किया था. उन्होंने कहा कि शहरों की योजना इस तरह से बनाएं कि प्राकृतिक जल निकासी बनी रहे और यह भी देखें कि इसका विस्तार किस तरह से होना चाहिए. उन्होंने कहा कि हम हम टेक्नोलॉजी का उपयोग करने और टाउन प्लानिंग के तरीकों पर भी विचार कर रहे हैं.
कम वक्त में बहुत अधिक बारिश की घटनाएं बढ़ रही
देश का शायद ही कोई शहर होगा, जिसने बारिश के पानी के निस्तारण का ठीक ठाक इंतजाम किया हो, लेकिन यह समस्या सिर्फ भारत के शहरों के साथ हो ऐसा भी नहीं है दुनिया के अधिकतर बड़े शहरों का आजकल यही हाल है. क्लाइमेट चेंज के कारण अति वर्षा यानी कम समय में बहुत ज्यादा और बहुत तेज वर्षा की घटनाएं अब बढ़ने लगी हैं और ऐसी स्थितियां इसी वजह से गंभीर हो जाती हैं. दुनिया के कई देश इससे जूझ रहे हैं.
नया मास्टरप्लान बनता है तो पिछले को भूल जाते हैें : गोसाई
आईआईटी दिल्ली में सिविल इंजीनियरिंग विभाग में प्रोफेसर रह चुके एके गोसाई ने कहा कि हर 20 साल में सिटी मास्टर प्लान बनता है लेकिन कोई यह नहीं देखता है कि पुराने मास्टर प्लान को कितना उल्लंघन किया गया. उन्होंने उदाहरण देकर बताया कि अगर 50 साल पहले बारिश होती थी तो खाली जमीन पानी को सोख लेती थी, लेकिन आज खाली जमीन बहुत कम बची है.
साथ ही उन्होंने उन्होंने कहा कि आज आधुनिक टेक्नोलॉजी उपलब्ध है, जिसके जरिए आप यह जान सकते हैं कि कितना इलाका है, ढलान किधर है, किस ड्रेनेज सिस्टम में, किस एरिया से कितने पानी जाता है. यह पहले से ही पता लगाया जाता है और यह पता लगाया जाता है कि आपकी ड्रेनेज इस पानी को बाहर निकालने के लिए सक्षम है या नहीं.
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